लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
संवैधानिक स्थिति : १४ मई १९५४ को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश के द्वारा भारत का संविधान (Constitution of India) में परिशिष्ट के अन्तर्गत अनुच्छेद 35 (A) को जोड़ा गया। अनुच्छेद ३५(A) की वैधानिकता की सुनवाई दीपावली के बाद होगी। (1)
35(A) का क्षेत्र : जम्मू ,कश्मीर और लद्दाख
अनुच्छेद 35(A) का विवरण :
(१) यह अनुच्छेद जम्मू,कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में स्थायी नागरिकता को परिभाषित करता है।
(२) जम्मू,कश्मीर और लद्दाख के मूल निवासी या १४ मई १९५४ की तिथि को १० वर्ष तक निवास करने वाले को नागरिकता के अधिकार प्रदत्त होंगे। इन नागरिकों को नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया जायेगा।
(३) प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही इस राज्य में स्थानीय निकायों /विधान सभा के मतदाता या उम्मीदवार हो सकते हैं।
(४)प्रमाण पत्र धारक को ही भू-संपत्ति का अर्जन ,राजकीय सेवा में अवसर,राजकीय छात्रवृत्ति की सुविधा आदि राजकीय सुविधाएँ प्राप्त होंगी।
(५)प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही जम्मू,कश्मीर और लद्दाख में भू-स्वामी हो सकते हैं।
(६) राज्य की विधान सभा २/३ के बहुमत से नागरिकता की शर्तों में परिवर्तन कर सकती है।
अनुच्छेद की सकारात्मक दिशा :
(१) क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान
अनुच्छेद की नकारात्मक दिशा :
(१) देश के बटवारा हो जाने पर पाकिस्तान से जम्मू & कश्मीर राज्य में आने वाले शरणार्थी जिनमें लगभग ८० % दलित या पिछड़े वर्ग से सम्बंधित हैं ,राज्य की नागरिकता से वंचित है यद्यपि यह शरणार्थी आज भारत के नागरिक हैं और लोक सभा के मतदाता हैं।
(२) उद्योगपति इस राज्य में उद्योग स्थापित स्थापित नहीं करना कहते जिससे इस राज्य के युवाओं में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है।
(3)इस अनुच्छेद में पुत्रियों को नागरिकता के अधिकार प्राप्त हैं लेकिन यदि उसने जम्मू & कश्मीर के बाहर के व्यक्ति से विवाह कर लिया है तो उसकी संतानों को नागरिकता के अधिकार नहीं प्राप्त होंगे।
अभिमत:आज क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान के स्थान पर वैश्विक संस्कृति विकसित हो रही है। उद्योग रहित देश आज के आर्थिक युग में पिछड़ रहे हैं। आशा है कि इस दृष्टिकोण से जम्मू कश्मीर का विकास सुनिश्चित हो सकता है।
35(A) का क्षेत्र : जम्मू ,कश्मीर और लद्दाख
अनुच्छेद 35(A) का विवरण :
(१) यह अनुच्छेद जम्मू,कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में स्थायी नागरिकता को परिभाषित करता है।
(२) जम्मू,कश्मीर और लद्दाख के मूल निवासी या १४ मई १९५४ की तिथि को १० वर्ष तक निवास करने वाले को नागरिकता के अधिकार प्रदत्त होंगे। इन नागरिकों को नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया जायेगा।
(३) प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही इस राज्य में स्थानीय निकायों /विधान सभा के मतदाता या उम्मीदवार हो सकते हैं।
(४)प्रमाण पत्र धारक को ही भू-संपत्ति का अर्जन ,राजकीय सेवा में अवसर,राजकीय छात्रवृत्ति की सुविधा आदि राजकीय सुविधाएँ प्राप्त होंगी।
(५)प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही जम्मू,कश्मीर और लद्दाख में भू-स्वामी हो सकते हैं।
(६) राज्य की विधान सभा २/३ के बहुमत से नागरिकता की शर्तों में परिवर्तन कर सकती है।
अनुच्छेद की सकारात्मक दिशा :
(१) क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान
अनुच्छेद की नकारात्मक दिशा :
(१) देश के बटवारा हो जाने पर पाकिस्तान से जम्मू & कश्मीर राज्य में आने वाले शरणार्थी जिनमें लगभग ८० % दलित या पिछड़े वर्ग से सम्बंधित हैं ,राज्य की नागरिकता से वंचित है यद्यपि यह शरणार्थी आज भारत के नागरिक हैं और लोक सभा के मतदाता हैं।
(२) उद्योगपति इस राज्य में उद्योग स्थापित स्थापित नहीं करना कहते जिससे इस राज्य के युवाओं में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है।
(3)इस अनुच्छेद में पुत्रियों को नागरिकता के अधिकार प्राप्त हैं लेकिन यदि उसने जम्मू & कश्मीर के बाहर के व्यक्ति से विवाह कर लिया है तो उसकी संतानों को नागरिकता के अधिकार नहीं प्राप्त होंगे।
अभिमत:आज क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान के स्थान पर वैश्विक संस्कृति विकसित हो रही है। उद्योग रहित देश आज के आर्थिक युग में पिछड़ रहे हैं। आशा है कि इस दृष्टिकोण से जम्मू कश्मीर का विकास सुनिश्चित हो सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें