गुरुवार, 21 जनवरी 2021

शैक्षिक संस्थाओं में डिजिटल शिक्षा का प्रवेश

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 

 




जैसे जैसे मानव जाति  में सांस्कृतिक  विकास हुआ वैसे वैसे शिक्षा पद्धति में भी  विकास हुआ। शिक्षा ही वह अभूतपूर्व विधा है जो मानव को पशुओं से  अलग करती है अन्यथा पशु एवं  मनुष्य में कोई अंतर ही नहीं होता।  

मानव सभ्यता को क्रमशः आगे बढ़ाने  में  शिक्षा को ही श्रेय दिया जा सकता है। 

प्रारम्भ में शिक्षा मौखिक थी।  ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में शिक्षा मौखिक ही दी जाती थी। कालांतर में ज्ञान भोजपत्रों एवं शिलालेखों के रूप में सामने आया। जब कागज का आविष्कार हुआ तो मौखिक ज्ञान  पांडुलिपियों के रूप में आया। जब छपाई का विकास हुआ तो  पहले छपाई ब्लाक से और बाद में प्रिंटिंग प्रेस और अब छपाई  कंप्यूटर से होने लगी। 

ज्ञान प्राप्त करने की विधियां 

1 - श्रव्य 

2 -कण्ठ्य 

3 -मौखिक 

4  -दृश्य 

5  -पाठ्य 

6  - लेख्य 

7  -डिजिटल 

श्रव्य , कण्ठ्य ,मौखिक :

इन  विधाओं  का एक साथ विकास हुआ। इन विधाओं का प्रयोग सबसे पहले माता और उसके बाद अन्य लोग करते हैं। ऋषियों मुनियों के आश्रमों भी श्रव्य और कण्ठ्य विधियों से ही ज्ञान दिया जाता था। 

दृश्य , पाठ्य,मौखिक  :

जब लेखन विधि का आविष्कार हुआ और ज्ञान पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध हुआ तो ज्ञान देने में दृश्य और पाठ्य विधियों का समावेश हुआ। लगभग एक दशक पूर्व तक   संस्कृत पाठशालाओं,  मकतबों ,मदरसों  में ज्ञान की विधाओं जैसे श्रव्य ,कण्ठ्य ,दृश्य एवं पाठ्य आदि का ही सहारा लिया गया। 

लेख्य :

ज्ञान प्राप्त करने की सभी विधाओं में  लेख्य सर्वोत्तम विधा  है। वर्तमान में सभी शिक्षण संस्थाओं में उक्त ज्ञान की सभी विधाओं जैसे श्रव्य,कण्ठ्य ,पाठ्य ,दृश्य एवं लेख्य एवं मौखिक विधाओं का स्तेमाल होता है।   

                                                      A scene of  Digital class

डिजिटल :

अभी तक शिक्षा प्रणाली में  परम्परागत विधाओं जैसे श्रव्य ,कण्ठ्य ,दृश्य ,पाठ्य , मौखिक और  लेख्य विधा का स्तेमाल होता रहा , लेकिन वर्ष 2020 में जब केवल भारत ही नहीं अपितु  सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी से भयाक्रांत हो गया।  उस आपदा काल की स्थिति में भी भारत सरकार ने एक  उज्जवल अवसर देख कर  नई  शिक्षा नीति के साथ साथ  डिजिटल शिक्षा देने पर बल दिया गया। 

आज चाहे प्राथमिक शिक्षा हो या माध्यमिक या फिर उच्च शिक्षा हो हर कहीं डिजिटल शिक्षा का का तेजी से प्रचलन हो गया है यही नहीं देश में जितने भी कोचिंग संस्थान हैं वहां भी डिजिटल कोचिंग हो रही है। कहने का आशय यह है कि कोरोना काल  में  भारत  को एक सुअवसर प्राप्त हुआ जब   डिजिटल शिक्षा के  युग का प्रारम्भ  हुआ।  

डिजिटल शिक्षा देने में कुछ कठिनाइयाँ :

1 - 35  वर्ष  से अधिक आयु के शिक्षक साधारणतः फीचर फोन का स्तेमाल करते आ रहे है ,उन्हें स्मार्टफोन एवं इंटरनेट का स्तेमाल करना कम ही आता है यद्यपि  सभी शिक्षक डिजिटल ज्ञान देने की अनिवार्यता के  फलस्वरूप स्मार्ट फोन खरीदकर डिजिटल ज्ञान की ओर अग्रसर हैं। 

2 - ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम छात्रों के पास स्मार्ट फोन की उपलब्धता है। नगरीय क्षेत्रों  में गरीब अभिभावक भी स्मार्ट फोन उपलब्ध करने में असमर्थ नजर आ रहे हैं यद्यपि सभी छात्र डिजिटल ज्ञान के लिए उत्सुक नजर आ रहे हैं। 

3 - विना पाठ्य ,कण्ठ्य और लेख्य ज्ञान के डिजिटल ज्ञान कमजोर रहने की सम्भावना है अतः शिक्षा की  परम्परागत शैली को प्राथमिकता दी जाय तभी डिजिटल ज्ञान प्रभावी होगा. 

डिजिटल शिक्षा और निरीक्षण :

देखने में आया है कि अधिकाँश निरीक्षक डिजिटल ज्ञान में शून्य है और वे स्वयं अपने कंप्यूटर ऑपरेटर निर्भर रहते हैं निरीक्षकों को चाहिए वे शिक्षकों को नेट की नवीन विधा को  सीखने का अवसर दें। 

ओपिनियन 

1 - डिजिटल शिक्षा का भविष्य उज्जवल है। 

2 _डिजिटल ज्ञान से छात्रों को  पाठ्यक्रम के साथ साथ ढेर सारी  सहायक  उपलब्ध होगी। 

3 - छात्रों को  विविध विद्वानों और ब्लागरों  के लेख पढ़ने को मिलेंगे। 

4 - छात्रों को ब्लॉग के रूप में अपनी अभिव्यक्ति का अवसर मिलेगा। 

5 - छात्रों के बस्ते(bag) का बोझ घटेगा। 

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...