लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
जैसे जैसे भारतीय लोकतंत्र की आयु बढ़ती जाती है वैसे वैसे लोकतांत्रिक मूल्यों में ह्रास होता जाता है। 2021 में भारत स्वतंत्रता की हीरक जयंती का उत्सव मनाने जा कहा है फिर भी कुछ दिशाओं में सरकार आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पा रही है।
सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की हो लेकिन आज तक जनप्रतिनिधियों की योग्यता निर्धारित करने पर सभी दल शांत रहते हैं।
आज चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा तक की सेवा में जाने के लिए योग्यताएं निर्धरित है लेकिन जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर है उनके लिए आज तक कोई भी योग्यता निर्धारित नहीं है।
जनतंत्र के उद्भव काल में लोक सभा , विधान सभाओं आदि के निर्वाचन में समाज सेवा के लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति ही चुनाव मैदान में उतरते थे लेकिन आज स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है। आज स्थिति यह है कि न ही शिक्षा की जरूरत है ,न ही समाज सेवा की।
आज चुनाव मैदान में उतरने के लिए जरूरत है :
1 -धनबल
2 -क्षेत्र में दबदबा
3 - कानून से बचने की क्षमता
4 -आपराधिक छवि
5 -दल के मुखिया की जनता में छवि
चूंकि उम्मीदवार की समाज में कोई पृष्ठ भूमि नहीं होती अतः धनबल से ही समाज में पहचान बनाई जा सकती है।
यदि क्षेत्र में दबदबा है तो भी जनता से वोट मिलने की उम्मीद की जा सकती है।
भारत निर्वाचन आयोग या राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा सभी चुनावों में प्रत्येक पद के उम्मीदवार के लिए चुनाव में चुनाव व्यय निर्धारित है फिर भी इस सीमा का उल्लंघन करना बहुत ही आसान है।
किसी भी चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले उम्मीदवार कितना भी धन प्रचार में खर्च कर सकता है। अधिसूचना पूर्व प्रत्याशी द्वारा किया गया खर्च कानून की दृष्टि में कोई अपराध ही नहीं है। यह है क़ानून से बचने की प्रत्याशी क्षमता।
अधिसूचना पूर्व प्रत्याशी लाखों/करोड़ों रुपये अपने क्षेत्र में कट आउट ,होर्डिंग,पोस्टर ,बैनर ,वॉलपेंटिंग आदि पर खर्च कर देते हैं।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की अधिसूचना के पूर्व प्रत्याशी का प्रचार |
चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद प्रशासन उक्त प्रचार सामग्री को हटाने पर लाखों/करोड़ों रुपये व्यय करता है।
रहा न प्रत्याशी का दिमाग ब्यूरोक्रेसी के आगे आगे चलता है। जब पोस्टर ,बैनर लगाए जाते है या वाल पेंटिंग होती है तब प्रशासन सोता है जब प्रत्याशी का जनता में प्रचार हो चुका होता है तब कहीं प्रशासन की नींद खुलती है। हमारा कहने का आशय यह है जब अधिसूचना जारी नहीं होती उसके पहले ही प्रत्याशी क्षेत्र में प्रचार सामग्री के माध्यम से अपने को सशक्त उम्मीदवार के रूप में जनता के बीच प्रस्तुत करने में सफल रहते हैं। पर्यावरण को कितनी हानि होती है यह न तो प्रत्याशी समझता है और न ही प्रशासन।
इस अप्रत्याशित प्रचार और खर्च पर प्रिंट मीडिया के रिपोर्टर्स की आँखें सदैव बंद रहती है.हर खम्भे पर लगे पोस्टर ,जगह जगह होर्डिंग ,बैनर हर किसी को आकर्षित करते हैं लेकिन लोकतंत्र के प्रहरी एवं चतुर्थ स्तम्भ की निगाह में ऐसा कुछ दिखाई ही नहीं देता।
ओपिनियन
1 - प्रत्येक स्तर पर उम्मीदवार की अनिवार्य योग्यता निर्धारित हो।
2 -अनिवार्य योग्यता में दो बच्चे वालों की प्रत्याशिता को जोड़ा जा सकता है। जिससे देश में बढ़ रही जनसँख्या पर अंकुश लगेगा।
3 - चूँकि पदों में आरक्षण है इसलिए आरक्षण में भी दो बच्चों की शर्त जोड़ी जा सकती है। इससे भी जनसँख्या में नियमन होगा।
4 -अधिसूचना पूर्व चुनाव प्रचार अवैध ठहराया जाय।
5 - यदि प्रत्येक पद की अनिवार्य शैक्षिक एवं समाज सेवा की अर्हता निर्धारित कर दी जाय तो चुनाव पूर्व प्रचार नहीं होगा एवं अधिसूचना के बाद प्रचार सामग्री हटाने की जरूरत नहीं होगी।
6 - जनतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए जनप्रतिनिधियों के लिए समाज सेवा अनिवार्य की जाय। इसके लिए समाज सेवा में सर्टीफिकेट कोर्स ,डिप्लोमा कोर्स एवं डिग्री (B. Tech.) पाठ्य क्रम प्रारम्भ किये जाय।
उपयोगी आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
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