ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र
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सोमवार, 13 मार्च 2023
सोमवार, 30 जनवरी 2023
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग
-- अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहाँ प्रत्येक भारतीय नागरिक को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त है ।
परन्तु देखने मेरे आ रहा है कि कुछ राजनेता जब सरकार की आलोचना करते करते थक जाते हैँ या उन्हें आलोचना करने का कोई उचित विषय नहीँ मिलता तब उनकी दृष्टि भारत में सृजित साहित्य की ओर जाती है ।
साहित्य समाज का दर्पण है
भाषा कोई भी हो लेकिन उस भाषा में सृजित साहित्य समाज का या तो साक्षात्कार कराता है या फिर उसकी भाषा अलंकारिक हो जाती है लेकिन उसका उद्देश्य कल्याणकारी ही होता है । समग्र रूपेण हम कहना चाहेंगे कि साहित्य तत्कालीन समाज का प्रत्यक्ष दर्शन कराता है । साहित्य सृजन स्वतंत्र होता है जब कि इतिहास लेखन सत्ता से प्रेरित एवं उसके सापेक्ष होता है।
साहित्य की आलोचना
किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर ग्रंथों के रूप में ही संरक्षित होती है और उनके माध्यम से ही प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का हमें ज्ञान होता है। प्राचीन ग्रंथ हमें प्राचीन संस्कृति का ज्ञान कराते है।
ग्रंथ हमारी राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर हैं उनकी आलोचना करना राष्ट्र की आलोचना के समान हैँ ।
इधर देखने में आ रहा है कि कुछ दिग्भ्रमित राजनेता वोट बैंक को दृष्टिकोण में रखकर विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की कटु आलोचना करने से नहीं चूके । रामचरितमानस हिन्दी हिन्दीसाहित्य का न केवल महाकाव्य बल्कि लोकग्रन्थ भी है उसकी आलोचना करना लोक / राष्ट्र का अनादर भी है । इन राज नेताओं यहाँ तक कहना कि कुछ अंश हटा दिया जाय तब वह ग्रन्थ उसी प्रकार अधूरा हो जायेगा जैसे किसी के चेहरे से उसकी नाक काट कर अलग कर दी जाय और फिर उसके चेहरे को देखा जाय ।
बौद्ध धर्मावलंबी स्वामीप्रसाद मौर्य [1 ]और चन्द्र शेखर यादव[2] की रामचरितमानस पर छुद्र टिप्पणी खेद जनक है ।
मानस की महत्ता
रामचरितमानस की महत्ता किसी के आलोचना करने से भी कम नहीं हो सकती । रामचरितमानस न केवल महाकाव्य है बल्कि एक ऐसा लोकग्रंथ है जो हर व्यक्ति के दिल में समाया हुआ है।
मानस एक ऐसा ग्रंथ है जिसकी प्रत्येक पंक्ति समाज को दिशा देती है । इसकी महत्ता इसी बात से जानी जा सकती है कि मुगल काल और ब्रिटिश काल मे जब आम जनता त्रस्त और व्याकुल थी , तब मानस से ही उसे समाज धर्म का एवं कर्तव्य का बोध होता था ।
हाँ यदि किसी में सामर्थ्य है तो रामचरितमानस से उत्कृष्ट कोटि का महाकाव्य जनता को पढ़ने के लिए उपलब्ध कर सकता है ।
सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न करने का कुत्सित प्रयास
इधर देखने में आ रहा है कि कुछ राजनेता समाज में विद्वेष फैलाकर जातीय संघर्ष कराना चाह रहे हैँ, यह लोकतंत्र का सबसे घृणित रूप है । आजादी के 76 वर्ष बाद देश में जातिवादी विषमता की जो खाई धीरे धीरे समापन की ओर जा रही थी , उसे सत्ता के लोभी ,सामाजिक समरसता के विध्वंसक राजनेता समाज में जातिवाद की जड़ों को पुनः सिंचित करने लगते हैं। इन्हे समाज सेवक न कह कर समाज भंजक कहना चाहिए। ऐसे सत्ता लोभी, समाज भंजक राजनेताओं को जब कुछ नहीं मिला तो अपनी भारतीय सांस्कृतिक धरोहर पर ही हमला करना शुरू कर दिया ।
विश्व में सभी धर्मों के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए सदैव प्रयास रत रहते हैं लेकिन अफसोस है भारतीय लोकतन्त्र में कुत्सित मानसिकता एवं सत्ता लोभ के कारण कुछ सिरफिरे राजनेता भारतीय संस्कृति पर हमला करने से नहीं चूक रहे हैं।
अभिमत
1- राज नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर को संजोकर रखने वाले ग्रंथों की आलोचना करने से अपने को दूर रखें।
2- रामचरितमानस जैसे ग्रंथों की आलोचना से जनता में जातीय संघर्ष की भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
सोमवार, 9 जनवरी 2023
जातीय जनगणना राष्ट्रीय प्रगति में बाधक
ब्लॉगर - अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
आज जन संख्या की दृष्टि से भारत का स्थान विश्व में प्रथम है।[a]
सजग लोगों ने स्वयं ही अपने परिवार को सीमित कर लिया जब कुछ जातियों के लोग जनसंख्या को वोट बैंक मानते रहे ।उनका तर्क रहा कि जनसंख्या के अनुपात में सत्ता एवं आरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित होगी। ऐसे लोग ही सदैव जातीय जनगणना की मांग कर रहे है।
कभी समाज में जातीय भेद भाव था परन्तु आज यही जातीय भेद भाव राजनीति का सशक्त अस्त्र बन गया है । संविधान की मूल भावना है कि समाज में जातीय विषमता की खाई धीरे धीरे समाप्त हो । आज सार्वजनिक स्थानों पर कहीं भी जातीय विषमता या भेद भाव नजर नहीं आता है । हाँ आर्थिक विषमता अवश्य है
छोटा परिवार सुख का आधार
एक समय था जब यह माना जाता था कि अधिक जनसंख्या भी देश की गरीबी का एक कारण है अतः सरकार का नारा था कि " छोटा परिवार सुख का आधार "
इस स्लोगन की ओर शिक्षित लोगों का ध्यान गया और वे इस ओर अग्रसर भी हुए जो बाद में समाज में नव समृद्ध हो गए। इसके विपरीत कुछ लोग वोट बैंक समृद्धि के लिहाज से या यों कहिए सत्ता पाने के उद्देश्य से बड़ा परिवार शक्ति का आधार मानते रहे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में समाज की दो धाराऐं चल पड़ीं:
1-छोटा परिवार सुख का आधार
2- बड़ा परिवार शक्ति का आधार
दूसरे स्लोगन ,"बड़ा परिवार शक्ति का आधार " को अपनाने वाले लोग आज समाज में आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े गये लेकिन वोट बैंक की शक्ति के आधार पर सत्ता में, प्रशासन में भागीदारी चाहते हैं ऐसे लोग ही भारत में जातीय जन गणना चाहते हैं।
जातीय जनगणना विकास में बाधक
1-स्वतंत्रता के बाद जिन जातियों को वोट बैंक माना गया वे सभी जातियां आज आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। उदाहरण के लिए अल्प संख्यक (मुस्लिम सुन्नी वर्ग) , अनुसूचित (जाटव को छोड़कर) एवं अनुसूचित जनजाति।
2- जहां बात ओबीसी की आती है उसमें कुछ जातियां जैसे अहीर (यादव, ग्वाला), कुर्मी (कटियार, सचान, गंगवार,पटेल) बहुत ही हर दृष्टि से समुन्नत हैं लेकिन आरक्षण के कारण ये जातियां भी जातीय जनगणना की समर्थक है।
3-सत्ता और प्रशासन में भागीदारी की भावना (आरक्षण) के कारण प्रत्येक व्यक्ति बड़े परिवार को बढ़ावा देगा जिससे देश की प्रगति अवरुद्ध होगी ।
4- बड़े परिवार को प्रोत्साहन मिलेगा,देश का विकास अवरूद्ध होगा, गरीबी बढ़ेगी।
जातीय जनगणना तकनीकी दृष्टि से मुश्किल कार्य
1-आज कस्बों और नगरों में रहने वालों की असली जाति का पता लगाना लोहे के चने चबाना है ।
2- आज लोग अपने मूल स्थान से बाहर कहीं निवास करने पर अपनी जाति बदल कर निवास कर हैं।
3- आरक्षण का लाभ पाने के लिए लोग अपनी जाति बदल रहे हैं।
4- अब हम कुछ बदली जातियों के उदाहरण दे हैं जैसे:
अ - चौहान - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
ब - राठौर - सामान्य और पिछड़े वर्ग के लोग लिखते हैं।
स - गौतम - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
द - गोयल - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
इ शर्मा - सामान्य और पिछड़े वर्ग के लोग लिखते हैं।
आदि आदि अनेक शब्द बहु जाति सूचक हैं।
महा नगरों में जाति का पता लगाना मुश्किल
एक नगर से दूसरे नगर में निवास करने पर एकल परिवार की जाति का पता लगाना मुश्किल कार्य।
जाति का प्रमाणीकरण
अब प्रश्न उठता है कि जाति का प्रमाणीकरण कौन करेगा ? गांवों में प्रधान , लेखपाल आदि तो क्या इसमें भ्रष्टाचार नहीं होगा?
कस्बों, नगरों , महानगरों में सभासद, विधायक , सांसद जाति प्रमाणित करेंगे तो क्या उक्त सभी लोग सब लोगों की जाति से परिचित हैं ।निश्चित ही जाति प्रमाणीकरण में घोर भ्रष्टाचार संभावित है।
Updated on 11/01/2023
बिहार में जातीय जनगणना
बिहार में जातीय जनगणना प्रारम्भ हो गई जिसकी रोक के लिए 11 जनवरी 2023 को S C में याचिका दाखिल हुई ।[1]
अभिमत
1- जनसंख्या की गणना में आर्थिक , शैक्षिक पहलू एवं व्यवसाय शामिल किया जाना चाहिए।
2- जातीय जनगणना राष्ट्रीय विकास में बाधक होगी।
3- आरक्षित वर्ग में समुन्नत जातियों को रेखांकित किया जाना चाहिए।
4- राजनीति भी व्यवसाय है अतः व्यवसाय में राजनीति भी लिखी जानी चाहिए ।
Author -Asharfi Lal Mishra
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022
सेवा निवृत्ति आयु बढ़ाना राजनीतिक अदूरदर्शिता
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति आयु को बढ़ाने का अधिकार तो है लेकिन बिना राष्ट्रीय हानि लाभ का आकलन किए कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति आयु बढ़ाना अदूरदर्शिता होगी।
सेवा निवृत्ति आयु बढ़ाने से हानियाँ
1- 60 वर्ष की आयु के बाद शारीरिक क्षमता में कमी आ जाती है अतः हर कर्मचारी आगे सेवा नहीं करना चाहता।
2- फील्ड या बॉर्डर या फिर उंचाई पर कार्य प्रभावित होगा।
3- पेंशन में वृद्धि के लालच में कर्मचारी स्वेच्छा से सेवा निवृत्त नहीं होना चाहते।
4-जिंक फूड एवं फास्ट फूड के प्रचलन के कारण कर्मचारियों में शारीरिक मोटापा बढ़ रहा है जिसके कारण भी कर्मचारियों में कार्य क्षमता कम हो रही है।
5- लगभग 10 % कर्मचारी ही शारीरिक रूप से फिट रहते है उन्हें आगे काम का अवसर दिया जा सकता है।
6- कम क्षमता के कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति आयु बढ़ाने से राष्ट्रीय क्षति होगी।
7- रोजगार पाने की पंक्ति में खड़ी युवा पीढ़ी में भी असन्तोष फैलेगा।
8-विपक्ष को एक राजनीतिक अवसर उपलब्ध होगा।
लाभ
1- सेवा निवृत्त कर्मचारियों को GPF एवं ग्रेच्युटी का भुगतान न करने से सरकार को वित्तीय राहत मिलेगी।
2-कुछ अनुभवी एवं कर्मठ कर्मचारियों का भी लाभ मिलेगा।
ओपिनियन
1-सेवा निवृत्ति आयु बढ़ाना राजनीतिक अदूरदर्शिता होगी।
2- सेवा निवृत्ति बढ़ाने से राष्ट्रीय क्षति होगी।
3-रोजगार पाने की पंक्ति में खड़ी युवा पीढ़ी में असंतोष फैलेगा।
4- विपक्ष को एक राजनीतिक मुद्दा मिलेगा।
शुक्रवार, 17 जून 2022
अग्निपथ योजना का विश्लेषण
--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
Updated on 03/01/2023
मोदी सरकार की अग्निपथ योजना का संक्षिप्त विश्लेषण निम्न्वत है:
1-अनिवार्य सैनिक सेवा
आज सारा विश्व परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ा हुआ है ।कोई भी देश पूर्ण रूपेण आत्म निर्भर नहीँ है ।आज व्यापार भी परमाणु धमकी से प्रभावित हो रहा है। कब कौन देश किस देश को अपने शिकंजे में जकड़ ले कहा नहीँ जा सकता।
आज हर देश की सीमाएँ सदैव खतरे में ही रहती हैँ । इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए विश्व के कई देशों ने अपने यहाँ अनिवार्य सैनिक सेवा लागू कर दी । इनमें प्रमुख देश हैँ इजराइल, रूस, ब्राजील,उत्तरी कोरिया, दक्षिण कोरिया आदि ।
कुछ ऐसे भी देश हैं जहाँ महिलाओं के लिए भी अनिवार्य सैनिक सेवा है । जैसे इजराइल ।
अग्निपथ योजना से स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि भारत भी अनिवार्य सैनिक सेवा के लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहता है। वर्तमान परिस्थितियों में अग्निपथ योजना उत्तम है लेकिन इस योजना के कार्यान्वयन से पूर्व इसकी महत्ता एवं आवश्यकता का जनता में प्रचार प्रसार किया जाना जरूरी था।
2-बढ़ती वरिष्ठ नागरिकों की आवादी
देश में वरिष्ठ नागरिकों की जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसी के साथ कार्यरत कर्मचारियों की तुलना में पेंशनरों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है।
कहने का अर्थ यह है एक तरफ जहाँ भारत बूढ़ा हो रहा है तो दूसरी तरफ युवा शक्ति में कमी आ रही है । इसका अर्थ आप यह भी लगा सकते हैं कि खर्चा अधिक आय कम।
3-बढ़ता वित्तीय असंतुलन
वर्तमान में रक्षा बजट का लगभग 83% वेतन एवं पेंशन पर खर्च हो जाता है [a] रही बात शेष बजट से सेना का आधुनिकीकरण करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस अग्निपथ योजना के माध्यम से पेंशन में खर्च होने वाला बजट सेना के आधुनिकीकरण के काम आयेगा।
4-लाभ
(1)धीरे धीरे देश अनिवार्य सैनिक सेवा की ओर अग्रसर होगा।
(2) पेंशन न देने के कारण बचत का बजट सेना के आधुनकीकरण में काम आयेगा।
योजना का विरोध
नवयुवकों द्वारा अग्निपथ का विरोध जिस ढंग से किया जा रहा है वह निंदनीय है। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, आगजनी करना , आवागमन बाधित करना जैसे कार्य राष्ट्र विरोधी हैं।
अभिमत
(1 ) सेना से अवमुक्त अग्निवीरों को केन्द्रीय असैनिक बलों / प्रांतीय सशस्त्र पुलिस में कुछ पद आरक्षित किए जा सकते हैं।
(2) सेना से अवमुक्त अग्निवीरों को केन्द्र/राज्य की सेवाओं में कुछ वेटेज अंक भी दिए जा सकते हैं जैसे NCC के लिए वेटेज अंक दिए जाते हैं।
(3) नवयुवकों द्वारा इस योजना का विरोध करने का तरीका अनुचित एवं निंदनीय।
(4) अग्निवीरों को राज्यों में होम गार्ड सेवा में वरीयता दी जानी चाहिए।
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022
गार्गी : एक महान दार्शनिक
--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
जब जब वैदिक कालीन दार्शनिकों ,विद्वानों एवं तत्व वेत्ताओं का उल्लेख होता है तब तब महिला विद्वानों में ब्रह्मवादिनी कन्या गार्गी का उल्लेख सर्वोपरि होता है। गार्गी, गर्गवंशीय वचक्नु नामक ऋषि की पुत्री थी और नाम रखा गया " वाचकन्वी गार्गी "। गार्गी का जन्म लगभग 700 ईसा पूर्व माना जाता है।
विदुषी गार्गी ने एक बार तात्विक वाद विवाद में ऋषि याज्ञवल्क्य को भी निरुत्तर कर दिया था। ऋषि याज्ञवल्क्य अपने समय के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक माने जाते थे और आज भी। गार्गी ने न केवल वैदिक वाद विवाद में ख्याति प्राप्त की अपितु वेदों की ऋचाओं के लिखने भी अमूल्य योगदान किया।
ऋषि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियां थी कात्यायनी और मैत्रेयी। कात्यायनी गृहस्थ महिला थी जब कि मैत्रेयी विदुषी , तत्व वेत्ता एवं अपने पति द्वारा रचित वेदों की ऋचाओं को लिपिवद्ध करने में सहायता करती थी। अतः ऋषि याज्ञवल्क्य मैत्रेयी का बहुत अधिक आदर करते थे।
देवी के रूप में गार्गी की पूजा
चूँकि ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी पहली पत्नी कात्यायनी की तुलना में दूसरी पत्नी मैत्रेयी का बहुत आदर करते थे इसलिए कात्यायनी ,मैत्रेयी से मन ही मन ईर्ष्या करने लगी। एक दिन ऐसा आया कि वाचकन्वी गार्गी शास्त्रार्थ के लिए ऋषि याज्ञवल्क्य के आश्रम आ पहुंची। शास्त्रार्थ में गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य को निरुत्तर कर दिया। इस घटना से कात्यायनी अति प्रसन्न हुईं और वाचकन्वी गार्गी की भूरि भूरि प्रशंसा की।
गार्गी -याज्ञवल्क्य संवाद |
कात्यायनी ,ऋषि कात्यायन की पुत्री थीं। कात्यायनी ने याज्ञवल्क्य को निरुत्तर करने देने वाली गार्गी की प्रशंसा का सन्देश अपने पिता कात्यायन भेजा। चूँकि बेटी का सम्मान ससुराल में कम था इसलिए याज्ञवल्क्य के पराजित होने पर कात्यायन ऋषि अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने कात्यायन गोत्र (वंश )के लोगों को विदुषी गार्गी का सार्वजानिक रूप में सम्मान करने को कहा. तब से आज तक कात्यायन गोत्रीय (मिश्र ) लोग विदुषी गार्गी का सम्मान करते आ रहे हैँ. कालांतर में विदुषी गार्गी के सम्मान के स्थान पर देवी के रूप में पूजा होने लगी जो आज तक हो रही है.यह पूजा वर्ष में दो बार होती है पहली पूजा चैत्र मास में बासंती नवरात्रि के बाद त्रयोदशी को और दूसरी पूजा आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि के बाद त्रयोदशी को की जाती है.
कात्यायन गोत्रीय मिश्र, नव देवियों की ही भांति गार्गी देवी की पूजा करते हैँ. और इस अवसर पर अपने बच्चों के कर्ण भेदन, मुंडन आदि संस्कार भी आयोजित करते हैँ.
वाचकन्वी गार्गी आजन्म अविवाहित रहीं.
--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर.
गुरुवार, 9 दिसंबर 2021
भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की कमजोर भूमिका
ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
मीडिया (प्रिंट/वेब ,इलेक्ट्रॉनिक या सोशल ) लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है।
मीडिया लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है जिसका दायित्व है जनहित की पहरेदारी।
लोकतंत्र के प्रमुख अंग
(a) व्यवस्थापिका
(b ) कार्यपालिका
(c ) न्यायपालिका
एवं मीडिया को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ कहा जाता है।
मीडिया का दायित्व
इस डिजिटल युग में मीडिया का दायित्व बहुत ही चुनौती पूर्ण है। मीडिया का कार्य है जनहित की पहरेदारी। अब प्रश्न उठता है की जनहित कहाँ कहाँ प्रभावित होता है। जनहित लोकतंत्र में किसी भी स्थान में प्रभावित हो सकता है।
रिपोर्टिंग एक जोखिम भरा कार्य होता है जो हर व्यक्ति नहीं कर सकता।
सर्वे गुणः कांचन माश्रयन्ति
उक्ति सूक्ति का अर्थ है कि सोने में सभी गुण होते हैं। हमारा यहाँ कहने का अर्थ यह है कि धन सबको प्रभावित करता है। शासन का कोई भी तंत्र क्यों न हो अधिकांशतः धन से प्रभावित हो जाते हैं कोई कम कोई अधिक और जो प्रभावित नहीं होते उनकी संख्या अँगुलियों से गिनी जा सकती है।
मीडिया पूर्णतया निष्पक्ष नहीं
मीडिया में हम प्रिंट /वेब मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया को ले सकते हैं. मीडिया के ये सभी ही अंग किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रभावित रहते हैं। इसमें सोशल मीडिया पूर्ण रूपेण अनियंत्रित है रही बात प्रिंट/वेब मीडिया की बात यह भी ये भी पूर्णतया निष्पक्ष नहीं हैं यह संस्थाएं या तो किसी राजनीतिक दल या फिर अप्रत्यक्ष फंडिंग से प्रभावित रहते हैं।
रही बात रिपोर्टिंग की तो कुछ रिपोर्टर निश्चित रूप से जोखिम भरा एवं सराहनीय कार्य करते हैं लेकिन कुछ रिपोर्टर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के घटिया रिपोर्टिंग करते हैं जो प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग से प्रभावित रहते हैं। ब्यूरोक्रेसी तो घटिया रिपोर्टिंग से प्रभावित रहती है लेकिन जनप्रतिनिधि भी बिना प्रभावित हुए नहीं रहते। प्रिंट/वेब मीडिया या फिर सोशल मीडिया में हर कोई अपनी प्रशंसा का भूखा रहता है इस मानव प्रवृति के कारण कमजोर मानसिकता के लोग अपने स्थान /अपनी गरिमा को भूल जाते हैं।
ओपिनियन
1 - वर्तमान समय में पत्रकारिता में डिप्लोमा /उपाधि उप्लब्ध हैं अतः पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों को ही रिपोर्टिंग का काम सौंपा जाय।
अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी
ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...
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लेखक : अशर्फी लाल मिश्र Asharfi Lal Mishra छछूंदर की यह विशेषता है कि यदि सांप उसे निगल ले तो या तो वह अन्धा हो जाता है या फिर मर ...
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द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र ©,अकबरपुर,कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र कान्यकुब्ज ब्राह्मण -कात्यायन गोत्रीय मिश्र (बैजेगांव ) की एक शृंखला ======...
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लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कानपुर देहात के चुनिंदा उल्लेखनीय शिक्षकों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है : 1-प्रकाश चंद...