शनिवार, 23 दिसंबर 2017

बाबाओं के मकड़जाल में वर्ष 2017


Asharfi Lal Mishra










आज  भारतीय जान मानस में बाबाओं के प्रति अगाध श्रद्धा और बढ़ते  अंध- विश्वास के कारण बाबाओं के  मकड़जाल  केंद्र   अभेद्य  किले के रूप में परिवर्तित  हो रहे हैं।
आश्रमों में होते हैं घिनौने काम [a] [f]
कुछ बाबाओं ने भारतीय संस्कृति की आस्था का ऐसा दोहन किया कि सारे विश्व में बाबाओं ने अपनी थू थू करवा ली। बाबाओं ने अपनी साधिकाओं / शिष्याओं का यौन शौषण कर आज जेल की हवा खा रहे हैं। कुछ महा अपयश प्राप्त बाबा निम्न हैं: 
1-आसाराम 
2-राम रहीम
3-रामपाल 
गुरुमीत रामरहीम,आसाराम,रामपाल









आश्रमों  के नामकरण 
बाबाओं ने अपने  आश्रमों  का नामकरण इस  विधि से किया है  कि  लोग  पढ़ते ही  आकर्षित हो जायँ। मठाधीश भले ही निरक्षर हों लेकिन पारलौकिक ज्ञान , वैदिक ज्ञान  आदि में अपने को निष्णात कहते हैं। कुछ आश्रमों के  नाम तो समाज में भ्रम उत्पन्न करने वाले भी हैं
जैसे आध्यात्मिकविश्वविद्यालय  [1] ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। क्या ये विश्वविद्यालय  यू जी सी  अनुमोदित हैं  ? क्या मानक के   अनुरूप इन विश्वविद्यालयों का शिक्षण ,परीक्षण एवं निरीक्षण  होता है ? 

आश्रमों का महिमा मण्डन 
आश्रम की गति विधियां जितनी अधिक  गोपनीय होंगी उतनी अधिक उस आश्रम की ख्याति  फैलती  है। अनुयायी बढ़ाओं आश्रम में पद पाओ  नीति से आश्रम के अनुयायियों द्वारा निरन्तर नये अनुयायी/शिष्य  /छात्र /छात्राएं बढ़ाने का प्रयास  रहता है। महंतो की महिमा मण्डन करने में राजनेता भी पीछे नहीं रहते। इन महंतों के साथ राजनेताओं की  खींची जाने वाली फोटो और वीडिओ  को अपने अनुयायियों के मध्य या अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर अपने को स्वयं-भू भगवान् कहने और लिखने में अपने को गौरान्वित समझते हैं। 

उपाधियाँ 
परंपरा यह है कि जो  उपाधियाँ  किसी संस्था द्वारा प्रदत्त की जाती हैं वे ही उपाधियाँ व्यक्ति को अपने नाम के पूर्व या पश्चात् लिख सकते हैं लेकिन ये महंत स्वयं  अपने नाम के  पूर्व  पूज्य, संत ,संत शिरोमणि ,भगवन आदि  विशेषणों को लिखते  हैं। 

आश्रमों का  साहित्य 
कई आश्रम  प्रमुखों  की शिक्षा नगण्य है लेकिन उन्होंने वैदिक ग्रंथों का अपने अनुसार  मनमानी  भाष्य लिख दिया। (विना वैदिक ग्रंथों को पढ़े /सुने ही)  ऐसे  ग्रन्थ स्व-प्रकाशित   हैं जिनकी कोई प्रमाणिकता नहीं  होती। प्रामाणिक ग्रंथों में अब ISBN /NSBN  अंकित  होता है। इनके घटिया स्तर के साहित्य से  केवल  आश्रम का ही   महिमा मण्डन  होता है आध्यात्मिक ज्ञान का नहीं। 

प्रशासन की  अनदेखी
ऐसे आश्रमों में   क्या अनैतिक  शिक्षा/कार्य  होते है  प्रशासन  को तब तक  भनक नहीं   लगती जब तक पीड़ित व्यक्ति  न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाता। 

वर्ष 2017  के  कलंकित  बाबा 
  1. गुरमीत राम रहीम [d] 
  2. फलाहारी बाबा [b]
  3. सच्चिदानंद[c] 
  4. सुन्दर दास [e]
  5.  शांति सागर [3]
  6. वीरेंद्र देव दीक्षित [2]
                                                                         
                                                          वीरेंद्र देव दीक्षित 

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय  विजय विहार नई दिल्ली 
यह आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पिछले २५ वर्षों से रोहणी इलाके में चल रहा है। इसके प्रमुख वीरेंद्र देव दीक्षित  (70 वर्ष )हैं। वीरेंद्र देव  दीक्षित अपने को भगवान शिव का अवतार कहते हैं ,जिस प्रकार भगवान् शिव के लिंग की पूजा की जाती है उसी प्रकार  अपने लिंग की पूजा करने को कहते हैं।[3]  कभी बाबा अपने की श्री  कृष्ण जी से तुलना करते और  युवतियों से  कहते कि  हमें 16,000  रानियों की इच्छा है।[4]  बाबा के खिलाफ सी बी आई ने तीन केश दर्ज किये। [5]

अभिमत 

  1. समय -समय पर आध्यात्मिक केन्द्रो की गोपनीय तरीके से जांच और विधिवत  निरीक्षण होना चाहिए। इससे  अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। 
  2. यदि  आश्रम के नाम में विश्वविद्यालय जुड़ा हो तो उसका निरीक्षण /पर्यवेक्षण  यू  जी सी  द्वारा भी किया जाय। 
  3. अनैतिक गतिविधियों वाले आश्रमों को तत्काल बंद किया जाना चाहिए। 
  4. ऐसे धार्मिक ग्रन्थ जिनके द्वारा केवल  आश्रम का महिमा मंडान होता हो उन्हें जब्त कर लिया जाना चाहिए। 

रविवार, 17 दिसंबर 2017

अगड़े और पिछड़ों के बीच पिसते गरीब

Asharfi Lal Mishra










                     आज देश में गर्रीबों के हित में  खुलकर कोई भी राजनीतिक दल खड़ा होने को तैयार नहीं है। इसका मुख्य कारण है कि  देश में अगड़ों और पिछड़ों वर्गों के बीच एक सीमा रेखा खींच दी गई है। सभी राजनीतिक दल संविधान /मंडल कमीशन का आश्रय लेकर इस मुद्दे को जीवित रखना चाहते  हैं।  पूर्व प्रधान मंत्री  विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर अगड़े  और   पिछड़ों  के बीच जो  खाई  पैदा कर समाज का बंटवारा  कर  दिया है। शायद ही  कभी यह   सामाजिक खाई पाटी जा सके।

एस सी /एस टी वर्ग की स्थिति 
                       संविधान में अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्राविधान किया गया था। यह आरक्षण सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े होने की   दृष्टि से किया  गया था। आज  इन जातियों में  अनेक लोग ऐसे हैं जो सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से  उन्नत कहे जा सकते हैं  लेकिन  आरक्षण का लाभ छोड़ने को तैयार नहीं। आज एस सी /एस टी  के छत्रपों के लिए आरक्षण  सशक्त राजनीतिक हथियार है। आज एस सी /एस टी  के आरक्षण  का सम्पूर्ण लाभ इस वर्ग के साधन  संपन्न लोगों तक ही सीमित है और केवल इतना ही नहीं इस आरक्षण  लाभ लोग  पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त कर रहे हैं। इस वर्ग के उन्नत लोग कभी  गरीबों के हित में आरक्षण छोड़ने के लिए तैयार नहीं। कभी भी इस वर्ग के छत्रप नेताओं ने एस सी /एस टी  के गरीबों के आरक्षण की बात नहीं की। कभी किसी नेता ने क्रीमी लेयर की भी आवाज नहीं उठाई। आखिर क्यों ?

ओ बी सी वर्ग की स्थिति 
                       पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर  जो अगड़े और पिछड़ों के बीच  समाज का बंटवारा कर दिया हैं  उसकी किसी भी  तरह से प्रशंसा नहीं की जा सकती   है।  मंडल कमीशन  की रिपोर्ट लागू होने से पिछड़े वर्गों को २७% आरक्षण का लाभ दिया गया। वर्तमान में क्रीमी लेयर का प्राविधान है लेकिन समय -समय पर क्रीमी लेयर की सीमा में वढोत्तरी भी होती रहती है। इस आरक्षण के लाभार्थी भी पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ उठा रहे है। इस वर्ग में कई ऐसी जातियां हैं जो समुन्नत होकर अगड़ी जातियों से बहुत आगे निकल चुके हैं लेकिन आरक्षण का लाभ किसी रूप में छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इस वर्ग से सम्बंधित राजनेता कभी भी गरीबों (आर्थिक आधार पर आरक्षण ) के आरक्षण  की बात   नहीं करते।

मंडल कमीशन के दुष्परिणाम 
               आज देश में जो  जातीय छत्रप नेताओं और जातीय आन्दोलनों की  बाढ़  दिखाई दे रही है वह  मात्र मंडल कमीशन का एक मात्र   प्रतिफल है।  गुर्जर आंदोलन हो या फिर पाटीदार आंदोलन  ये सभी आंदोलन मंडल कमीशन से प्रेरणा लेने के  साथ -साथ उससे  ऊर्जा भी  प्राप्त करते हैं। ऐसे जातीय आन्दोलनों से  कितनी राष्ट्रीय आर्थिक क्षति होती है इसका मूल्याङ्कन केवल सरकार ही कर सकती है। ऐसे आंदोलनों में  कहीं भी  कहीं भी गरीबों की बात नहीं होती केवल जाति  ही बात शीर्ष पर रहती  है।

वी पी सिंह , चरण सिंह ,जयललिता अदि ऐसे राजनेता थे जो पिछड़े वर्ग  से  न होकर भी पिछड़ों की राजनीति की और उच्च पद पर पहुंचे। इन नेताओं ने भी गरीबों के आरक्षण की बात नहीं की । ओ बी सी वर्ग के जातीय छत्रपों ने भी कभी अपने वर्ग के गरीबों के आरक्षण का मुद्दा नहीं उठाया।

मद्रास हाई कोर्ट का दिशा निर्देश 

मद्रास हाई  कोर्ट अगड़ी जाति के  गरीबों को रोजगार और शिक्षा में आरक्षण  देने  पर  विचार  करने के लिए राज्य सरकार  से  कहा।[1] आखिरकार न्यायालय को  ऐसा आदेश देने की  आवश्यकता क्यों पड़ी। ऐसा आदेश न्यायालय तभी देता है जब किसी के साथ सरकार न्याय संगत निर्णय लेने में उदासीन हो।

गरीबों (आर्थिक रूप से पिछड़े ) के प्रति संवेदन शीलता 

गरीबों के प्रति संवेदनशीलता अर्थात  गरीबों को रोजगार और शिक्षा में आरक्षण देना एक गंभीर राष्ट्रीय मुद्दा है. इस विन्दु पर कोई भी खुलकर बोलने का साहस  भी नहीं जुटा  पा रहा है। यदि  कोई दल /नेता आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने का मुद्दा उठाने का  साहस भी करे तो एस सी /एस टी / ओ बी सी  वर्ग के जातीय छत्रप नेता उसके  विरुद्ध लामबद्ध  होकर विरोध करते   हैं।  हमारा कहने का आशय यह है कि  सभी जातीय छत्रप आर्थिक आधार पर आरक्षण के देने के   विरुद्ध हैं।
                                                                         
अमीर -गरीब के बीच बढ़ती खाई की ओर  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद  ने भी चिन्ता जाहिर की है। [2]

अभिमत 

  1. आरक्षण एक सुविधा है न कि इसे पाना एक अधिकार। 
  2. जो लोग शैक्षिक और आर्थिक आधार पर समुन्नत हो चुके हैं उन्हें आरक्षण के लाभ से बंचित किया जाना चाहिए। 
  3. मद्रास हाई कोर्ट के दिशा निर्देश गरीबों को आरक्षण  देने से  सम्बंधित हैं 
  4. गरीब सभी वर्गों/जातियों/धर्मों में हैं अतः आर्थिक आधार  पर आरक्षण करने से राष्ट्रीय आर्थिक असमानता दूर होगी। 

  
  

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्विरोध अध्यक्ष : राहुल गाँधी

 Updated on 20/12/2017
Asharfi Lal Mishra









इंडियन नेशनल कांग्रेस को कांग्रेस भी कहते हैं। इसकी स्थापना  अवकाश प्राप्त सिविल सर्विस इंजीनियर  A O Hume द्वारा २८ - ३१ दिसंबर १८८५  तक बम्बई में  चलने वाले प्रथम सत्र में हुई थी। स्वतंत्रता  के बाद वर्ष १९५१ में भारत में प्रथम जनरल इलेक्शन हुआ जिसमें कांग्रेस सबसे अधिक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में उभरा। कांग्रेस ने इस चुनाव में लोकसभा की ४८९ सीटों में ३६४ सीटें  प्राप्त कर  देश की सत्ता  पर कब्ज़ा कर लिया।   कांग्रेस को इस चुनाव में 49.99 % मत प्राप्त हुए।

           पहली लोक सभा से लेकर १६ वीं लोक सभा तक कांग्रेस द्वारा प्राप्त सीटों  एवं प्राप्त मतों का विवरण:
  1.  प्रथम लोक सभा : 364 सीटें  , 44.99 %  मत 
  2. दूसरी लोक सभा : 371    "      ,47.78%     "
  3. तीसरी लोक सभा : 361   "     , 44.72%     "
  4. चौथी लोक सभा : 283     "     ,40.78%      "
  5. 5 वीं लोक सभा : 352      "     , 43.68%      "
  6. 6 वीं लोक सभा : 153       "     ,34.52%       "
  7. 7 वीं लोक सभा : 351       "     ,42.69%       "
  8. 8 वीं लोक सभा : 415       "     ,49.01%       "
  9. 9 वीं लोक सभा :  197       "    ,39.53%        "
  10. 10 वीं  लोक सभा :244       "  ,  35.66%        "
  11. 11 वीं लोक सभा  140        "     ,28.80%       "
  12. 12 वीं लोक सभा  141       "     ,25.82%        "
  13. 13 वीं लोक सभा  114        "     ,28.3%         "
  14. 14 वीं  लोक सभा  145       "     ,26.70%       "
  15. 15 वीं लोक सभा  206        "     ,28.55%       "
  16. 16 वीं लोक सभा   44         "     ,19.30%       "
                  १९९८ में सोनिया गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी। १२ वीं लोक सभा से लेकर १६ वीं लोक सभा का गठन सोनिया गाँधी के अध्यक्ष रहते हुआ लेकिन इस बीच कांग्रेस का जनाधार कम होता चला गया। १६ वीं लोक सभा के चुनाव  में कांग्रेस को मात्र १९. ३ ०% ही मत मिल सके और  मात्र लोक सभा की ४४ सीटों पर संतोष करना पड़ा। अब अगला  लोक सभा का चुनाव २०१९ में होना है। कांग्रेस पार्टी से अब तक ६ प्रधान मंत्रियों  ने सत्ता संभाली है  और कांग्रेस के पूर्व सदस्यों में से ७ प्रधान  मंत्री बने।                                                  
 
                राहुल गाँधी २०१३ में कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने। तब से आज तक करीब २७ चुनाओं में  कांग्रेस को पराजय का मुँह  देखना पड़ा।[a]   राहुल गाँधी नेहरू-गाँधी परिवार से  छठवें   कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे।

                 वर्तमान में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं। द्वापर युग में जिस प्रकार से धृतराष्ट्र ने   पुत्र मोह में पड़ कर  राष्ट्र की चिंता किये विना दुर्योधन को युवराज घोषित कर सत्ता का उत्तराधिकारी  बना दिया था। ठीक उसी प्रकार सोनिया गाँधी पुत्र मोह में पड़  कर  अपने पुत्र  राहुल गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का संकल्प ले लिया है। हालाँकि  कांग्रेस पार्टी में कई दिग्गज अनुभवी राजनेता हैं फिर भी राहुल गाँधी के सामने उनका कोई मूल्य नहीं। ४  दिसम्बर २०१७ को  राहुल गाँधी ने   कांग्रेस -अध्यक्ष पद  के लिए नामांकन पत्र जमा   किया। [b] राहुल गाँधी के पक्ष में ८९ नामांकन पत्र  दाखिल किये गए और सभी वैध पाए गए। [c]  ११ दिसंबर २०१७ को कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए। [d] 16 /12/2017 को  राहुल गाँधी ने  कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार  संभाल लिया। [e]
                                                                         

                              राहुल गाँधी ने कांग्रेस अध्यक्ष   का पदभार संभाला      
 राहुल गाँधी  पिछले कई वर्षों से राजनीति  में  सक्रिय हैं  लेकिन अभी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस  में  हिचकिचा जाते हैं या फिर गोल मोल उत्तर दे देते हैं। वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी परिपक्व राजनेता हैं उनकी तुलना में राहुल गाँधी कहीं नहीं ठहरते अर्थात राजनीति  में  मोदी से टक्कर  लेना फिरहाल  दुष्कर दिखाई पड़ता है।

अभिमत 
राहुल गाँधी  अभी  मोदी की तुलना  में कम आत्मविश्वास  वाले राजनेता हैं।
इंडियन नेशनल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है इसमें ऊर्जा  भरना  और संगठित रखना स्वयं में एक बड़ा कार्य है।






गुरुवार, 30 नवंबर 2017

खीर की कटोरी


Asharfi Lal Mishra










गौर वर्णा
देख
थी
अपर्णा 
मन ,कुछ चंचल हुआ। 
भवन में 
अकेले सहधर्मिणी 
मन हर्षित हुआ।
संकेत से 
 प्रिया  ने  
किया इशारा 
द्विगुणित  उत्साह से 
दोनों  .हाथों   से 
उठा लिया। 
होठों से लगाकर 
दिल खोलकर 
जिह्वा  से 
पान किया। 
जब हो गया तृप्त 
प्रिया   ने कहा 
 लो 
एक और गौर वर्णा 
धन्य धन्य 
खीर  की कटोरी
 गौर  वर्णा। 

लेखक एवं रचनाकार अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

Munshi Ram Singh : The great teacher


Asharfi Lal Mishra










 माह अक्टूबर  वर्ष १९५५ की बात है    क़ि  एक व्यक्ति  जिसकी  उम्र  करीब -करीब   ५० वर्ष ,  कद  लगभग  ६ फुट ऊँचा ,इकहरा  बदन , सांवला रंग, सिर  पर गाँधी टोपी , तन पर कुर्ता धारण किए हुए ,पैरों में नागरा जूते (चमड़े के ) पहने हुए अचानक दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। मैं  बाहर दरवाजे की फर्श पर खेल रहा था.
 उस व्यक्ति ने हमसे पूंछा : क्या प्रधान जी घर पर हैं ?
हम ने किसी भी प्रकार का उत्तर दिए बिना ही दौड़कर घर के अन्दर गया  और  पिता जी से कहा  : भइया  ( पिता जी  ) बाहर कोई आपको पूंछ रहा है।
पिता जी बाहर आये तो उस व्यक्ति ने देखते ही कहा : पण्डित जी पाँय लागूं !
पिता जी ने कहा  : मुंशी जी कल्याण हो।

दरवाजे पर कोई चारपाई न होने पर पडोसी   के दरवाजे पर पड़ी चारपाई पर बैठने का आग्रह किया और दोनों व्यक्ति एक ही चारपाई पर बैठ गए। सिराहने की ओर पिता जी और पैताने की ओर  मुंशी जी।
उनके आपस के अभिवादन से ऐसा प्रतीत हुआ कि मुंशी जी और पिता जी एक दूसरे से परिचित थे। हम वहीँ पास में खड़े रहे।

 कुछ छड़ों बाद पिता जी ने मुझसे  कहा कि : जलपान ले आओ।
मैं  दौड़कर एक कटोरी में गुड़ और एक लोटे में जल लेकर आ गया। हमने  देखा कि मुंशी जी ने  केवल जल ही ग्रहण किया। इस बीच मुंशी जी ने स्पष्ट किया की हमें कफ की शिकायत रहती है इसलिए गुड़ नहीं खाया।

मुंशी जी ने  बात को आगे बढाते हुये पिता जी से पूँछा : पण्डित  जी आप के कितने बच्चे हैं ?
पिता जी ने उत्तर दिया : तीन बच्चे।
मुंशी जी पूँछा : वे  क्या करते हैं ?
पिता जी का उत्तर था :बड़े बेटे ने इसी वर्ष  हाई स्कूल किया है ,दूसरा बेटा हमारी ओर संकेत करते हुए कहा  : सामने खड़ा हुआ  है , इसने पढ़ाई छोड़ दी।और तीसरा बेटा अभी छोटा है।
इतना सुनते ही हमने दृढ़ता के साथ तत्काल बिना किसी हिचक के मुंशी जी  से कहा :मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी है हमें स्कूल-फीस नहीं मिली।
मुंशी जी ने कहा : हम तुम्हारी स्कूल की फीस माफ़ कर देंगे  तब क्या तुम पढ़ने को तैयार हो।
मैंने हाँ कर दी।
हमने पूँछा कहाँ पढ़ने जाना है।
मुंशी जी ने कहा :बहिरी  उमरी (कानपुर ,उत्तर  प्रदेश )
 हम यहाँ बताना चाहते है कि  वर्ष १९५४ में हमारे गाँव  इंजुआरामपुर (कानपुर ,उत्तर प्रदेश ) के प्राइमरी स्कूल का दर्जा घटाकर लोअर प्राइमरी स्कूल कर दिया गया था। लोअर प्राइमरी स्कूल में कक्षा ३ तक की ही  शिक्षा की व्यवस्था थी।
 पढाई छोड़ने के बाद मैं एक आवारा किस्म का लड़का हो गया था मैंने सोचा कि शायद पिता जी के सामने  मुंशी जी का  फीस माफ़ करने का वादा झूँठा हो ,इसीलिये अगले दिन हाथ में  अपने बराबर एक डंडा लेकर पूंछते हुए बहिरी उमरी पहुँच गया।  गाँव में पहुँचने पर  स्कूल का स्थान पूँछा।
                                                                   
   
    निजी भवन  जहाँ  प्राइमरी  स्कूल  की नींव पड़ी। यह भवन आज भी मूल रूप में आवासीय है।

     [ मुंशी राम सिंह का कोई भी चित्र उपलब्ध नहीं है। उक्त भवन में ही अपने शिष्य राजकुमार सिंह के सानिध्य में रहकर अन्तिम साँस ली। मुंशी  राम  सिंह  अविवाहित थे। यह    उत्तर प्रदेश (भारत ) राज्य  में स्थित  कानपुर  जिले के  विसोहा  ग्राम के   मूल  निवासी थे। ]

वहाँ पहुँचने देखा कि  मुंशी जी एक अनावासीय मकान के सामने एक ब्लैक बोर्ड में बच्चों को गणित पढ़ा रहे थे। इसी बीच हमने साहस बटोर कर अभिवादन  करते हुए मुंशी जी से कहा :मुंशी जी  हम पढ़ने आ गए और कक्षा ५ में पढ़ेंगे।
मुंशी जी ने कहा :   भाग का सवाल आ गया तो कक्षा ५ में नहीं तो कक्षा ४ में।
 मुंशी जी  ने एक छात्र से  पाटी और खड़िया  हमें देने के लिए कहा। मुंशी जी ने हमें भाग का सवाल बोला। हमें वह भाग का सवाल नहीं आया।

अब मुंशी जी ने  हमें आदेश दिया जाओ कक्षा चार में बैठो। अब मैं कक्षा चार का विद्यार्थी हो गया।

मुंशी जी की शिक्षा की विधि 
 मुंशी जी कक्षा में पहले  सवाल बोर्ड पर समझाते  फिर उसी  कायदे का  अन्य सवाल  हल करने के  लिए बोलते। सवाल हल हो जाने  पर कापी /पाटी  जमा करने के लिए कहते। कापी /पाटी  जिस क्रम में जमा होती उसी क्रम में जांची भी जातीं। सबसे पहले जिसका सावल सही निकलता मुंशी जी उसे कक्षा में पुरस्कत भी करते थे। बस यहीं से हमारी पढाई में गति आ गई।

 अनुपस्थित छात्रों के प्रति कर्तव्य 

 कक्षा में यदि कोई छात्र अनुपस्थित हो जाय तो उसी समय मुंशी जी  कक्षा के दो छात्र अनुपस्थित छात्र को उसके घर से बुलाने के लिए भेज देते। यदि छात्र बुलाने से नहीं आता तो अगले दिन मुंशी जी स्वयं  सूर्योदय होते ही  उस छात्र के दरवाजे पर नजर आते।  मुंशी जी अभिभावक को बुलाकर पूँछते कि आप का बेटा  कल पढ़ने क्यों नहीं गया ? छात्र को बुलाते और उससे कहते बस्ता लेकर स्कूल चलो।

छात्रों  के प्रति निष्पक्ष 
  मुंशी जी का सभी छात्रों के प्रति निष्पक्ष व्यवहार था। भूखे होने पर कुछ खाने की व्यवस्था भी  करते थे। मुंशी जी को किसी भी छात्र की अनुपस्थिति  असह्य थी।

मुंशी जी पारिवारिक जीवन 
मुंशी जी अविवाहित थे। मुंशी जी कक्षा ४ एवं ५  छात्रों को पढ़ते थे। कक्षा ४ व ५ के छात्र ही इनके बच्चे थे। यद्यपि मुंशी जी के भाई भी थे लेकिन वहाँ यदा कदा ही जाते थे वर्ष में एक आध बार और केवल एक या दो दिन के लिए। मुंशी जी कहते थे मेरे छात्र ही मेरे बच्चे हैं और उनके बीच रहना हमें अच्छा लगता है। छुट्टियों में भी आधे दिन की पढाई अनिवार्य थी।

हमें स्मरण आता है कि एक बार  गर्मियों के अवकाश में  केवल एक दिन पढ़ने में गैरहाजिर होने पर मुंशी जी ने मेरी खूब  पिटाई की।
                                                                             
                                         विद्यालय का निजी भवन ( वर्तमान में विभाग द्वारा छोड़ा गया )

स्कूल का अपना भवन 
वर्ष  १९५६ में  विद्यालय बस्ती के दक्षिण में स्थित अपने नवीन  भवन में पहुँच गया। मुंशी जी इसी विद्यालय में चौबीस घंटे निवास करते और शिक्षण कार्य में तल्लीन रहते।
जाति , धर्म निरपेक्ष व्यक्तित्व
मुंशी जी अपने छात्रों में किसी प्रकार का जातिगत या धार्मिक भेद भाव नहीं रखते थे। कक्षा में सबके साथ समान व्यवहार करते थे हालांकि कुछ बालक व बालिकाएं जातिगत छूट चाहते थे लेकिन किसी के साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया।

मुंशी जी का आशीर्वाद 

मुंशी जी की कृपा एवं आशीर्वाद से मुझे अपने गाँव में  प्रथम परास्नातक उपाधि प्राप्त होने का गौरव प्राप्त हुआ।

             मुंशी राम सिंह  आज  हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मुंशी जी की कर्तव्य भावना का  स्मरण  करते   ही  हमारे ह्रदय में उनके प्रति  श्रद्धा भाव उमड़ पड़ता है। मुंशी राम सिंह जी को शत-शत नमन।
             बंदउँ गुरु पद पदुम परागा
                                                                                               -अशर्फी लाल मिश्र

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

प्रेम - स्मारक

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
Asharfi Lal Mishra











                                                                       
सम्राट शाहजहाँ  द्वारा  अपनी पत्नी मुमताजमहल की स्मृति में बनवाया गया भव्य स्मारक  ताजमहल  की गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है। यह स्मारक युगल-प्रेम का प्रतीक है। यह ताजमहल केवल भव्य इमारत  नहीं है बल्कि  जब पाठक  इस स्मारक के बारे में पढता है या फिर दर्शक इस स्मारक को देखता है तो वह शाहजहाँ -मुमताज के अमर प्रेम की कल्पना में भाव विभोर हो उठता है।
इसी ताजमहल के भीतर सैकड़ों वर्षों से मुमताज महल अपनी समाधि  में  अंतिम विश्राम  कर रही है। विश्व के कोने कोने से आने वाले  पर्यटक आगरा आकर इस ताजमहल के अमर प्रेम स्मारक के  दीदार करते है और निहाल हो जाते हैं। आगरा में यमुना किनारे श्वेत संगमरमर का बना यह ताज  विश्व के पर्यटकों  के लिए आकर्षण का केंद्र है। 

अनुचित टिपण्णी 
         अक्सर यह देखा गया कि  मीडिया में प्रचार पाने  की दृष्टि से  कुछ  लोग ताज की महत्ता को कम करके आंकते हैं और मीडिया ऐसे प्रकरणों को प्रमुखता के साथ छापता भी है। आज वैश्विक जीवन प्रणाली में  विश्व के किसी कोने में  होने वाली प्रत्येक  उपलब्धि  को प्रत्येक देश में अपनाने के लिए लालायित रहता है और कोई देश उसे  विदेशी कह कर  अस्वीकार  नहीं करता।  चीन की दीवार चीन की शान है ,मिश्र के पिरामिड मिश्र की  पहिचान है इसी प्रकार  ताजमहल वास्तुकला विश्व में बेजोड़ और भारत की शान है। ताज पर  संगीत सोम  की टिपण्णी प्रशंसा के योग्य नहीं है।[1]  क्या संगीत सोम (विधायक) की टिपण्णी से  ताज की महत्ता कम हो सकती है। क्या सूर्य को प्रकाशहीन कहने मात्र से ही सूर्य प्रकाश की महत्ता कम  हो जायेगी। 
        
     अगर हम यह कहते हैं कि  शाहजहाँ के पूर्वज विदेशी थे तो यह किसके पास प्रमाण है कि भारत में रहने वाले अन्य सभी इस देश के ही  मूल निवासी है। क्या आर्य भारत के मूल निवासी है ? नहीं भारत में जन्म लेने वाले सभी व्यक्ति भारतीय है। किसी को विदेशी कहकर उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए। 
     
     संगीत सोम की टिपण्णी  बहुत ही हलकी थी और वास्तव में संगीत सोम की टिपण्णी से ताज की महत्ता पर भी कोई असर पड़ने वाला भी नहीं था लेकिन फिर  भी  कई राजनीति के अनुभवी दिग्गज  नेताओं ने  अपनी   तीक्ष्ण शैली  से संगीत सोम की वाणी पर लगाम लगा दी।

    उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने विधायक संगीत सोम से ताजमहल पर की गई अनुचित  टिपण्णी  पर  स्पष्टीकरण माँगा। [2]


ताजमहल  पर टिपण्णी से विपरीत असर 
                                                                         

                                             
                                    ताजमहल   की दर्शक  बनी यू ०   के ०  की महिला क्रिकेट टीम

ताजमहल  पर विवाद ग्रस्त टिपण्णी से विदेशी सैलानियों पर असर  पड़   सकता है। इससे  प्रदेश  की अर्थव्यवस्था  भी  प्रभावित होगी। वर्ष  २०१६ में १३ , ६२ ,७९१   विदेशी पर्यटकों ने  ताजमहल  को देखने आये थे।  उत्तर प्रदेश में  आने वाले पर्यटकों में आधे  अधिक पर्यटक अकेले ताज को देखने आते हैं। आगरा का पर्यटन कारोबार ३,००० करोड़  रुपये का है। अकेले ताज के टिकट से होने वाली  आय  १०५ करोड़ रुपये है।


  ताजमहल  केवल भारत की ही नहीं अपितु विश्व की धरोहर है ,प्रेम का अद्भुत उदहारण है। इसे संजोकर रखने की आवश्यकता है। 



गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

शिक्षा जगत में भारत

**अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर**
Asharfi Lal Mishra








 
                                                             
 
                                                        Stadium of IISER Mohali

 आज शिक्षा जगत  में   संयुक्त राज्य अमेरिका का  दबदबा कायम है। विश्व  के शीर्षस्थ  500 विश्वविद्यालयों में   हारवर्ड  विश्वविद्यालय  का  प्रथम स्थान   होने के साथ साथ  प्रथम चार स्थानों पर यू  एस  ए  का ही  कब्ज़ा है। शीर्षस्थ  100 विश्वविद्यालयों  में  50   संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं। विश्व में  प्रथम 500 की सूची में  150 केवल  यू एस ए  में स्थित है।

एशिया में विश्व के  प्रथम 100 विश्वविद्यालयों में चीन और जापान ने दो -दो और हांगकांग ने एक  विश्वविद्यालय  ने अपना स्थान बनाया। 

 विश्व में  प्रथम 300 की सूची में एशिया की स्थिति ;[1]
  *चीन -10
*जापान -10
*हांगकांग -5
* साउथ  कोरिया-4 
*इजराइल -4 
*ताइवान -2 
*टर्की -2
* सिंगापुर -1 

विश्व के प्रथम ५०० विश्वविद्यालयों  में एशिया की स्थिति :[2]
*चीन -27 
*जापान -15
*  साउथ कोरिया -9
*टर्की -6
*हांगकांग -5
*इजराइल -5
*ताइवान -५ 
*भारत -4 
*ईरान -3 
*सिंगापुर -1 (रैंक-125 )
*मलेशिया -1 (रैंक -423 )
*थाईलैंड -1 (रैंक -453 )
*सऊदी अरब -1 (रैंक -473 )
*पाकिस्तान -1 (रैंक -496 )

विश्व के प्रथम 500 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत :[3]
 *दिल्ली विश्वविद्यालय  (रैंक -316 )

                                                                       

                                                   Main building of  IISc Bangalore
*इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISc)(रैंक -323)
*आई आई टी बम्बई (रैंक -405 )
*आई आई टी खड़गपुर (रैंक -484)

             उक्त सूची को देखने से पता लगता है कि  शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें दोनों ही जिम्मेदार हैं  क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है। शिक्षा की यह दुर्गति  एक दो साल में नहीं हुयी इसके लिए  विगत सरकारें अपने उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकती।

          स्वतंत्रता  मिलने के पश्चात्  देश में विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों  की संख्या में  निरंतर वृद्धि हो रही है। ये संस्थाएं  सरकारी,प्राइवेट ,सहायता प्राप्त एवं  वित्त विहीन , स्ववित्त पोषित  क्षेत्र  में  खोली गईं। छात्रों का नामांकन बढ़ा। यही नहीं गैरमान्यता प्राप्त संस्थाओं की एक लम्बी श्रंखला मौजूद है।

       उच्च   शिक्षा की  गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले   माध्यमिक  विद्यालय हैं और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्राथमिक विद्यालय हैं।
       
      प्राथमिक शिक्षा  में जहाँ  विद्यालय  शासकीय /परिषदीय/सहायता प्राप्त  विद्यालय   संचालित हैं वहीं पब्लिक स्कूल भी संचालित हैं इनके अतिरिक्त मान्यता प्राप्त /गैरमान्यता प्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं।
इन सभी विद्यालयों में निरीक्षण व्यवस्था बहुत लचर है।  पब्लिक स्कूलों ,मान्यता प्राप्त विद्यालयों में  योग्य शिक्षकों का अभाव है। शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों   में पर्याप्त भ्रष्टाचार है। शैक्षिक गुणवत्ता के निरीक्षण में विभागीय अधिकारी अनदेखी करते है और यदि कहीं निरीक्षण किया भी तो उसका शमन का रास्ता भी उपलब्ध रहता है। हमारा कहने आशय यह है कि  जब तक   निरीक्षण प्रणाली दुरुस्त नहीं होगी तब तक प्राथमिक शिक्षा  लंगड़ी ही रहेगी।

      माध्यमिक शिक्षा  में  शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक स्कूल /मान्यता प्राप्त  विद्यालय के अतिरिक्त गैर मान्याप्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं। शासकीय (केंद्र /राज्य )/परिषदीय। सहायता प्राप्त विद्यालय जहाँ शिक्षकों की कमी  का सामना कर रहे हैं वहीं मान्यता प्राप्त विद्यालयों में अधिकांश   विद्यालय केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं,इन विद्यालयों में न छात्र हैं और न ही शिक्षक। इन विद्यालयों का न कभी भौतिक सत्यापन होता है और न ही किसी प्रकार निरीक्षण। जिला शिक्षा अधिकारी भी इस ओर  कोई ध्यान नहीं देते। शासकीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक विद्यालयों का निरीक्षण  नगण्य रहता है इसलिए इन विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित रहती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आवादी वाले राज्य में  माध्यमिक शिक्षा परिषद  से   मान्याप्राप्त  विद्यालयों का बाहुल्य है और इनके बाद  सहायता प्राप्त  विद्यालयों  का स्थान  है। इनमें से अधिकांश  मान्यता प्राप्त विद्यालय  बोर्ड  की परीक्षाओं में नकल का बंदोवस्त करते हैं।  माध्यमिक शिक्षा  में जब तक योग्य शिक्षक नहीं होंगे और नक़ल पर अंकुश नहीं होगा एवं भौतिक सत्यापन  के साथ  निरीक्षण नहीं होगा तब तक माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना कठिन है।

        उच्च शिक्षा  के क्षेत्र में शासकीय /सहायता प्राप्त /स्व-वित्त पोषित महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें स्व -वित्त  पोषित महाविद्यालयों  की हालत विशेष चिंता जनक है। इनमें अधिकांश छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं। । यदि  कहीं  कक्षायें  भी लगती  हैं तो वहां अयोग्य शिक्षकों  द्वारा शिक्षण कार्य कराया जाता है। इन महाविद्यालयों में  पहले योग्य शिक्षकों का अनुमोदन लिया जाता है  और  उनके स्थान  पर  कम पैसों पर अयोग्य  शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराया जाता है। [4]  इन  वित्त विहीन  कॉलेजों  में भी विश्व विद्यालय  की परीक्षाओं में  नकल का बोलबाला रहता है।  महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन  किये  विना शिक्षा में गुणवत्ता  की कल्पना करना  दिवा स्वप्न ही रहेगा। शिक्षा में  गुणवत्ता के लिए स्वकेंद्र की व्यवस्था समाप्त की जानी  चाहिए।

     शैक्षिक संस्थान राजनीति  के  केंद्र बिंदु  नहीं होने चाहिए। छात्रों को अपनी   समस्याओं  के   निमित्त  धरना -प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य तरीके अपनाना चाहिए। [5]


      शिक्षा की दुगति के लिए राज नेता भी जिम्मेदार  रहे है। उत्तर प्रदेश में  जब कल्याण सिंह ने  नकल रोकने के लिए  नकल अध्यादेश  लागू  किया तो  मुलायम सिंह ने  इस अध्यादेश को राजनीतिक हथियार के रूप में  स्तेमाल करने में नहीं चूके। कल्याण सिंह की सरकार के पतन के पश्चात्  हुए चुनाव में मुलायम सिंह ने छात्रों को स्वकेंद्र करने और नकल अध्यादेश हटाने का आश्वासन देकर सत्ता हासिल करने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि  छात्रों  का रुझान पुस्तकों ,कक्षाओं से हट कर नकल पर केंद्रित हो गया। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में  शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो गई।

 शैक्षिक गुणवत्ता को स्थापित करना एक जोखिम पूर्ण  कार्य 

* राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति  की आवश्यकता
*शैक्षिक गुणवत्ता के लिए विद्यालयों ,महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन आवश्यक
* नकल रोकने के प्रयासों की  राजनीतिक विरोध होने की संभावना

अभिमत 
* देश के सभी प्राथमिक ,माध्यमिक  विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सामान पाठ्यक्रम लागू किया जाय।
*सभी जगह योग्य शिक्षक हों और छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन भी किया जाय।
* मान्यता रहित विद्यालयों और फर्जी विश्वविद्यालयों पर लगाम लगाई जाय।
* निरीक्षण प्रणाली चुस्त दुरुस्त की जाय।

                   विद्यालयों ,महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों एवं छात्रों की संख्या  को दृष्टिगत रख कर यदि  शैक्षिक  गुणवत्ता में  सुधार हो जाय तो निश्चित ही  भारत शिक्षा का  हब  बन सकता है।
                                                                       
                                                         नौ मंजिला हॉस्टल -IISER-Pune                                                                    

शिक्षा में सुधार के  लिए किये गए प्रयास 
* शिक्षा में उच्च स्थान पाने  वाले  20  विश्वविद्यालयों को पहली बार  प्रोत्साहन हेतु  प्रधान मंत्री मोदी ने  10 हजार करोड़ रुपयों का  प्राविधान किया। [6]
* अप्रैल 01,2018 से  उत्तर प्रदेश की शिक्षा में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में एकरूपता के निमित्त सभी प्रकार की संस्थाओं में CBSE के पाठ्यक्रम को लागू करना।
* उच्च शिक्षा में पलायन रोकने हेतु  देश के  उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे IIT`S ,IISER ,NIT`S आदि  में 70,000 -80,000  रुपये मासिक छत्रिवृत्ति एवं रुपये 2,00,000 वार्षिक रिसर्च ग्रांट का प्राविधान [7]
*उत्तर प्रदेश में  माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से यूं पी बोर्ड की परीक्षा वर्ष 2018 में नकल रोकने का सफल प्रयास





बुधवार, 4 अक्तूबर 2017

जनसंख्या वृद्धि- विकास में बाधक


Asharfi Lal Mishra










पिछले ७० वर्षों में भारत का चतुर्दिक विकास हुआ है। आज अनाज के उत्पादन में भारत आत्म -निर्भर है। कम्प्यूटर  टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में  विश्व में U S A  और चीन के बाद भारत का स्थान आता है। अन्तरिक्ष  विज्ञान के क्षेत्र में  विश्व के शीर्ष  देशों में स्थान प्राप्त है। चिकित्सा के क्षेत्र  में  हम अग्रणी और विश्व में सबसे सस्ता इलाज देने में समर्थ हैं। आज भारत की  विश्व की औद्योगिक शक्तियों में गिनती  की जाती है।  परमाणु  शक्ति  संपन्न देशों में भारत की भी गणना की जाती है। ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य  और चीन के  बाद  दूसरे स्थान  पर  आर्थिक  भागेदारी। सुरक्षा परिषद में भी स्थायी सदस्यता के लिए भारत ने अपना दावा ठोंक दिया है।

   लोगों का जीवन स्तर ऊँचा हुआ है। गावों तक सड़कों का जाल फैला हुआ है और प्रत्येक घर में बिजली का प्रकाश पहुँच रहा है ,शिक्षा के लिए गांव -गांव में विद्यालय की सुविधा उपलब्ध है फिर भी हमारी गिनती उन्नत देशों में नहीं हैं। 

 एक तरफ विकास और दूसरी तरफ जनसँख्या में वृद्धि।  विकास और  जनसँख्या दोनों  में समान्तर गति  होने के कारण विकास बढ़ती हुयी जनसंख्या में विलीन हो जाता है इसके कारण वास्तविक विकास परिलक्षित नहीं होता। 

  यदि  जनसँख्या की वृद्धि दर को कम किया   जाय तो यही विकास  जनता में परिलक्षित होने लगे अथवा विकास गुणोत्तर दिशा में हो।
चीन ने अपनी जनसँख्या को नियंत्रित करने के लिए एक बच्चा एक परिवार  की नीति लागू कर चुका  है।

 भारत में भी जनसँख्या को नियंत्रित करने के अनेक प्रयास हुए लेकिन बहुत अच्छे परिणाम नहीं आये।  परिवार नियोजित करने में  केवल शिक्षित वर्ग  ने ही रूचि दिखाई। अनुसूचित जातियों /जनजातियों एवं  मुस्लिम वर्ग ने परिवार नियोजित करने में बहुत कम रूचि ली।  

 कुछ  राजनेता जिनका असर अपने वर्ग में था उन्होंने  भी  कभी भी छोटे परिवार  के लाभ नहीं बताये।  उदहारण के लिए बी आर अम्बेडकर  बारह भाई बहिन थे उन्होंने भी छोटे परिवार के लाभ बताने की जरूरत नहीं समझी। मुस्लिम धर्म गुरुवों  ने  भी परिवार नियोजित करने में रूचि नहीं ली। 

 वर्तमान में  सरकार परिवार नियोजित करने में कुछ प्रोत्साहन तो दे रही है लेकिन उसके बहुत अच्छे परिणाम नहीं दिखलाई पड़ रहे है। 

 असम सरकार ने  परिवार नियोजन के निमित्त  सबसे पहले  इस दिशा में  ठोस   कदम  उठाया। असम सरकार ने  दो बच्चों   से अधिक  बच्चों  वाले परिवार को सरकारी  नौकरी और सरकारी सुविधाओं से  वंचित  कर दिया।  पंचायत /स्थानीय निकाय  के निर्वाचन के लिए भी  अयोग्य घोषित कर दिया[1] 
      
असम सरकार ने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव   भेजा है कि दो बच्चों से अधिक बच्चो वाले राज्य विधान सभा की सदस्यता  रद्द की जाय और भविष्य में उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित किया जाय [2] 

असम प्रदेश की सरकार द्वारा परिवार नियोजित  करने के लिए उठाया गया कदम सराहनीय है। परिवार नियोजित  करने के लिए असम विधान  सभा  का निर्णय  अन्य  राज्यों  के लिए मार्ग दर्शक के रूप में कहा जा सकता  है। 

असम विधान सभा का अनुकरण अन्य प्रदेशों और केंद्र के लिए आसान नहीं है  क्योंकि बड़े परिवार वाले राजनेता इसके विरुद्ध  ध्रुवीकृत हो जाने की संभावना है। 

प्रोत्साहन भत्ता 

सातवें वेतन आयोग की सिफारिश में परिवार नियोजन के निमित्त अलग से भत्ता को दिए जाने  वाले प्रोत्साहन भत्ते की आवश्यकता नहीं है  क्योंकि छोटे परिवार के निमित्त जागरूकता बढ़ गई है।  लेकिन यह  संस्तुति  शिक्षित वर्ग के आंकड़ों के आधार पर ही आधारित है। सातवें वेतन आयोग ने  अपनी सिफारिश करने के पहले मुस्लिम वर्ग , एस सी /एस टी  एवं  आदिवासी वर्ग में बढ़ती पारिवारिक स्थिति   पर ध्यान नहीं दिया।

अभिमत 
* वर्तमान में परिवार नियोजन हेतु दिए जाने वाले प्रोत्साहन भत्ते जारी रहने चाहिए। 
*अनेक विरोधाभास के बावजूद सरकारी सुविधाएँ दो बच्चो तक सीमित की जा सकती हैं।
* दो बच्चों तक शिक्षा भत्ता, छात्र वृत्ति,नौकरी में आरक्षण या कुछ गुणांक निर्धारित किये जा सकते हैं।  

सोमवार, 4 सितंबर 2017

बढ़ते मच्छर और उसके दुष्परिणाम

Asharfi Lal Mishra











                                                                   
                                                                          मच्छर
आज विश्व में ४० % मौतें  केवल मच्छर जनित बीमारियों से हो रही हैं । भारत भी इन मच्छर जनित बीमारियों से बुरी तरह से प्रभावित है। बी आर डी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर  में हुईं  325 बच्चों की  मौतें मच्छर जनित बीमारी के ही कारण  ही हुईं। बच्चों की हुई मौतों के कारण  गोरखपुर परिक्षेत्र में हाहाकार मच गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बी आर डी  मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में बच्चों की मौत के आंकड़े गत तीन वर्षों  निम्नवत रहे

  • २०१४ ---५१०१८ भर्ती बच्चों में ५८५० बच्चों की मौत 
  • २०१५ ---६१२९५ भर्ती बच्चों में ६९१७ बच्चों की मौत 
  • २०१६ ---६०८५१ भर्ती बच्चों में ६१२१ बच्चों की मौत [a]

   इस समय उत्तर प्रदेश प्रदेश के ६६ जिलों में स्वाइन फ्लू  पहुँच चुका है। इन जिलों में ६७ मौतें हो चुकी हैं [1]

मच्छर जनित मुख्य बीमारियाँ 
  • मलेरिया 
  • फाइलेरिया 
  • चिकेनगुनिया 
  • डेंगू 
  • स्वाइन फ्लू 
  • जापानी इंसेफलाइटिस 
उक्त बीमारियों में डेंगू , स्वाइन फ्लू और जापानी इंसेफलाइटिस  अधिक घातक हैं। स्वाइन फ्लू सूअरों में फ़ैलाने वाली एक बीमारी है। स्वाइन फ्लू से प्रभावित सूअर को जब मच्छर काट लेता है और यही मच्छर जब किसी मनुष्य को काटता है तो वह स्वाइन फ्लू से प्रभावित हो जाता है।

मच्छरों  के   बढ़ने के कारण 

  • बढ़ते  प्रदूषण   के कारण मच्छरों में निरन्तर वृद्धि हो रही है
  • नालियों में प्रदूषित जल के ठहराव के कारण मच्छरों में वृद्धि हो रही है। 
  • घटते  मेढकों के कारण  भी मच्छरों की संख्या बढ़ रही है  
मच्छरों  को नियन्त्रित करने के उपाय 

  • कूड़े को इधर- उधर  न फेंककर  केवल  कूड़ेदान में ही  डाला जाये। 
  • नालियों का कचरा समय-समय पर साफ होता रहें  जिससे प्रदूषित जल स्थिर न हो क्योंकि मच्छर स्थिर जल में ही होते है। 
  • मेढकों का भोजन मच्छर ,कीट ,पतंगे हैं। आज राना टिगरीना जाति  का मेढक नालियों आदि में यदा-कदा  ही दिखलाई पड़ता  है। टोड  जाति के   मेढक  का  भोजन  तो केवल मच्छर ही है। अतः मेढक  की टांगों का निर्यात रोका जाना चाहिए। 
  • समय -समय पर डी डी टी आदि केमिकल्स का छिड़काव किया जाना चाहिए। 
अभिमत 
* मच्छरों को मारने के लिए समय -समय पर फॉगिंग की जानी  चाहिए। 
 *मच्छर जनित बीमारियों में डेंगू, स्वाइन फ्लू और  जापानी इंसेफ्लाइटिस  भयंकर बीमारियां हैं जो महामारी का रूप धारण  कर लेती हैं।
 *बीमारियों से बचाव के लिए आवश्यक है कि जनता के साथ-साथ सरकार को भी  साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना होगा।
* बीमारियों की रोकथाम के लिए टीका करण  की व्यवस्था  की जाय।
*स्वाइन फ्लू  की रोकथाम के लिए  सूअरों के बाड़ों की  व्यवस्था बस्ती के बाहर   की जानी चाहिए ।
*  सरकार के प्रयास होने  चाहिए कि  इन मौतों की सँख्या न्यूनतम हो। 


मंगलवार, 22 अगस्त 2017

जयललिता

    By : Asharfi Lal Mishra

Asharfi Lal Mishra








                                                                       
                                                                      जयललिता   
जयललिता (२४ फरवरी १९४८ --५ दिसम्बर २०१६ ) फिल्म अभिनेत्री से राजनेता के रूप में भारत के तमिलनाडु राज्य की ५  बार मुख्य मंत्री बनने का गौरव प्राप्त रहा है। तमिलनाडु  की जनता में  वे अम्मा  के नाम  जानी जाती हैं। ५ दिसम्बर २०१६ को उनकी मृत्यु पर तमिलनाडु की जनता ने इतने आँसू बहाये कि शायद ही   विश्व  के  किसी भी देश में  किसी राजनेता की मृत्यु पर  इतने आँसू  बहाये हों।
नाम: जयराम जयललिता (J. Jayalalithaa)
जन्म तिथि : २४ फरवरी १९४८
जन्म स्थान : मेलकोट (Melukote), तालुका -पाण्डवपुरा ,जिला -मांड्या , मैसूर  (कर्नाटक )
जन्म के समय का नाम:कोमलावली
माता का नाम : वेदावली (संध्या )
पिता का नाम : जयराम
दादी का नाम : कोमलावली (Komlavalli)
दादा  का नाम : (Narasimhan Rengachary) नरसिम्हां रंगाचार्य 
सहोदर : जयकुमार (भाई )
जाति : ब्राह्मण (तमिल-आयंगर )
विद्यालय में नाम : जयराम जयललिता
शिक्षा : मैट्रिक (हाई स्कूल ),१९६४ ,
उपनाम : पुरातची थालेवी (क्रन्तिकारी नेता ),अम्मा (माता )
मृत्यु तिथि: ५  दिसम्बर २०१६
निवास: पोएस गार्डन ,चेन्नई ,तमिलनाडु
व्यवसाय: अभिनेत्री,राजनीति
वैवाहिक स्थिति:अविवाहित
दत्तक पुत्र : वी एन सुधाकरन
नागरिकता: भारतीय
राजनीतिक पार्टी: आल इंडिया अन्ना  द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम (AIADMK)
भाषायी ज्ञान: तमिल,तेलगु,कन्नड़,मलयालम ,हिंदी,अंग्रेजी

व्यक्तिगत जीवन:  जयललिता का जन्म २४ फ़रवरी १९४८ को मैसूर राज्य (कर्नाटक ) के मांड्या जिले के अंतर्गत पाण्डवपुरा तालुका में स्थित मेलकोट में तमिल ब्राह्मण (आयंगर ) कुल में  हुआ था। इनके पिता का नाम जयराम और माता का नाम वेदावली है। जन्म होने पर इनको  दादी के नाम कोमलावली के नाम  से पुकारा जाने लगा। कालान्तर में विद्यालय जाने पर इनका नाम जयललिता रखा गया।
      इनके दादा   नरसिम्हां रंगाचार्य  मैसूर साम्राज्य के दरबार में फिजिशियन सर्जन थे जो महाराज  कृष्ण  राजा वाडियार  चतुर्थ की सेवा में रहते थे और पिता अधिवक्ता थे। जयललिता के भाई का नाम जयकुमार है। २ वर्ष की आयु में इनके पिता का देहान्त  हो गया। वर्ष १९५० में इनकी विधवा माँ वेदावली अपने पिता के पास  बंगलोर वापस आ गईं।वर्ष १९५२ में इनकी माँ अपनी बहन के पास मद्रास चली गईं।  १९५० से १९५८ तक जयललिता अपने मौसी के साथ मैसूर में रहीं। वर्ष १९५८ में मौसी पद्मावली के विवाह हो जाने पर अपनी माँ के पास मद्रास आ गयीं। सैक्रेड हार्ट मैट्रिकुलेशन स्कूल मद्रास से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस परीक्षा में उनहोंने राज्य स्तर पर   स्वर्ण पदक प्राप्त किया।

फ़िल्मी जीवन:15 वर्ष की आयु में वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्‍य अभिनेत्री की भूमिकाएं करने लगी। कन्नड भाषा में उनकी पहली फिल्म 'चिन्नाडा गोम्बे' है जो 1964 में प्रदर्शित हुई।* उसके बाद उन्होने तमिल फिल्मों की ओर रुख किया। वे पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर भूमिका निभाई थी। उन्होंने लगभग ३०० फिल्मों में काम किया। अधिकतर शिवा जी   गणेशन और रामचद्रन के साथ फ़िल्में अभिनीत की गई। हिंदी की मनमौजी और इज्जत जैसी फ़िल्में भी इन्होंने अभिनय किया।
राजनीतिक जीवन: 
* १९८२  में AIADMK की सदस्य्ता ग्रहण की। 
*१९८३ में AIDMK का  प्रचार सचिव नियुक्त किया गया। 
*१९८४-१९८९ तक राज्य सभा की सदस्य रहीं [1]
*१९८४  में जब मस्तिष्क के स्ट्रोक के चलते रामचंद्रन अक्षम हो गए तब जया ने मुख्यमंत्री की गद्‍दी संभालनी चाही, लेकिन तब रामचंद्रन ने उन्हें पार्टी के उप नेता पद से भी हटा दिया।[2]
*१९८७ - में रामचंद्रन का निधन हो गया और इसके बाद अन्ना द्रमुक दो धड़ों में बंट गई। एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता, लेकिन जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
*१९८९ में उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा में २७  सीटें जीतीं और वे तामिलनाडु की पहली निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष बनीं[3]
*१९९१ में राजीव गांधी की हत्या के बाद राज्य में हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा और सरकार बनाई। वे २४  जून १९९१  से १२  मई १९९६ तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्‍यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं।[4]
*१९९२ में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए 'क्रैडल बेबी स्कीम' शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके। इसी वर्ष राज्य में ऐसे पुलिस थाने खोले गए जहां केवल महिलाएं ही तैनात की गईं। 
*१९९६ में उनकी पार्टी चुनावों में हार गई और वे खुद भी चुनाव हार गईं। इस हार के बाद सरकार विरोधी जनभावना और उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुये। पहली बार मुख्यमंत्री रहते हुए उनपर कई गंभीर आरोप लगे। उन्होंने कभी शादी नहीं की लेकिन अपने दत्तक पुत्र 'वीएन सुधाकरण' की शादी पर पानी की तरह पैसे बहाए। यह विषय भी इन मामलों का एक हिस्सा रहा[5]
*१४ मई २००१ से २१ सितम्बर २००१ तकतमिलनाडु की  मुख्य मंत्री ।
*२ मार्च २००२--१२ मई २००६ तक तमिलनाडु की  मुख्य मंत्री। 
* १६ मई २०११--२७ सितम्बर २०१४  तक  तमिलनाडु की मुख्य मंत्री
*२३ मई २०१५ --५ दिसंबर २०१६ तक तमिलनाडु की मुख्य मंत्री
 राजनीतिक उपलब्धि 
ब्राह्मण विरोध के रूप में उपजी AIDMK का नेतृत्व ब्राह्मण नेता जयललिता द्वारा किया गया और सर्व मान्य नेता के रूप में लोग आदर में जयललिता को अम्मा कह कर पुकारते थे। दक्षिण भारत के  राज्यों में प्रमुख राज्य   तमिलनाडु  की राजनीति में  जयललिता का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा।

      



गुरुवार, 17 अगस्त 2017

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35(A)

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 
अशर्फी लाल मिश्र 










संवैधानिक स्थिति : १४ मई १९५४ को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ  राजेंद्र प्रसाद  के  एक आदेश के  द्वारा भारत का  संविधान (Constitution of India)  में परिशिष्ट के अन्तर्गत   अनुच्छेद 35 (A)  को  जोड़ा गया। अनुच्छेद ३५(A) की वैधानिकता की सुनवाई दीपावली के बाद होगी। (1)
35(A) का क्षेत्र  : जम्मू ,कश्मीर और लद्दाख
अनुच्छेद 35(A) का विवरण :
(१)  यह अनुच्छेद जम्मू,कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में  स्थायी नागरिकता को परिभाषित करता है।
(२) जम्मू,कश्मीर और लद्दाख के मूल निवासी या १४ मई १९५४ की तिथि को १० वर्ष  तक निवास करने वाले को नागरिकता के अधिकार प्रदत्त होंगे। इन नागरिकों को नागरिकता का प्रमाण पत्र दिया जायेगा।
(३) प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही  इस राज्य में स्थानीय निकायों /विधान सभा के मतदाता या उम्मीदवार हो  सकते हैं।
(४)प्रमाण पत्र धारक को ही  भू-संपत्ति का अर्जन ,राजकीय सेवा में अवसर,राजकीय  छात्रवृत्ति  की सुविधा आदि राजकीय सुविधाएँ प्राप्त होंगी।
(५)प्रमाण पत्र धारक नागरिक ही जम्मू,कश्मीर और लद्दाख में भू-स्वामी हो सकते हैं।
(६) राज्य की विधान सभा २/३ के बहुमत से नागरिकता की शर्तों में परिवर्तन कर सकती है।
अनुच्छेद की  सकारात्मक दिशा  :
(१) क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान
अनुच्छेद की नकारात्मक दिशा :
(१) देश के बटवारा हो जाने पर पाकिस्तान से जम्मू & कश्मीर राज्य में  आने वाले  शरणार्थी जिनमें लगभग ८० % दलित या पिछड़े वर्ग से सम्बंधित हैं ,राज्य की नागरिकता से वंचित है यद्यपि यह शरणार्थी आज भारत के नागरिक हैं और लोक सभा के मतदाता हैं।
(२) उद्योगपति इस राज्य में उद्योग स्थापित स्थापित नहीं करना कहते जिससे इस राज्य के  युवाओं में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है।
(3)इस अनुच्छेद में पुत्रियों को नागरिकता के अधिकार प्राप्त हैं लेकिन यदि उसने जम्मू & कश्मीर के बाहर के व्यक्ति से विवाह कर लिया है तो उसकी संतानों को नागरिकता के अधिकार नहीं प्राप्त होंगे।
अभिमत:आज क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहिचान के स्थान पर  वैश्विक संस्कृति विकसित हो रही है। उद्योग रहित देश आज के आर्थिक   युग में पिछड़   रहे हैं। आशा है कि इस दृष्टिकोण से जम्मू कश्मीर का विकास सुनिश्चित हो सकता है। 

रविवार, 13 अगस्त 2017

अजेय रानी लक्ष्मीबाई


Asharfi Lal Mishra











                                                                 
                                                             झाँसी  की रानी :लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई  उत्तर भारत स्थित मराठा  शासित राज्य    झाँसी  की रानी और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम १८५७ के अग्रणी क्रांतिकारियों में प्रमुख थीं। आज भारत के जन-जन में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम आदर के साथ लिया जाता है।
 नाम :मणिकर्णिका ताम्बे 
उपनाम :मनु 
जन्म :१९ नवम्बर १८३५ , वाराणसी [1]
मृत्यु :१८ जून १८५८ , कोटा की सराय ,ग्वालियर 
पिता  का नाम :मोरोपंत ताम्बे 
माता का नाम :भागीरथी सप्रे 
जाति : हिन्दू , ब्राह्मण (मराठी )
 पति :राजा गंगाधर राव नेवालकर (१८४२ --२१ नवम्बर १८५३ )
विवाह के उपरान्त नाम : रानी लक्ष्मीबाई
पुत्र :दामोदर राव 
संक्षिप्त परिचय :
मणिकर्णिका  का जन्म १९ नवम्बर  १८२८ को वाराणसी जिले के भदैनी नामक  नगर में मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सप्रे था। उनके पिता सतारा महाराष्ट्र से आकर वाराणसी में आकर रहने लगे थे। मणिकर्णिका का उपनाम मनु था। माता भागीरथी एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार बिठूर जिला (कानपुर )में ले गये जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे।मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ तलवार आदि शस्त्र एवं घुड़सवारी  की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में १४ वर्ष की आयु में  उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया।उसका नाम दामोदर राव रखा।  परन्तु चार महीने की आयु में ही दामोदर राव की  मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी।गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के पुत्र आनंद राव को गोद  लिया। बाद में दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।  पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को मान्यता नहीं दी। 
१८५७ का विद्रोह :
१८५७ के प्रारम्भ में एक अफवाह उठी कि सेना को दिए गए कारतूसों  में गाय की चर्वी स्तेमाल की जाती है। १० मई १८५७ को मेरठ में विद्रोह की चिनगारी फूट  पड़ी। जब यह खबर झाँसी पहुँची। रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश राजनीतिक अधिकारी Captain Alexander Skene, से अनुमति चाही कि अपनी रक्षा के लिए सेना को सावधान कर दिया जाय। इसके लिए Skene ने अनुमति दे दी। उस समय झाँसी नगर में शांति का माहौल था। रानी लक्ष्मीबाई ने गर्मी के इस अवसर पर हल्दी कुमकुम के उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में रानी ने सभी महिलाओं से कहा कि अंग्रेज डरपोक है उनसे किसी प्रकार से नहीं डरना चाहिए। इसके बाद लक्ष्मीबाई ने जून १८५७ में  ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध झाँसी में विद्रोह कर दिया। 
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया। यहाँ  हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।              
                                                                                

                                              रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव के साथ 
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रिटिश  सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो सप्ताह  की लड़ाई के बाद ब्रिटिश  सेना ने शहर पर अधिकार  कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर अधिकार कर लिया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी।
       कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने कविता के माध्यम से रानी
 लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी लिखी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ:
                      बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी ,
                      खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।


अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...