शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

Munshi Ram Singh : The great teacher


Asharfi Lal Mishra










 माह अक्टूबर  वर्ष १९५५ की बात है    क़ि  एक व्यक्ति  जिसकी  उम्र  करीब -करीब   ५० वर्ष ,  कद  लगभग  ६ फुट ऊँचा ,इकहरा  बदन , सांवला रंग, सिर  पर गाँधी टोपी , तन पर कुर्ता धारण किए हुए ,पैरों में नागरा जूते (चमड़े के ) पहने हुए अचानक दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। मैं  बाहर दरवाजे की फर्श पर खेल रहा था.
 उस व्यक्ति ने हमसे पूंछा : क्या प्रधान जी घर पर हैं ?
हम ने किसी भी प्रकार का उत्तर दिए बिना ही दौड़कर घर के अन्दर गया  और  पिता जी से कहा  : भइया  ( पिता जी  ) बाहर कोई आपको पूंछ रहा है।
पिता जी बाहर आये तो उस व्यक्ति ने देखते ही कहा : पण्डित जी पाँय लागूं !
पिता जी ने कहा  : मुंशी जी कल्याण हो।

दरवाजे पर कोई चारपाई न होने पर पडोसी   के दरवाजे पर पड़ी चारपाई पर बैठने का आग्रह किया और दोनों व्यक्ति एक ही चारपाई पर बैठ गए। सिराहने की ओर पिता जी और पैताने की ओर  मुंशी जी।
उनके आपस के अभिवादन से ऐसा प्रतीत हुआ कि मुंशी जी और पिता जी एक दूसरे से परिचित थे। हम वहीँ पास में खड़े रहे।

 कुछ छड़ों बाद पिता जी ने मुझसे  कहा कि : जलपान ले आओ।
मैं  दौड़कर एक कटोरी में गुड़ और एक लोटे में जल लेकर आ गया। हमने  देखा कि मुंशी जी ने  केवल जल ही ग्रहण किया। इस बीच मुंशी जी ने स्पष्ट किया की हमें कफ की शिकायत रहती है इसलिए गुड़ नहीं खाया।

मुंशी जी ने  बात को आगे बढाते हुये पिता जी से पूँछा : पण्डित  जी आप के कितने बच्चे हैं ?
पिता जी ने उत्तर दिया : तीन बच्चे।
मुंशी जी पूँछा : वे  क्या करते हैं ?
पिता जी का उत्तर था :बड़े बेटे ने इसी वर्ष  हाई स्कूल किया है ,दूसरा बेटा हमारी ओर संकेत करते हुए कहा  : सामने खड़ा हुआ  है , इसने पढ़ाई छोड़ दी।और तीसरा बेटा अभी छोटा है।
इतना सुनते ही हमने दृढ़ता के साथ तत्काल बिना किसी हिचक के मुंशी जी  से कहा :मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी है हमें स्कूल-फीस नहीं मिली।
मुंशी जी ने कहा : हम तुम्हारी स्कूल की फीस माफ़ कर देंगे  तब क्या तुम पढ़ने को तैयार हो।
मैंने हाँ कर दी।
हमने पूँछा कहाँ पढ़ने जाना है।
मुंशी जी ने कहा :बहिरी  उमरी (कानपुर ,उत्तर  प्रदेश )
 हम यहाँ बताना चाहते है कि  वर्ष १९५४ में हमारे गाँव  इंजुआरामपुर (कानपुर ,उत्तर प्रदेश ) के प्राइमरी स्कूल का दर्जा घटाकर लोअर प्राइमरी स्कूल कर दिया गया था। लोअर प्राइमरी स्कूल में कक्षा ३ तक की ही  शिक्षा की व्यवस्था थी।
 पढाई छोड़ने के बाद मैं एक आवारा किस्म का लड़का हो गया था मैंने सोचा कि शायद पिता जी के सामने  मुंशी जी का  फीस माफ़ करने का वादा झूँठा हो ,इसीलिये अगले दिन हाथ में  अपने बराबर एक डंडा लेकर पूंछते हुए बहिरी उमरी पहुँच गया।  गाँव में पहुँचने पर  स्कूल का स्थान पूँछा।
                                                                   
   
    निजी भवन  जहाँ  प्राइमरी  स्कूल  की नींव पड़ी। यह भवन आज भी मूल रूप में आवासीय है।

     [ मुंशी राम सिंह का कोई भी चित्र उपलब्ध नहीं है। उक्त भवन में ही अपने शिष्य राजकुमार सिंह के सानिध्य में रहकर अन्तिम साँस ली। मुंशी  राम  सिंह  अविवाहित थे। यह    उत्तर प्रदेश (भारत ) राज्य  में स्थित  कानपुर  जिले के  विसोहा  ग्राम के   मूल  निवासी थे। ]

वहाँ पहुँचने देखा कि  मुंशी जी एक अनावासीय मकान के सामने एक ब्लैक बोर्ड में बच्चों को गणित पढ़ा रहे थे। इसी बीच हमने साहस बटोर कर अभिवादन  करते हुए मुंशी जी से कहा :मुंशी जी  हम पढ़ने आ गए और कक्षा ५ में पढ़ेंगे।
मुंशी जी ने कहा :   भाग का सवाल आ गया तो कक्षा ५ में नहीं तो कक्षा ४ में।
 मुंशी जी  ने एक छात्र से  पाटी और खड़िया  हमें देने के लिए कहा। मुंशी जी ने हमें भाग का सवाल बोला। हमें वह भाग का सवाल नहीं आया।

अब मुंशी जी ने  हमें आदेश दिया जाओ कक्षा चार में बैठो। अब मैं कक्षा चार का विद्यार्थी हो गया।

मुंशी जी की शिक्षा की विधि 
 मुंशी जी कक्षा में पहले  सवाल बोर्ड पर समझाते  फिर उसी  कायदे का  अन्य सवाल  हल करने के  लिए बोलते। सवाल हल हो जाने  पर कापी /पाटी  जमा करने के लिए कहते। कापी /पाटी  जिस क्रम में जमा होती उसी क्रम में जांची भी जातीं। सबसे पहले जिसका सावल सही निकलता मुंशी जी उसे कक्षा में पुरस्कत भी करते थे। बस यहीं से हमारी पढाई में गति आ गई।

 अनुपस्थित छात्रों के प्रति कर्तव्य 

 कक्षा में यदि कोई छात्र अनुपस्थित हो जाय तो उसी समय मुंशी जी  कक्षा के दो छात्र अनुपस्थित छात्र को उसके घर से बुलाने के लिए भेज देते। यदि छात्र बुलाने से नहीं आता तो अगले दिन मुंशी जी स्वयं  सूर्योदय होते ही  उस छात्र के दरवाजे पर नजर आते।  मुंशी जी अभिभावक को बुलाकर पूँछते कि आप का बेटा  कल पढ़ने क्यों नहीं गया ? छात्र को बुलाते और उससे कहते बस्ता लेकर स्कूल चलो।

छात्रों  के प्रति निष्पक्ष 
  मुंशी जी का सभी छात्रों के प्रति निष्पक्ष व्यवहार था। भूखे होने पर कुछ खाने की व्यवस्था भी  करते थे। मुंशी जी को किसी भी छात्र की अनुपस्थिति  असह्य थी।

मुंशी जी पारिवारिक जीवन 
मुंशी जी अविवाहित थे। मुंशी जी कक्षा ४ एवं ५  छात्रों को पढ़ते थे। कक्षा ४ व ५ के छात्र ही इनके बच्चे थे। यद्यपि मुंशी जी के भाई भी थे लेकिन वहाँ यदा कदा ही जाते थे वर्ष में एक आध बार और केवल एक या दो दिन के लिए। मुंशी जी कहते थे मेरे छात्र ही मेरे बच्चे हैं और उनके बीच रहना हमें अच्छा लगता है। छुट्टियों में भी आधे दिन की पढाई अनिवार्य थी।

हमें स्मरण आता है कि एक बार  गर्मियों के अवकाश में  केवल एक दिन पढ़ने में गैरहाजिर होने पर मुंशी जी ने मेरी खूब  पिटाई की।
                                                                             
                                         विद्यालय का निजी भवन ( वर्तमान में विभाग द्वारा छोड़ा गया )

स्कूल का अपना भवन 
वर्ष  १९५६ में  विद्यालय बस्ती के दक्षिण में स्थित अपने नवीन  भवन में पहुँच गया। मुंशी जी इसी विद्यालय में चौबीस घंटे निवास करते और शिक्षण कार्य में तल्लीन रहते।
जाति , धर्म निरपेक्ष व्यक्तित्व
मुंशी जी अपने छात्रों में किसी प्रकार का जातिगत या धार्मिक भेद भाव नहीं रखते थे। कक्षा में सबके साथ समान व्यवहार करते थे हालांकि कुछ बालक व बालिकाएं जातिगत छूट चाहते थे लेकिन किसी के साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया।

मुंशी जी का आशीर्वाद 

मुंशी जी की कृपा एवं आशीर्वाद से मुझे अपने गाँव में  प्रथम परास्नातक उपाधि प्राप्त होने का गौरव प्राप्त हुआ।

             मुंशी राम सिंह  आज  हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मुंशी जी की कर्तव्य भावना का  स्मरण  करते   ही  हमारे ह्रदय में उनके प्रति  श्रद्धा भाव उमड़ पड़ता है। मुंशी राम सिंह जी को शत-शत नमन।
             बंदउँ गुरु पद पदुम परागा
                                                                                               -अशर्फी लाल मिश्र

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

प्रेम - स्मारक

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
Asharfi Lal Mishra











                                                                       
सम्राट शाहजहाँ  द्वारा  अपनी पत्नी मुमताजमहल की स्मृति में बनवाया गया भव्य स्मारक  ताजमहल  की गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है। यह स्मारक युगल-प्रेम का प्रतीक है। यह ताजमहल केवल भव्य इमारत  नहीं है बल्कि  जब पाठक  इस स्मारक के बारे में पढता है या फिर दर्शक इस स्मारक को देखता है तो वह शाहजहाँ -मुमताज के अमर प्रेम की कल्पना में भाव विभोर हो उठता है।
इसी ताजमहल के भीतर सैकड़ों वर्षों से मुमताज महल अपनी समाधि  में  अंतिम विश्राम  कर रही है। विश्व के कोने कोने से आने वाले  पर्यटक आगरा आकर इस ताजमहल के अमर प्रेम स्मारक के  दीदार करते है और निहाल हो जाते हैं। आगरा में यमुना किनारे श्वेत संगमरमर का बना यह ताज  विश्व के पर्यटकों  के लिए आकर्षण का केंद्र है। 

अनुचित टिपण्णी 
         अक्सर यह देखा गया कि  मीडिया में प्रचार पाने  की दृष्टि से  कुछ  लोग ताज की महत्ता को कम करके आंकते हैं और मीडिया ऐसे प्रकरणों को प्रमुखता के साथ छापता भी है। आज वैश्विक जीवन प्रणाली में  विश्व के किसी कोने में  होने वाली प्रत्येक  उपलब्धि  को प्रत्येक देश में अपनाने के लिए लालायित रहता है और कोई देश उसे  विदेशी कह कर  अस्वीकार  नहीं करता।  चीन की दीवार चीन की शान है ,मिश्र के पिरामिड मिश्र की  पहिचान है इसी प्रकार  ताजमहल वास्तुकला विश्व में बेजोड़ और भारत की शान है। ताज पर  संगीत सोम  की टिपण्णी प्रशंसा के योग्य नहीं है।[1]  क्या संगीत सोम (विधायक) की टिपण्णी से  ताज की महत्ता कम हो सकती है। क्या सूर्य को प्रकाशहीन कहने मात्र से ही सूर्य प्रकाश की महत्ता कम  हो जायेगी। 
        
     अगर हम यह कहते हैं कि  शाहजहाँ के पूर्वज विदेशी थे तो यह किसके पास प्रमाण है कि भारत में रहने वाले अन्य सभी इस देश के ही  मूल निवासी है। क्या आर्य भारत के मूल निवासी है ? नहीं भारत में जन्म लेने वाले सभी व्यक्ति भारतीय है। किसी को विदेशी कहकर उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए। 
     
     संगीत सोम की टिपण्णी  बहुत ही हलकी थी और वास्तव में संगीत सोम की टिपण्णी से ताज की महत्ता पर भी कोई असर पड़ने वाला भी नहीं था लेकिन फिर  भी  कई राजनीति के अनुभवी दिग्गज  नेताओं ने  अपनी   तीक्ष्ण शैली  से संगीत सोम की वाणी पर लगाम लगा दी।

    उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने विधायक संगीत सोम से ताजमहल पर की गई अनुचित  टिपण्णी  पर  स्पष्टीकरण माँगा। [2]


ताजमहल  पर टिपण्णी से विपरीत असर 
                                                                         

                                             
                                    ताजमहल   की दर्शक  बनी यू ०   के ०  की महिला क्रिकेट टीम

ताजमहल  पर विवाद ग्रस्त टिपण्णी से विदेशी सैलानियों पर असर  पड़   सकता है। इससे  प्रदेश  की अर्थव्यवस्था  भी  प्रभावित होगी। वर्ष  २०१६ में १३ , ६२ ,७९१   विदेशी पर्यटकों ने  ताजमहल  को देखने आये थे।  उत्तर प्रदेश में  आने वाले पर्यटकों में आधे  अधिक पर्यटक अकेले ताज को देखने आते हैं। आगरा का पर्यटन कारोबार ३,००० करोड़  रुपये का है। अकेले ताज के टिकट से होने वाली  आय  १०५ करोड़ रुपये है।


  ताजमहल  केवल भारत की ही नहीं अपितु विश्व की धरोहर है ,प्रेम का अद्भुत उदहारण है। इसे संजोकर रखने की आवश्यकता है। 



गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

शिक्षा जगत में भारत

**अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर**
Asharfi Lal Mishra








 
                                                             
 
                                                        Stadium of IISER Mohali

 आज शिक्षा जगत  में   संयुक्त राज्य अमेरिका का  दबदबा कायम है। विश्व  के शीर्षस्थ  500 विश्वविद्यालयों में   हारवर्ड  विश्वविद्यालय  का  प्रथम स्थान   होने के साथ साथ  प्रथम चार स्थानों पर यू  एस  ए  का ही  कब्ज़ा है। शीर्षस्थ  100 विश्वविद्यालयों  में  50   संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं। विश्व में  प्रथम 500 की सूची में  150 केवल  यू एस ए  में स्थित है।

एशिया में विश्व के  प्रथम 100 विश्वविद्यालयों में चीन और जापान ने दो -दो और हांगकांग ने एक  विश्वविद्यालय  ने अपना स्थान बनाया। 

 विश्व में  प्रथम 300 की सूची में एशिया की स्थिति ;[1]
  *चीन -10
*जापान -10
*हांगकांग -5
* साउथ  कोरिया-4 
*इजराइल -4 
*ताइवान -2 
*टर्की -2
* सिंगापुर -1 

विश्व के प्रथम ५०० विश्वविद्यालयों  में एशिया की स्थिति :[2]
*चीन -27 
*जापान -15
*  साउथ कोरिया -9
*टर्की -6
*हांगकांग -5
*इजराइल -5
*ताइवान -५ 
*भारत -4 
*ईरान -3 
*सिंगापुर -1 (रैंक-125 )
*मलेशिया -1 (रैंक -423 )
*थाईलैंड -1 (रैंक -453 )
*सऊदी अरब -1 (रैंक -473 )
*पाकिस्तान -1 (रैंक -496 )

विश्व के प्रथम 500 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत :[3]
 *दिल्ली विश्वविद्यालय  (रैंक -316 )

                                                                       

                                                   Main building of  IISc Bangalore
*इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISc)(रैंक -323)
*आई आई टी बम्बई (रैंक -405 )
*आई आई टी खड़गपुर (रैंक -484)

             उक्त सूची को देखने से पता लगता है कि  शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें दोनों ही जिम्मेदार हैं  क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है। शिक्षा की यह दुर्गति  एक दो साल में नहीं हुयी इसके लिए  विगत सरकारें अपने उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकती।

          स्वतंत्रता  मिलने के पश्चात्  देश में विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों  की संख्या में  निरंतर वृद्धि हो रही है। ये संस्थाएं  सरकारी,प्राइवेट ,सहायता प्राप्त एवं  वित्त विहीन , स्ववित्त पोषित  क्षेत्र  में  खोली गईं। छात्रों का नामांकन बढ़ा। यही नहीं गैरमान्यता प्राप्त संस्थाओं की एक लम्बी श्रंखला मौजूद है।

       उच्च   शिक्षा की  गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले   माध्यमिक  विद्यालय हैं और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्राथमिक विद्यालय हैं।
       
      प्राथमिक शिक्षा  में जहाँ  विद्यालय  शासकीय /परिषदीय/सहायता प्राप्त  विद्यालय   संचालित हैं वहीं पब्लिक स्कूल भी संचालित हैं इनके अतिरिक्त मान्यता प्राप्त /गैरमान्यता प्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं।
इन सभी विद्यालयों में निरीक्षण व्यवस्था बहुत लचर है।  पब्लिक स्कूलों ,मान्यता प्राप्त विद्यालयों में  योग्य शिक्षकों का अभाव है। शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों   में पर्याप्त भ्रष्टाचार है। शैक्षिक गुणवत्ता के निरीक्षण में विभागीय अधिकारी अनदेखी करते है और यदि कहीं निरीक्षण किया भी तो उसका शमन का रास्ता भी उपलब्ध रहता है। हमारा कहने आशय यह है कि  जब तक   निरीक्षण प्रणाली दुरुस्त नहीं होगी तब तक प्राथमिक शिक्षा  लंगड़ी ही रहेगी।

      माध्यमिक शिक्षा  में  शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक स्कूल /मान्यता प्राप्त  विद्यालय के अतिरिक्त गैर मान्याप्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं। शासकीय (केंद्र /राज्य )/परिषदीय। सहायता प्राप्त विद्यालय जहाँ शिक्षकों की कमी  का सामना कर रहे हैं वहीं मान्यता प्राप्त विद्यालयों में अधिकांश   विद्यालय केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं,इन विद्यालयों में न छात्र हैं और न ही शिक्षक। इन विद्यालयों का न कभी भौतिक सत्यापन होता है और न ही किसी प्रकार निरीक्षण। जिला शिक्षा अधिकारी भी इस ओर  कोई ध्यान नहीं देते। शासकीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक विद्यालयों का निरीक्षण  नगण्य रहता है इसलिए इन विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित रहती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आवादी वाले राज्य में  माध्यमिक शिक्षा परिषद  से   मान्याप्राप्त  विद्यालयों का बाहुल्य है और इनके बाद  सहायता प्राप्त  विद्यालयों  का स्थान  है। इनमें से अधिकांश  मान्यता प्राप्त विद्यालय  बोर्ड  की परीक्षाओं में नकल का बंदोवस्त करते हैं।  माध्यमिक शिक्षा  में जब तक योग्य शिक्षक नहीं होंगे और नक़ल पर अंकुश नहीं होगा एवं भौतिक सत्यापन  के साथ  निरीक्षण नहीं होगा तब तक माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना कठिन है।

        उच्च शिक्षा  के क्षेत्र में शासकीय /सहायता प्राप्त /स्व-वित्त पोषित महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें स्व -वित्त  पोषित महाविद्यालयों  की हालत विशेष चिंता जनक है। इनमें अधिकांश छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं। । यदि  कहीं  कक्षायें  भी लगती  हैं तो वहां अयोग्य शिक्षकों  द्वारा शिक्षण कार्य कराया जाता है। इन महाविद्यालयों में  पहले योग्य शिक्षकों का अनुमोदन लिया जाता है  और  उनके स्थान  पर  कम पैसों पर अयोग्य  शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराया जाता है। [4]  इन  वित्त विहीन  कॉलेजों  में भी विश्व विद्यालय  की परीक्षाओं में  नकल का बोलबाला रहता है।  महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन  किये  विना शिक्षा में गुणवत्ता  की कल्पना करना  दिवा स्वप्न ही रहेगा। शिक्षा में  गुणवत्ता के लिए स्वकेंद्र की व्यवस्था समाप्त की जानी  चाहिए।

     शैक्षिक संस्थान राजनीति  के  केंद्र बिंदु  नहीं होने चाहिए। छात्रों को अपनी   समस्याओं  के   निमित्त  धरना -प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य तरीके अपनाना चाहिए। [5]


      शिक्षा की दुगति के लिए राज नेता भी जिम्मेदार  रहे है। उत्तर प्रदेश में  जब कल्याण सिंह ने  नकल रोकने के लिए  नकल अध्यादेश  लागू  किया तो  मुलायम सिंह ने  इस अध्यादेश को राजनीतिक हथियार के रूप में  स्तेमाल करने में नहीं चूके। कल्याण सिंह की सरकार के पतन के पश्चात्  हुए चुनाव में मुलायम सिंह ने छात्रों को स्वकेंद्र करने और नकल अध्यादेश हटाने का आश्वासन देकर सत्ता हासिल करने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि  छात्रों  का रुझान पुस्तकों ,कक्षाओं से हट कर नकल पर केंद्रित हो गया। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में  शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो गई।

 शैक्षिक गुणवत्ता को स्थापित करना एक जोखिम पूर्ण  कार्य 

* राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति  की आवश्यकता
*शैक्षिक गुणवत्ता के लिए विद्यालयों ,महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन आवश्यक
* नकल रोकने के प्रयासों की  राजनीतिक विरोध होने की संभावना

अभिमत 
* देश के सभी प्राथमिक ,माध्यमिक  विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सामान पाठ्यक्रम लागू किया जाय।
*सभी जगह योग्य शिक्षक हों और छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन भी किया जाय।
* मान्यता रहित विद्यालयों और फर्जी विश्वविद्यालयों पर लगाम लगाई जाय।
* निरीक्षण प्रणाली चुस्त दुरुस्त की जाय।

                   विद्यालयों ,महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों एवं छात्रों की संख्या  को दृष्टिगत रख कर यदि  शैक्षिक  गुणवत्ता में  सुधार हो जाय तो निश्चित ही  भारत शिक्षा का  हब  बन सकता है।
                                                                       
                                                         नौ मंजिला हॉस्टल -IISER-Pune                                                                    

शिक्षा में सुधार के  लिए किये गए प्रयास 
* शिक्षा में उच्च स्थान पाने  वाले  20  विश्वविद्यालयों को पहली बार  प्रोत्साहन हेतु  प्रधान मंत्री मोदी ने  10 हजार करोड़ रुपयों का  प्राविधान किया। [6]
* अप्रैल 01,2018 से  उत्तर प्रदेश की शिक्षा में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में एकरूपता के निमित्त सभी प्रकार की संस्थाओं में CBSE के पाठ्यक्रम को लागू करना।
* उच्च शिक्षा में पलायन रोकने हेतु  देश के  उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे IIT`S ,IISER ,NIT`S आदि  में 70,000 -80,000  रुपये मासिक छत्रिवृत्ति एवं रुपये 2,00,000 वार्षिक रिसर्च ग्रांट का प्राविधान [7]
*उत्तर प्रदेश में  माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से यूं पी बोर्ड की परीक्षा वर्ष 2018 में नकल रोकने का सफल प्रयास





बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

जनसंख्या वृद्धि- विकास में बाधक


Asharfi Lal Mishra










पिछले ७० वर्षों में भारत का चतुर्दिक विकास हुआ है। आज अनाज के उत्पादन में भारत आत्म -निर्भर है। कम्प्यूटर  टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में  विश्व में U S A  और चीन के बाद भारत का स्थान आता है। अन्तरिक्ष  विज्ञान के क्षेत्र में  विश्व के शीर्ष  देशों में स्थान प्राप्त है। चिकित्सा के क्षेत्र  में  हम अग्रणी और विश्व में सबसे सस्ता इलाज देने में समर्थ हैं। आज भारत की  विश्व की औद्योगिक शक्तियों में गिनती  की जाती है।  परमाणु  शक्ति  संपन्न देशों में भारत की भी गणना की जाती है। ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य  और चीन के  बाद  दूसरे स्थान  पर  आर्थिक  भागेदारी। सुरक्षा परिषद में भी स्थायी सदस्यता के लिए भारत ने अपना दावा ठोंक दिया है।

   लोगों का जीवन स्तर ऊँचा हुआ है। गावों तक सड़कों का जाल फैला हुआ है और प्रत्येक घर में बिजली का प्रकाश पहुँच रहा है ,शिक्षा के लिए गांव -गांव में विद्यालय की सुविधा उपलब्ध है फिर भी हमारी गिनती उन्नत देशों में नहीं हैं। 

 एक तरफ विकास और दूसरी तरफ जनसँख्या में वृद्धि।  विकास और  जनसँख्या दोनों  में समान्तर गति  होने के कारण विकास बढ़ती हुयी जनसंख्या में विलीन हो जाता है इसके कारण वास्तविक विकास परिलक्षित नहीं होता। 

  यदि  जनसँख्या की वृद्धि दर को कम किया   जाय तो यही विकास  जनता में परिलक्षित होने लगे अथवा विकास गुणोत्तर दिशा में हो।
चीन ने अपनी जनसँख्या को नियंत्रित करने के लिए एक बच्चा एक परिवार  की नीति लागू कर चुका  है।

 भारत में भी जनसँख्या को नियंत्रित करने के अनेक प्रयास हुए लेकिन बहुत अच्छे परिणाम नहीं आये।  परिवार नियोजित करने में  केवल शिक्षित वर्ग  ने ही रूचि दिखाई। अनुसूचित जातियों /जनजातियों एवं  मुस्लिम वर्ग ने परिवार नियोजित करने में बहुत कम रूचि ली।  

 कुछ  राजनेता जिनका असर अपने वर्ग में था उन्होंने  भी  कभी भी छोटे परिवार  के लाभ नहीं बताये।  उदहारण के लिए बी आर अम्बेडकर  बारह भाई बहिन थे उन्होंने भी छोटे परिवार के लाभ बताने की जरूरत नहीं समझी। मुस्लिम धर्म गुरुवों  ने  भी परिवार नियोजित करने में रूचि नहीं ली। 

 वर्तमान में  सरकार परिवार नियोजित करने में कुछ प्रोत्साहन तो दे रही है लेकिन उसके बहुत अच्छे परिणाम नहीं दिखलाई पड़ रहे है। 

 असम सरकार ने  परिवार नियोजन के निमित्त  सबसे पहले  इस दिशा में  ठोस   कदम  उठाया। असम सरकार ने  दो बच्चों   से अधिक  बच्चों  वाले परिवार को सरकारी  नौकरी और सरकारी सुविधाओं से  वंचित  कर दिया।  पंचायत /स्थानीय निकाय  के निर्वाचन के लिए भी  अयोग्य घोषित कर दिया[1] 
      
असम सरकार ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव   भेजा है कि दो बच्चों से अधिक बच्चो वाले राज्य विधान सभा की सदस्यता  रद्द की जाय और भविष्य में उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित किया जाय [2] 

असम प्रदेश की सरकार द्वारा परिवार नियोजित  करने के लिए उठाया गया कदम सराहनीय है। परिवार नियोजित  करने के लिए असम विधान  सभा  का निर्णय  अन्य  राज्यों  के लिए मार्ग दर्शक के रूप में कहा जा सकता  है। 

असम विधान सभा का अनुकरण अन्य प्रदेशों और केंद्र के लिए आसान नहीं है  क्योंकि बड़े परिवार वाले राजनेता इसके विरुद्ध  ध्रुवीकृत हो जाने की संभावना है। 

प्रोत्साहन भत्ता 

सातवें वेतन आयोग की सिफारिश में परिवार नियोजन के निमित्त अलग से भत्ता को दिए जाने  वाले प्रोत्साहन भत्ते की आवश्यकता नहीं है  क्योंकि छोटे परिवार के निमित्त जागरूकता बढ़ गई है।  लेकिन यह  संस्तुति  शिक्षित वर्ग के आंकड़ों के आधार पर ही आधारित है। सातवें वेतन आयोग ने  अपनी सिफारिश करने के पहले मुस्लिम वर्ग , एस सी /एस टी  एवं  आदिवासी वर्ग में बढ़ती पारिवारिक स्थिति   पर ध्यान नहीं दिया।

अभिमत 
* वर्तमान में परिवार नियोजन हेतु दिए जाने वाले प्रोत्साहन भत्ते जारी रहने चाहिए। 
*अनेक विरोधाभास के बावजूद सरकारी सुविधाएँ दो बच्चो तक सीमित की जा सकती हैं।
* दो बच्चों तक शिक्षा भत्ता, छात्र वृत्ति,नौकरी में आरक्षण या कुछ गुणांक निर्धारित किये जा सकते हैं।  

अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...