शुक्रवार, 12 मार्च 2021

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास सांस्कृतिक कार्यक्रम द्वारा

लेखक :अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 


आजादी के पूर्व देश में शिक्षण संस्थाओं की कमी थी लेकिन आजादी के पश्चात्  शिक्षा  वीरों / समाज सेवकों द्वारा शिक्षण संस्थाओं की एक  लम्बी श्रंखला खड़ा कर दी विशेषकर घनी आवादी वाले उत्तर प्रदेश में। इन समाज सेवकों /शिक्षा वीरों का  मुख्य उद्देश्य था नई पीढ़ी को शिक्षित करना। 

उस समय के शिक्षा वीरों एवं शिक्षकों में एक जोश था/ उत्साह था अतः उस समय शिक्षण संस्थाओं में अभिव्यक्ति के विकास के लिए शिक्षण संस्थाओं में सांस्कृतिक कार्य क्रमों पर भी बल दिया जाता था।  


उत्तर प्रदेश में गत तीन दशकों  में परिषदीय ,मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों ,महा विद्यालयों का जाल बिछ गया। परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों ,अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य वेतन प्राप्त करना हो गया वहीँ मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय शिक्षा के कारखाने बन गए। 

सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों / महाविद्यालयों  में   कुछ सीमा तक खेलकूद एवं नाम मात्र को सांस्कृतिक कार्यक्रम जीवित बने रहे। जहाँ  परिषदीय विद्यालओं की बात  है वहां भी बहुत कम ही विद्यालयों में खेल कूद एवं सांस्कृतिक कार्य क्रम होते देखे गए या यों कहिये की लीक पिटती रही।

 कुछ ही ऐसी गिनी चुनी शिक्षण  संस्थाएं होंगी जहां संस्था के छात्रों और शिक्षकों का हॉउसों में विभाजन कर शिक्षणेत्तर  क्रिया कलाप एवं तदनुसार  संस्था का   वार्षिक समारोह होता हो. 
इसका परिणाम यह हुआ कि छात्र किताबी कीड़े बन गए। 

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास कैसे हो :
(1) सम्पूर्ण छात्रों एवं शिक्षकों को विभागों (Houses) में विभक्त कर शिक्षणेत्तर क्रिया कलाप कराये जाय। इससे छात्रों में प्रतियोगिता की भावना पैदा होगी। 
(2 ) गेम्स  एवं स्पोर्ट्स के लिए समय सारिणी में स्थान के साथ साथ मैदान में भी छात्रों को अवसर दिया जाय। 
(3) प्रत्येक संस्था में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराये जाय जिससे छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास होगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम में निम्न कार्य क्रमों पर बल दिया जाय :
1  -कविता  (राष्ट्रीय गीत )
2 -लोक गीत
 3  -काव्य पाठ (माध्यमिक एवं उच्च स्तर पर )
4  - भाषण
 5  -वाद विवाद प्रतियोगिता 
6  -एकांकी
 7  - प्रहसन 
अन्य प्रतियोगितायें :
1 -निबन्ध लेेखन 
2-कला प्रतियोगिता
3-वैज्ञानिक मॉडल 
जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम हों सरस्वती वन्दना  से  प्रारम्भ हों ,इसके लिए प्रत्येक विद्यालय में एक सरस्वती का चित्र भी हो।  बाद में राष्ट्रीय गीत ,उसके बाद अन्य ,सबसे अंत में राष्ट्र गान हो। 

अभिमत 
1 - छात्रों में अभिव्यक्ति के विकास के लिए सप्ताह  के अंत में  या प्रत्येक शनिवार को   सांस्कृतिक कार्यक्रम अवश्य   आयोजित किया जाना चाहिए।  
2- जहां छात्र संख्या और शिक्षकों की  संख्या पर्याप्त हो वहां  शिक्षण संस्था को  4  विभागों (Houses ) में विभक्त कर वार्षिक समारोह कराये जाने चाहिए । 
3 - जहां छात्रों की  संख्या एवं शिक्षकों की संख्या कम हो वहां विद्यालय/संस्था  को 2 विभागों (Houses) में विभक्त कर वार्षिक समारोह आयोजित किया जा सकता। है। 
4 -जहां तक संभव हो प्रत्येक छात्र को किसी न किसी कार्यक्रम में भाग लेने के  लिए प्रोत्साहित किया जाय। 
5 - कई विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ नहीं होते, वहां सम्बंधित निर्देश होना चाहिए। 






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