द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र
Updated on 13/12/20
प्रश्न : क्या सेवानिवृत्ति के बाद अनिवार्य रूप से जाति की वैधता है?
उत्तर : हमारा उत्तर सकारात्मक होगा कि सेवा निवृत्ति के बाद भी जाति की वैधता मानी जानी चाहिए।
उक्त प्रश्न के उत्तर में हमारा विचार है यदि किसी व्यक्ति ने किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करने में या लाभ प्राप्त करने में जाति का उल्लेख किया है भले ही आरक्षण जैसी स्थिति न भी हो तब भी जाति की वैधता मानी जानी चाहिए ।
किसी भी संस्था में सेवा हेतु आवेदन पत्र में यदि जाति का उल्लेख (कॉलम ) है तो उसमें भी नियोजक का कुछ आशय छिपा रहता है इसीलिए आवेदन प्रपत्र में जाति का जिक्र अनिवार्य होता है।
जाति छिपाकर सेवा प्राप्त करना अपराध की श्रेणी आता है। यदि किसी व्यक्ति ने जाति छिपाकर सेवा प्राप्त की है और सेवानिवृत्ति के बाद जाति का भेद खुलता है तो निश्चित ही ऐसे व्यक्ति से सेवा अवधि में प्राप्त लाभों की वसूली की जानी चाहिए।
हाँ ,यह हो सकता है कि सेवा निवृत्ति के बाद व्यक्ति जाति /धर्म में बदल दे। उस स्थिति में देखा जाना चाहिए कि व्यक्ति ने किन परिस्थितियों में और क्यों जाति /धर्म क्यों बदला। अगर व्यक्ति का उद्देश्य मूल जाति को छिपाने का है तो निश्चित ही उसका धर्म /जाति के बदल जाने मात्र से मूल जाति जो सेवा से पूर्व थी उसकी सेवानिवृत्ति के बाद भी वैधता समाप्त नहीं होती।
लगभग सभी प्रकार की सेवाओं में जाति का उल्लेख करना अनिवार्य होता है यहाँ तक कि किसी निर्वाचन (समाज सेवा ) में भी जाति का उल्लेख करना आवश्यक है। भारत में संसद और विधान सभाओं के चुनाव में राजनीतिक दलों दवरा टिकट वितरण में भी जाति का भी विशेष ध्यान रहता है।
जाति छिपाने पर दंड
जाति छिपाने पर खरगोन ,मध्य प्रदेश के जिलाधिकारी ने सरपंच को हटाया[1]
अभिमत
सेवा योजन के समय की जाति सेवा निवृत्ति के बाद भी बैध ही रहेगी क्योंकि व्यक्ति ने सेवा प्राप्त करने में जाति का लाभ लिया है।
प्रश्न : जातिगत भेदभाव के बारे में वे क्या सोचते हैं?
उत्तर : पहले जाति व्यवसाय से जुडी थी। कालांतर में जन्म से जुड़ गयी। जाति किसी को आगे बढ़ने से रोकती नहीं। वर्तमान में लोकतंत्रीय शासन में जाति व्यवस्था कुछ लोगों के लिए वरदान तो कुछ लोगों के लिए अभिशाप है।
जहां तक हम पाते है सार्वजनिक स्थानों पर कहीं भी जाति नहीं पूँछी जाती। सार्वजानिक स्थान जैसे होटल ,बाजार ,मेला ,रेल, बस ,वायुयान ,मंदिर,सार्वजानिक समारोह आदि में जाति नहीं पूँछी जाती।
राजनीतिक लाभ के लिए ,मतों के ध्रुवीकरण में , चुनाव में टिकट पाने में , नौकरियों में आरक्षण में ,सरकारी लाभ लेने में जाति स्वयं बोलती नजर आती है। कहने का आशय यह है कि आज लोकतंत्र में आरक्षित वर्ग में जातिवाद वरदान साबित हो रहा है। माना कि इस आरक्षण का उद्देश्य सदियों से दबे कुचले लोगों को सामान्य धारा में लाने का है लेकिन जो लोग सामान्य से ऊपर उठ चुके हैं उन्हें हटाया भी तो जा सकता है। ऐसा न होने से समाज में एक नयी असमानता की खाई पैदा हो रही है और वह है आर्थिक ,सामाजिक़ एवं शैक्षिक असमानता।
अब समाज में नई विषमता जो आर्थिक ,शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टि से पैदा हो रही है उसे समाप्त करना चाहिए।
अभिमत
1- नव धनाढ्यों को आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए.
2- देश में आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए आरक्षण आर्थिक आधार पर हो।
3-शैक्षिक विषमता को दूर करने के लिए गरीबों को पूरी तरह से शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जायेँ ।
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