ब्लॉगर - अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
आज जन संख्या की दृष्टि से भारत का स्थान विश्व में प्रथम है।[a]
सजग लोगों ने स्वयं ही अपने परिवार को सीमित कर लिया जब कुछ जातियों के लोग जनसंख्या को वोट बैंक मानते रहे ।उनका तर्क रहा कि जनसंख्या के अनुपात में सत्ता एवं आरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित होगी। ऐसे लोग ही सदैव जातीय जनगणना की मांग कर रहे है।
कभी समाज में जातीय भेद भाव था परन्तु आज यही जातीय भेद भाव राजनीति का सशक्त अस्त्र बन गया है । संविधान की मूल भावना है कि समाज में जातीय विषमता की खाई धीरे धीरे समाप्त हो । आज सार्वजनिक स्थानों पर कहीं भी जातीय विषमता या भेद भाव नजर नहीं आता है । हाँ आर्थिक विषमता अवश्य है
छोटा परिवार सुख का आधार
एक समय था जब यह माना जाता था कि अधिक जनसंख्या भी देश की गरीबी का एक कारण है अतः सरकार का नारा था कि " छोटा परिवार सुख का आधार "
इस स्लोगन की ओर शिक्षित लोगों का ध्यान गया और वे इस ओर अग्रसर भी हुए जो बाद में समाज में नव समृद्ध हो गए। इसके विपरीत कुछ लोग वोट बैंक समृद्धि के लिहाज से या यों कहिए सत्ता पाने के उद्देश्य से बड़ा परिवार शक्ति का आधार मानते रहे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में समाज की दो धाराऐं चल पड़ीं:
1-छोटा परिवार सुख का आधार
2- बड़ा परिवार शक्ति का आधार
दूसरे स्लोगन ,"बड़ा परिवार शक्ति का आधार " को अपनाने वाले लोग आज समाज में आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े गये लेकिन वोट बैंक की शक्ति के आधार पर सत्ता में, प्रशासन में भागीदारी चाहते हैं ऐसे लोग ही भारत में जातीय जन गणना चाहते हैं।
जातीय जनगणना विकास में बाधक
1-स्वतंत्रता के बाद जिन जातियों को वोट बैंक माना गया वे सभी जातियां आज आर्थिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी हुई हैं। उदाहरण के लिए अल्प संख्यक (मुस्लिम सुन्नी वर्ग) , अनुसूचित (जाटव को छोड़कर) एवं अनुसूचित जनजाति।
2- जहां बात ओबीसी की आती है उसमें कुछ जातियां जैसे अहीर (यादव, ग्वाला), कुर्मी (कटियार, सचान, गंगवार,पटेल) बहुत ही हर दृष्टि से समुन्नत हैं लेकिन आरक्षण के कारण ये जातियां भी जातीय जनगणना की समर्थक है।
3-सत्ता और प्रशासन में भागीदारी की भावना (आरक्षण) के कारण प्रत्येक व्यक्ति बड़े परिवार को बढ़ावा देगा जिससे देश की प्रगति अवरुद्ध होगी ।
4- बड़े परिवार को प्रोत्साहन मिलेगा,देश का विकास अवरूद्ध होगा, गरीबी बढ़ेगी।
जातीय जनगणना तकनीकी दृष्टि से मुश्किल कार्य
1-आज कस्बों और नगरों में रहने वालों की असली जाति का पता लगाना लोहे के चने चबाना है ।
2- आज लोग अपने मूल स्थान से बाहर कहीं निवास करने पर अपनी जाति बदल कर निवास कर हैं।
3- आरक्षण का लाभ पाने के लिए लोग अपनी जाति बदल रहे हैं।
4- अब हम कुछ बदली जातियों के उदाहरण दे हैं जैसे:
अ - चौहान - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
ब - राठौर - सामान्य और पिछड़े वर्ग के लोग लिखते हैं।
स - गौतम - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
द - गोयल - सामान्य और अनूसूचित दोनों लिखते हैं।
इ शर्मा - सामान्य और पिछड़े वर्ग के लोग लिखते हैं।
आदि आदि अनेक शब्द बहु जाति सूचक हैं।
महा नगरों में जाति का पता लगाना मुश्किल
एक नगर से दूसरे नगर में निवास करने पर एकल परिवार की जाति का पता लगाना मुश्किल कार्य।
जाति का प्रमाणीकरण
अब प्रश्न उठता है कि जाति का प्रमाणीकरण कौन करेगा ? गांवों में प्रधान , लेखपाल आदि तो क्या इसमें भ्रष्टाचार नहीं होगा?
कस्बों, नगरों , महानगरों में सभासद, विधायक , सांसद जाति प्रमाणित करेंगे तो क्या उक्त सभी लोग सब लोगों की जाति से परिचित हैं ।निश्चित ही जाति प्रमाणीकरण में घोर भ्रष्टाचार संभावित है।
Updated on 11/01/2023
बिहार में जातीय जनगणना
बिहार में जातीय जनगणना प्रारम्भ हो गई जिसकी रोक के लिए 11 जनवरी 2023 को S C में याचिका दाखिल हुई ।[1]
अभिमत
1- जनसंख्या की गणना में आर्थिक , शैक्षिक पहलू एवं व्यवसाय शामिल किया जाना चाहिए।
2- जातीय जनगणना राष्ट्रीय विकास में बाधक होगी।
3- आरक्षित वर्ग में समुन्नत जातियों को रेखांकित किया जाना चाहिए।
4- राजनीति भी व्यवसाय है अतः व्यवसाय में राजनीति भी लिखी जानी चाहिए ।
Author -Asharfi Lal Mishra
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