Blogger: Asharfi Lal Mishra
Asharfj Lal Mishra |
Updated on 13/01/2018
१२ जनवरी २०१८ को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस स्वयं में ऐतिहासिक है। इससे एक बात अवश्य लक्षित होती है कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों में कुछ असंतोष अवश्य है लेकिन न्यायपालिका की गरिमा को देखते हुए माननीय जजों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बचना चाहिए था। इससे न केवल न्यायपालिका वल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले जजों की प्रतिष्ठा में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। इससे जनता में भी कोई अच्छा सन्देश भी नहीं गया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से वकीलों और राजनेताओं में खेमा बंदी को बल मिलेगा।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से ऐसा सन्देश जनता में गया कि सुप्रीम कोर्ट में सी जे आई अपने विवेकानुसार पीठों का निर्धारण करते हैं। वरिष्ठ जजों को वरीयता नहीं देते जब कि कार्य संपादन में शक्तियां समान हैं।
अभिमत
प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले माननीय जजों को सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाये रखने के लिए आपस में बैठ कर असंतोष के बिंदु को हल कर लेना चाहिए।
बिल्कुल सही कहा सबसे पहले मीडिया में जाने की बजाय राष्ट्रपति जो कि नियोक्ता है वहा जाना चाहिए अटॉर्नी जनरल भी शिकायत को सरकार तक पहुंचा सकते
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