गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

भारतीय लोकतंत्र में मीडिया की कमजोर भूमिका

 ब्लॉगर :  अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र




 


मीडिया (प्रिंट/वेब  ,इलेक्ट्रॉनिक या सोशल ) लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है। 

 मीडिया लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है जिसका दायित्व है जनहित की पहरेदारी। 

 लोकतंत्र के प्रमुख अंग 

(a) व्यवस्थापिका 

(b ) कार्यपालिका 

(c ) न्यायपालिका 

एवं मीडिया को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ कहा जाता है। 

मीडिया का दायित्व 

इस  डिजिटल युग में मीडिया का दायित्व बहुत ही चुनौती पूर्ण है। मीडिया का कार्य है जनहित की पहरेदारी। अब प्रश्न उठता है की जनहित कहाँ कहाँ प्रभावित होता है। जनहित लोकतंत्र में किसी भी स्थान में प्रभावित हो सकता है। 

रिपोर्टिंग एक जोखिम भरा कार्य होता है जो हर व्यक्ति नहीं कर सकता। 

सर्वे गुणः कांचन माश्रयन्ति 

उक्ति सूक्ति  का अर्थ है कि सोने में सभी  गुण  होते हैं। हमारा यहाँ  कहने का अर्थ यह है कि धन सबको प्रभावित करता है। शासन का कोई भी तंत्र क्यों न हो अधिकांशतः धन से प्रभावित हो जाते हैं कोई कम कोई अधिक और जो प्रभावित नहीं होते उनकी संख्या अँगुलियों से गिनी जा सकती है। 

मीडिया पूर्णतया निष्पक्ष नहीं 

मीडिया में हम प्रिंट /वेब मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक  या सोशल मीडिया को ले सकते हैं. मीडिया  के ये सभी  ही अंग किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रभावित रहते हैं।  इसमें सोशल मीडिया पूर्ण रूपेण अनियंत्रित है रही बात प्रिंट/वेब मीडिया की बात यह भी ये भी पूर्णतया निष्पक्ष नहीं हैं यह संस्थाएं या तो किसी राजनीतिक दल या फिर अप्रत्यक्ष फंडिंग से प्रभावित रहते हैं। 

रही बात रिपोर्टिंग की तो कुछ रिपोर्टर निश्चित रूप से जोखिम भरा एवं सराहनीय कार्य करते हैं लेकिन कुछ रिपोर्टर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के घटिया रिपोर्टिंग करते हैं जो प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष रूप से फंडिंग से प्रभावित रहते हैं। ब्यूरोक्रेसी तो  घटिया रिपोर्टिंग से  प्रभावित रहती है लेकिन जनप्रतिनिधि भी बिना प्रभावित हुए नहीं रहते। प्रिंट/वेब मीडिया या फिर सोशल मीडिया  में हर कोई अपनी प्रशंसा का भूखा रहता है इस मानव प्रवृति के कारण कमजोर मानसिकता के लोग अपने स्थान /अपनी गरिमा को भूल जाते हैं।

ओपिनियन 

1 - वर्तमान  समय में  पत्रकारिता में डिप्लोमा /उपाधि उप्लब्ध हैं अतः पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों को ही रिपोर्टिंग का काम सौंपा जाय।  


शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

लोकतंत्र और विपक्ष

ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र 

लोकतंत्र में विपक्ष की महती भूमिका होती है। इस कटु सत्य से कोई इंकार भी नहीं कर सकता है और बिना मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र में भी एक तंत्र की भावना का उदय हो सकता है। 
 हमने एक पूर्व मुख्य मंत्री के मुंह से सुना कि " जनता के मूड को बदल दो और सत्ता  छीन  लो " लेकिन उक्त कथन सत्ता प्राप्त करने का एक अस्त्र हो सकता है लेकिन लोकतंत्र में विपक्ष का जो जनता के प्रति दायित्व है उसकी ओर संकेत  नहीं दिखाई देता। 

लोकतंत्र में विपक्ष का दायित्व 
 
लोकतंत्रीय शासन में विपक्ष की भूमिका का विशेष महत्व है।
उसका दायित्व है :
1-जब सरकार / सत्ता दल राष्ट्रीय भावना या राष्ट्रहित में कार्य न करे तो उसे सदैव सचेत करे ।
 2-नौकरशाही अपने कर्तव्यों में असफल हो रही हो तो भी विपक्ष सरकार को  सचेत करे। 
३-समय समय पर कुछ अप्रिय या कानून व्यवस्था सम्बन्धी  घटनाएं भी होती है। इन घटनाओं में भी विपक्ष की भूमिका न्यायोचित होनी चाहिए।
यदि विपक्ष अपने पूरे कार्य काल में अपने कर्तव्य का निर्वहन करे तो शासक दल  सचेत रहकर जनहित में अग्रसर रहेगा।  
 
लोकतंत्र में विपक्ष का लक्ष्य 

लेकिन अक्सर देखने में यह आता है जब चुनावी वर्ष आता है तभी विपक्ष अपनी सक्रिय भूमिका में दिखाई पड़ता है यहां विपक्ष का उद्देश्य यह होता है कि  चुनावी वर्ष में जनता के मूड को अपनी ओर मोड़ना और सत्ता प्राप्त करना। 

अभिमत 
1 लोकतंत्रीय शासन में विपक्ष की भूमिका महत्व पूर्ण होती है। 
2 - यदि विपक्ष अपने पूरे  कार्य काल में सक्रिय रहे तो सरकार और नौकरशाही जनहित की ओर अग्रसर रहेगी। 

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

Pandit Ram Khelawan : The Great Social Activist

 [Blogger : Asharfi Lal Mishra ]

नाम :  राम खेलावन मिश्र

जन्म : मार्च 25, 1909   ,इंजुवारामपुर कानपुर।[1]

मृत्यु  : सितम्बर 02,1982 ,इंजुवारामपुर कानपुर।

राष्ट्रीयता : भारतीय

व्यवसाय: शिक्षक ,सामाजिक कार्यकर्ता

प्रसिद्धि कारण: प्रधान  ,सामाजिक कार्यकर्ता

जीवनसाथी : रेणुका देवी

बच्चे : तीन पुत्र

Ram Khelawan Mishra







राम खेलावन मिश्र

(जन्म मार्च 25.1909 --मृत्यु सितम्बर ०2,1982) जन्म से क्रन्तिकारी विचारों के थे। इनका जन्म ब्रिटिश साम्राज्य भारत के यूनाइटेड प्रोविंस (उत्तर प्रदेश ) के कानपुर जिले के ग्राम इंजुवारामपुर (इन्जुआरामपुर) में मार्च २५ ,१९०९ को हुआ। [1]a 

जीवन परिचय

इनके पिता नाम नन्हा था। वर्ष 1926 में इन्होने मिडिल स्कूल डेरापुर , कानपुर वर्तमान में डेरापुर, कानपुर देहात से वर्नाक्यूलर फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष १९२७ में रेणुका देवी से विवाह हुआ। इसी वर्ष प्राइमरी स्कूलमें शिक्षक बने।

क्रांतिकारी

चूँकि यह बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों के थे इसलिए शिक्षण कार्य में मन नहीं लगा और शिक्षण कार्य से त्याग पत्र देकर भारत में चल रही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। वर्ष १९४२ में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध इनका जन जागरण अभियान बहुत उग्र था। गांव के समीप से जाने वाली उत्तरी रेलवे के किनारे टेलीफोन लाइन का लगभग २०० मीटर तार काट कर भूमिगत हो गए। इसी बीच जुरिया के शिवराम पाण्डेय ,बड़ागांव भिक्खी के शम्भू दयाल चतुर्वेदी और बहिरी उमरी के शिशुपाल सिंह और कठारा के जंग बहादुर सिंह आजादी के इस अभियान में कूद कर ब्रिटिश सरकार को ललकारा और रेलवे की संचार व्यवस्था ठप्प कर दी।[2]

समाज सेवा

1-गांव के तालाबों में जल भराव के लिए ग्रामीणों के सहयोग से तालाबों को गहरा कराया जिससे पशुओं के पीने एवं स्नान के लिए पानी की समस्या का निराकरण हुआ।

2- गांव में छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए प्राथमिक पाठशाला खुलवाई गई।

3-भारत के स्वतंत्र होने पर ग्रामवासियों ने उन्हें सर्व सम्मति से प्रधान चुन लिया।[3] दूसरी बार भी ग्रामवासियों ने प्रधान बनाना चाहा परन्तु इन्होने अस्वीकार कर दिया।

4-गांव में अपने ही चबूतरे पर प्राथमिक पाठशाला का संचालन शुरू करवाया। इस चबूतरे को पंचायती चबूतरा कहा जाता था। 

स्वतन्त्रता दिवस पर सर्व प्रथम इसी चबूतरे पर तिरंगा फहराया गया था। बाद में इसी चबूतरे पर स्वतन्त्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के समारोह आयोजित किये जाने लगे। 

मृत्यु

जनता की सेवा करते हुए २ सितम्बर १९८२ को उनका देहांत हो गया।

सोमवार, 13 सितंबर 2021

राजनीति का अधोगामी मुद्दा

                     ॐ 

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र






   स्वतंत्रता पूर्व राजनीति  के मुद्दे दूसरे थे और स्वतंत्रता के बाद दूसरे हो गए। स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद लगभग दो दशक तक राजनीति में समाज सेवा का मूल्य सर्वोपरि था। 

लगभग सातवें दशक (1960 -1970)  के उत्तरार्ध तक  राजनीति के मूल्यों में बदलाव आना प्रारम्भ हो गया। अब सत्ता प्राप्ति के हथकंडे प्रारम्भ हो गए। धीरे धीरे दशक 1990 -2000 में कुछ घटिया राजनीतिक हथकंडे अपनाये भी गए। इन घटिया राजनीति के मुद्दों ने  सत्ता के द्वार तो खोल दिए लेकिन राष्ट्र को जो  क्षति हुई उसकी पूर्ति आज तक संभव न हो सकी । 

आइये अब हम उस  घटिया राजनीतिक  मुद्दा " शिक्षा में  नकल को प्रोत्साहन "  पर चर्चा करेंगे:

शिक्षा में  नकल को प्रोत्साहन 

         नकल करना मानव प्रवृत्ति है। अच्छी नकल से अच्छे परिणाम और खराब नकल से खराब  परिणाम। करोड़पति  व्यक्ति भी यदि किसी दुर्व्यसन की नकल करता है तो खाकपति हो जाता है।  सामान्य व्यक्ति यदि लगनशील है तो वह भी  उच्च आदर्श को सामने रखकर  उच्च श्रेणी का वैज्ञानिक/ प्रोफेसर  बन सकता है। 

बच्चो में बूढ़ों की अपेक्षा नकल की प्रवृत्ति अधिक देखी  जाती है। 1965  के बाद धीरे धीरे  छात्रों में नकल की प्रवृत्ति का संचार होने लगा। कुछ शिक्षक भी नकल कराने में अपनी गरिमा समझने लगे। 

आइये आज हम उत्तर प्रदेश राज्य में छात्रों में बढ़ती नकल की प्रवृत्ति पर चर्चा करेंगे :

जब उत्तर प्रदेश में सहायता प्राप्त के साथ साथ मान्यता प्राप्त विद्यालयों का प्रचलन बढ़ा। इसी बीच  विद्यालय के प्रबंध तंत्रों  में छात्रों को अपने-अपने विद्यालय प्रवेश के लिए आकर्षित करने के लिए नकल  का सहारा लेना प्रारम्भ हुआ।  परिणाम यह हुआ कि मेधावी छात्र मेरिट में पीछे होने लगे और नकलची छात्र बोर्ड और विश्वविद्यालयों में  अपना स्थान बनाने में सफल होने लगे।  शिक्षा में हो रही इस धांधली  रोकने  के लिए वर्ष  1992 में तत्कालीन मुख्य मंत्री कल्याण सिंह ने नकल अध्यादेश लागू कर दिया।परिणाम यह  हुआ कि उस वर्ष यू  पी बोर्ड और राज्य  विश्वविद्यालयों के परीक्षा  परिणाम बहुत ही निराशा जनक रहे। नकल रुक गई थी और नकल द्वारा  अपना अस्तित्व कायम रखने वाले विद्यालयों में निराशा पैदा हो गई थी। 

छात्रों, अभिभावकों और शिक्षा माफियाओं में छाये असंतोष के मनोविज्ञान को अध्यापक से राजनीति  में आने वाले राजनेता मुलायम सिंह यादव  दौड़ कर दोनों हाथों से लपक लिया। बस अब फिर क्या था चूँकि मुलायम सिंह यादव पहले शिक्षक  रहे थे  वह छात्रों में  नकल की प्रवृत्ति और अभिभावकों की में अच्छे अंक पाने की प्रवृत्ति से भली भांति परिचित थे। 

नकल  अध्यादेश लगने से जहां मुख्य मंत्री  कल्याण सिंह अपनी सफलता पर इठला रहे थे वहीं दूसरी ओर सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने नकल अध्यादेश निरस्त करने की घोषणा कर दी।  अब केवल अगले चुनाव की देरी थी। जब अगला चुनाव आया तो सपा के  घोषणा पत्र (manifesto) में नकल अध्यादेश निरस्त करने का भी उल्लेख किया किया गया तथा   मुलायम सिंह यादव ने अपनी चुनाव रैलियों में नकल अध्यादेश निरस्त करने एवं स्वकेंद्र  करने का  जनता को आश्वासन दिया। नकल अध्यादेश निरस्त करने  और स्व केंद्र करने के वायदे को  शिक्षा माफिया  ,छात्रों एवं अभिभावकों ने  जोरदार स्वागत किया।   बस फिर क्या था छात्र ,अभिभावक और शिक्षा माफिया गद -गद हो गए। इस प्रकार मुलायम सिंह यादव  उत्तर प्रदेश में सत्ता हथियाने में कामयाब रहे। 

नकल अध्यादेश निरस्त होने  के परिणाम 

नकल अध्यादेश निरस्त करने और स्वकेंद्र करने से  उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चौपट  हो गई। 

 उसके बाद से विद्यालयों,महाविद्यालयों में छात्रों की उपस्थिति नगण्य हो गई। शिक्षक भी अनियमित हो गए।अब शिक्षण संस्थाएं केवल प्रवेश और  परीक्षा केंद्र के रूप में परिवर्तित हो गए। 

उसके बाद जितनी भी सरकारें आईं शिक्षा को पटरी पर लाने में  सफल नहीं  हो सकीं। मुलायम सिंह यादव  के इस  राजनीतिक मुद्दे को काटने  का  अब तक  किसी में साहस नहीं हुआ। 

 आज स्थिति यह है छात्र उन शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश चाहते हैं  जहां नकल की या परीक्षा परिणाम की गारंटी हो। आज प्राथमिक विद्यालयों में नाम लिखाने  के बाद अभिभावक अपने बच्चों को  निजी मान्यता रहित या मान्यता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ाना चाहते है। 

मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक मुद्दे " नक़ल अध्यादेश समाप्त करने एवं स्वकेंद्र स्थापित करने " से भले ही सत्ता हथिया ली हो लेकिन उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का श्रेय भी मुलायम सिंह यादव   को ही दिया जायेगा। आज तक उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था पंगु है जिसे पटरी पर लाना टेढ़ी खीर है। 

--अशर्फी लाल मिश्र ,शिक्षाविद ,कवि एवं लेखक ।


शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

इक दिन ऐसा आयेगा , पानी पेट्रोल बन जायेगा।

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र








                        इक  दिन ऐसा  आयेगा,

                       पानी पेट्रोल बन जायेगा। 

यों तो कहने में ज़रा अटपटा लग रहा है कि  भविष्य में पेट्रोल -डीजल की भांति भूमि जल पर भी सरकार का पूर्ण या आंशिक नियंत्रण हो जाने की पूर्ण संभावना है लेकिन जो वर्तमान में परिस्थितियां बन रही हैं या दिखाई दे रही हैं उनसे साफ साफ़ परिलक्षित होता है कि भविष्य में भूजल पर भी किसी न किसी रूप में सरकारी नियंत्रण अवश्य होगा। अब  आगे हम उन परिस्थितियों पर दृष्टिपात करेंगे :

 1 -वर्षा कम होना 

2 -जल संचयन के लिए तालाबों का गहरा न  होना। 

3- बहुत से तालाब  अतिक्रमण के कारण  अपने छोटे आकर में। 

4- बहुत से तालाब खेतों में परिवर्तित हो गये। 

3 - भूमि जल के रिचार्ज न होने से भूमि जल के स्तर का गिरना। 

4 - भूमि जल - रिचार्ज की तुलना में जल दोहन का अधिक होना। 

5- वर्षा ऋतु में खेतों  में जायद की फसलें होना।

      उक्त बिंदुओं पर यदि हम गहराई से विचार करें तो पाते हैं कि  भविष्य में भूमि जल ,जो आज आम उपभोक्ता के लिए सर्व सुलभ है उसमें  शायद परिवर्तन की स्थिति आ सकती है। भविष्य में ऐसी भी स्थिति आ सकती है कि अन्य खनिजों की भांति भूमि जल पर सरकार का स्वामित्व हो जाये। 

सुझाव 

1- भूमि जल का दुरूपयोग न करें।

2 -खेतों में मेड़ों को ऊंचा कर वर्षा का जल रोकें। 

3 -  सभी तालाब अतिक्रमण मुक्त हों। 

4 -चूँकि अब सभी जगह पक्के मकानों का प्रचलन है इस लिए गावों में भी तालाब गहरे नहीं हो रहे हैं इसलिए तालाबों से मिटटी खोदने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

5 - गावों या कस्बों में जल प्रवाह बावड़ी , तालाबों की ओर हो जिससे पहले बावड़ी और  तालाब जल से भर सकें।  

गुरुवार, 13 मई 2021

कोरोना की दूसरी लहर में अवसर की तलाश

 द्वारा: अशर्फी लाल मिश्र






updated on 03 /06 /2021 

कोरोना की दूसरी लहर के बीच ही बाबा रामदेव ने अपना व्यापार चमकाने की दृस्टि से एलोपैथी एवं उसकी चिकित्सा पद्धति एवं  चिकित्सकों की कटु आलोचना की। बाबा राम देव आयुर्वेद की प्रशंसा तो कर सकते थे लेकिन एलोपैथी चिकित्सा पद्धति एवं विज्ञान की आलोचना करते से बचना चाहिए था। जब सम्पूर्ण राष्ट्र कोरोना महामारी की चपेट में था और कोरोना योद्धा डॉक्टर एवं अन्य सहयोगी जान की बाजी लगाकर कोरोना का सामना कर रहे थे तब बाबा रामदेव ने एलोपैथी और उनके डॉक्टरों का उपहास किया जो उचित नहीं कहा जा सकता। 

13/05/21

आज सम्पूर्ण राष्ट्र जब कोविड 19 के संकट के दौर से गुजर रहा है। तब राष्ट्र विरोधी, समाज विरोधी, विपक्ष एवं काला बाजारी करने वाले अपने अवसर की तलाश में जुटे हुए हैं।

प्राकृतिक आपदा या अन्य आपात स्थिति में सम्पूर्ण राष्ट्र को एक जुट होकर उसका सामना करना चाहिए।लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।

कोरोना की पहली लहर में सम्पूर्ण देश में केंद्र द्वारा एक साथ लॉक डाउन लगा था तब परिणाम अच्छे रहे और सम्पूर्ण विश्व में भारत की सराहना हुई थी।उस समय विपक्ष ने चाहा था कि लॉक डाउन राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि राज्यों में बेरोजगारी बढ़ रही है।

आज जब लॉक डाउन  लगाना राज्यों  पर छोड़ दिया गया।तब देश की स्थिति बदतर हो गई और विश्व में भारत की बदनामी भी हो रही है।

आखिर ऐसा क्यों है? क्योंकि विपक्ष हर स्थिति में अवसर की तलाश में रहता है।

सोशल वर्कर /राजनेता

राजनेता अपने को समाज सेवक (Social worker) कहते है और सोशल वर्कर के रूप में भारत रत्न जैसे पुरस्कार पाने की भी इच्छा भी करते है।

आज कोरोना महामारी अवसर पर कितने ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने देश की इस संकट की घड़ी में लोगों की सहायता के लिए हाथ बढ़ाये हैं।

कितने राजनेता/सोशल वर्कर हैं जिन्होंने अस्पताल खोले हों, बेड उपलब्ध कराए हैं या  मरीजों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध  करायी। अधिकांश राजनेता जनता का मूड बदलने के लिए बयानबाजी करते हैं।

एक कम बुद्धि के राजनेता ने कहा कि वैक्सीन भाजपा की है ।इससे लोगों में भ्रम पैदा हुआ और लोगों ने वैक्सीन से  दूरी बना ली।परिणाम स्वरूप कोरोना की दूसरी लहर का जनता में विनाशकारी रूप देखने को मिला। सभी लोग भलीभांति जानते हैं कि वैक्सीन वैज्ञानिक बनाते हैं।

एक राजनेता , जो  एक राजनीतिक पार्टी के महामंत्री भी हैं अवसर की तलाश में जनता को गुमराह करने के लिए कहते हैं कि हमारी पार्टी के एक नेता को सरकार ने कोरोना पॉजिटिव कर दिया।यह कितना हास्यास्पद बयान है।

बयानबाजी करने वाले राजनेता अच्छी तरह जानते हैं कि कोरोना महामारी  आक्रमण करने में भेदभाव नहीं करती।

काला बाजारी

जब से कोरोना की दूसरी लहर आई तब से काला बाजारी चरम पर है।जीवन रक्षक दवाएं अंकित मूल्य से कई गुना अधिक मूल्य पर बिक रही हैं ।प्राइवेट अस्पतालों में इलाज भी कई गई गुना मंहगा हो गया है। फार्मेसी और प्राइवेट अस्पताल अवसर का भरपूर फायदा उठा रहे हैं।

फल विक्रेता, परचून की दुकान वाले या अन्य दुकानदार भी अवसर का भरपूर फायदा उठा रहे हैँ।

मंगलवार, 11 मई 2021

आतिशबाजी और जनरेटर पर पूर्ण प्रतिबंध हो

 द्वारा: अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र





आज सम्पूर्ण विश्व में कोरोना महामारी (कोविड 19) से हाहाकार मचा हुआ है। कोविड 19 से आज संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत सर्वाधिक प्रभावित देश है।

आज हमें जो भी कोविड19 से प्रभावित आंकड़े प्राप्त हो रहे हैं वे चाहे पॉजिटिव हों या ठीक हुए हों या फिर मृत्यु के आंकड़े हों सभी सरकारी अभिलेखों के आंकड़े हैं। इससे इतर जाने कितनी कोरोना से मौतें हो रही हैं उनका उल्लेख कहीं नहीं मिलता।

जाने कितने लोग माइल्ड कोरोना से प्रभावित हैं जो स्वयं ही अपने घर में आइसोलेट हो गए और  उनमे बहुत लोग ठीक भी हुए और कुछ काल कवलित हो गए।

ऑक्सीजन स्तर

भारत में  लगभग सभी जगह  पेड़ पौधे एवं हरियाली है।वायुमण्डल में ऑक्सीजन कमी नहीं है लेकिन पराली जलाने, आतिशबाजी ,जनरेटर का स्तेमाल, पुराने वाहन (ट्रक, बस,लोडर,ट्रेक्टर, दुपहिया वाहन ,जुगाड़ गाड़ी जो मोटर साईकल से चलती है,आदि।) से ऑक्सीजन की कमी और कॉर्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है।

आज कोरोना महामारी के समय  वायु मण्डल में ऑक्सीजन की कमी से न केवल महा नगरों में बल्कि देहात में भी  लोग प्राण त्याग रहे हैं।

देश के शीर्षस्थ न्यायालय  ने भी ऑक्सीजन की कमी पर चिंता जाहिर की है।

आज तुरन्त सहायता पहुंचने के लिए अस्पतालों में  देश विदेश से ऑक्सीजन सिलिंडरों  की आपूर्ति हो रही है।

लेकिन दूसरी तरफ सार्वजनिक समारोह विवाह आदि के अवसर पर आतिशबाजी और डीजल जनरेटर का धड़ल्ले से स्तेमाल हो रहा है। क्या इससे वायुमंडल का ऑक्सीजन स्तर बढ़ रहा है?

सरकार अभी तक अस्पतालों  तक ही मुश्किल से ऑक्सीजन सिलिंडर  उपलब्ध कराने में व्यस्त है।

तत्काल उपाय 

सरकार को चाहिए कि  वायु मण्डल  में ऑक्सीजन के स्तर को स्थिर करने के लिए तत्काल प्रभाव से  आतिशबाजी, जनरेटरों का प्रयोग एवं  पुराने वाहनों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा देना चाहिए।

यदि ऐसा नहीं हुआ तो आगे चलकर हर व्यक्ति को अपने गले में सिलिंडर डाल कर चलना होगा।

अभिमत

1-आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध हो।

2-डीज़ल जनरेटर पर पूर्ण प्रतिबंध हो।

3-पुराने वाहनों (चार पहिया,तीन पहिया,दो पहिया एवं जुगाड़ गाड़ी आदि) पर प्रतिबंध  लगाया जाए।(इलेक्ट्रिक वाहन छोड़कर)

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

गुणवत्ता गिर रही है, कीमतें बढ़ रही हैं

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 










        अगर ध्यान से देखा  जाय तो यह पता लग जायेगा कि  हर वस्तु की  गुणवत्ता में  क्रमशः कमी आ रही है। वस्तुओं के मूल्य में धीरे धीरे इजाफा हो रहा है। 
कुछ  कम्पनियाँ ऐसी हैं कि प्रोडक्ट पैकेट के  मूल्य में कमी नहीं करती  लेकिन उनके भार में धीरे धीरे कमी करती जा रही हैं यह कंपनियों  की चतुराई है और ग्राहक आँख बंद कर सामान खरीद रहा है। सरकार की भी इस ओर आँखें बंद नजर आ रही हैं। 
    अब हम नीचे कुछ कंपनियों और उनके प्रॉडक्ट की चर्चा कर रहे हैं। 

1-Harpic






Harpic

Harpic एक टॉयलेट क्लीनर है जिसकी प्रशंसा का बखान टी वी पर विज्ञापन भी देखा जा सकता है । पहले जहां इस टॉयलेट क्लीनर की गुणवत्ता अच्छी थी और कीमत 500 ml की रु 55/= थी। आज इस प्रॉडक्ट की गुणवत्ता पहले से बहुत ही खराब है और कीमत 500 ml की   Rs.86/= है। उपभोक्ता केवल ट्रेड मार्क देख कर खरीद करता है और वह ठगा जाता है। 

2-Areal washing powder 













उक्त Ariel washing powder है जिसकी गुणवत्ता पहले बहुत अच्छी थी लेकिन आज इसकी गुणवत्ता बहुत ही खराब है। लोग केवल ट्रेड मार्क देखकर खरीद करते है और ठगे जा रहे हैं। 

3-घडी डिटर्जेंट केक 
















उक्त घडी डिटर्जेंट केक निरमा कंपनी का प्रॉडक्ट है। प्रारम्भ में उक्त केक का भार 250 ग्राम था और कीमत रु 10 /= थी। आज केक का भार 185 ग्राम और कीमत रु 10 /=  उपभोक्ता समझ ही नहीं पा  रहा है कि केक का भार धीरे धीरे कम क्यों  होता जा रहा है। 

4 - Dettol Soap 












उक्त Dettol Soap स्नान करने वाला साबुन है जिसका भार 75 ग्राम है आज इस दाशमिक प्रणाली के युग में केक का भार 100 ग्राम या फिर 50 ग्राम हो सकता है लेकिन 75 ग्राम केक  का कोई औचित्य नहीं दिखता। 



5-Colgate maxfresh tooth paste 
 















उक्त  चित्र में  Colgate maxfresh tooth paste है जिसका भार 70 +14 ग्राम है।  उक्त पेस्ट का इस दाशमिक युग में 70 ग्राम भार अनुचित है। 

         कहने का तात्पर्य यह है कि  लोग ठगे जा रहे हैं ; कहीं भार में कमी और  कहीं  गुणवत्ता में कमी।  मूल्य में बढ़ोत्तरी तो सबको दिखती है लेकिन भार में कमी और गुणवत्ता में कमी कर ठगने की विद्या किसी किसी को ही दिखती है। शासन का भी इस ओर ध्यान कम ही  जाता है।  

अभिमत 
1 - सभी पैकेट बंद वस्तुओं  का भार दाशमिक प्रणाली के अनुरूप हो। 
2- पैकेट का भार कम करना एक प्रकार से ठगी है और इसे रोका जाना चाहिए। 
3- किसी भी प्रॉडक्ट की गुणवत्ता में (विशेषकर खाद्य पदार्थ में ) कमी होने पर  संगेय अपराध घोषित हो। अखाद्य पदार्थों में भी गुणवत्ता में कमी होने पर  दंड का विधान हो।  

शनिवार, 20 मार्च 2021

समय समय पर आरक्षण की समीक्षा हो

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

Asharfi Lal Mishra














Updated on 21/03/21
सविधान सभा की बहस में आंबडेकर ने गोपाल कृष्ण गोखले के कथन का उल्लेख किया था कि " ब्रिटिश राज्य के कार्यकाल में शासन में सवर्णों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण वे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन नहीं कर सके, ऐसी स्थिति में  भारतीय दलित समाज की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है । "

आम्बेडकर ने सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़े दलित लोगों के निमित्त आरक्षण की मांग उठाई।
 गाँधी जी ने अपनी किताब  " मेरे सपनों का भारत " में लिखा कि " प्रशासन योग्य व्यक्तियों के हाथों में होना चाहिए। प्रशासन न सांप्रदायिक हाथों में हो और न ही अयोग्य  हाथों में। "[1]

एस सी /एस टी का आरक्षण 

अन्ततोगत्वा  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े दलितों (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ) को 
22. 5 %  का आरक्षण सुनिश्चित हुआ। इस आरक्षण का उद्देश्य था कि  समाज में  जो असमानता है वह दूर हो जाय। 
        आज समाज में इस वर्ग में बहुत से लोग शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक   दृष्टि से समुन्नत हो चुके हैं।  
 प्रारम्भ में यह आरक्षण 10 वर्षों के लिए हुआ था लेकिन धीरे धीरे यह आरक्षण गत 70 वर्षों से चला आ रहा है। इस आरक्षित वर्ग में आज एक वर्ग ऐसा है जो सामाजिक ,शैक्षिक एवं आर्थिक हैसियत में उच्चतम स्तर पर है। इस वर्ग के अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी भी आरक्षण की सुविधा को छोड़ना नहीं चाहते। इससे इस वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता  है। 
        अगर इस वर्ग के आरक्षण की समीक्षा  हो  और क्रीमीलेयर  का विधान लागू कर दिया जाय तो एस सी /एस टी वर्ग के गरीबों को लाभ मिल सकता है लेकिन आज आरक्षण वोट बैंक भी है इसलिए इस वर्ग के राजनेता क्रीमीलेयर लागू  नहीं होने देते। इस वर्ग के राज नेता अपने ही वर्ग के गरीबों  के हितैषी न होकर अपने  वोट बैंक की ओर दृष्टि रहती है। 
    इस आरक्षण को लागू हुए सात दशक बीत गए और बिना समीक्षा के ही आरक्षण बढ़ता रहा। 
आज समाज में घर के  बाहर कहीं भी भेद भाव नहीं है। जैसे रेल,बस ,वायुयान ,टैक्सी आदि यात्रा में ; सार्वजानिक सभाओं,समारोहों ,होटल आदि जगहों पर। शायद ही किसी मंदिर में प्रवेश के समय जाति पूँछी जाती हो। 
          आज देश में कोई ऐसी शिक्षण संस्था नहीं है  जहां जाति के अनुसार प्रवेश वर्जित हो। 
आज  इस वर्ग के लोग प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अच्छे अंक ला रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि इस वर्ग के लोग सामाजिक ,शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत हो गए हैं। अतः एस सी /एस टी वर्ग के आरक्षण की समीक्षा हो और समय समय पर समीक्षा होती रहनी चाहिए।  समीक्षा में कुछ सम्मुनत जातियों को आरक्षण से बाहर और  शेष जातियों में क्रीमीलेयर का नियम लागू किया जा सकता है। 

ओ बी सी का आरक्षण 

20 दिसम्बर 1978 को मोरार जी देसाई ने संसद में O B C आरक्षण के लिए  बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में आयोग की घोषणा की। 12  दिसंबर 1980 को मंडल आयोग ने रिपोर्ट दी। मंडल आयोग ने सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए 27 %   आरक्षण देने की संस्तुति की। 13 अगस्त 1980 को  वी पी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने मंडल आयोग की सिपारिश को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी। [2]
  
      आज ओ बी सी वर्ग में  आरक्षण के बाद देश में कई ऐसी जातियां हैं जो सामान्य जाति से भी  आगे   सामाजिक ,शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से स्थान बनाने में सफल हैं। O B C  वर्ग में जिन जातियों ने सामाजिक ,शैक्षिक और आर्थिक दृष्टि आशातीत समुन्नत हुए हैं  उनमें कुछ  जातियों का विवरण नीचे दिया जा रहा है। 

1 - अहीर :

आज सम्पूर्ण अहीर समाज यदुवंशी क्षत्रिय के रूप में समाज में विख्यात है;  और सभी लोग अपने नाम के आगे यादव लिखते हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी बहुत आगे हैं। इस जाति  के लोग सेना ,पुलिस , चिकित्सा ,शिक्षा ,न्यायपालिका , अखिल भारतीय सेवाओं ,राजनीति  आदि में सामान्य जाति  से भी आगे हैं। वर्तमान में शिक्षा के प्रसार में भी शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने में भी आगे हैं। अतः अहीर (यादव ) को O B C   आरक्षण से बाहर   किया जा सकता है । 

कुर्मी :

कुर्मी अपने को समाज में कुर्म क्षत्रिय लिखते हैं। इस वर्ग के लोग अपने नाम के आगे कटियार , सचान ,गंगवार ,पटेल आदि उपनाम लिखते हैं। समाज में सामान्य जातियों की भांति इन्हें सम्मान प्राप्त है। शैक्षिक दृष्टि से भी उच्च शिक्षित हैं। इस जाति के लोग सेना , पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका ,अखिल भारतीय सेवाओं ,राजनीति आदि में सामान्य जाति से भी आगे हैं। शिक्षा के प्रसार में भी इस जाति द्वारा शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने में भी विशेष योगदान है। अतः कुर्मी जाति को  O B C आरक्षण से  बाहर किया जा सकता है। 

भट्ट :
इस जाति  के लोग  अपने को ब्रह्मभट्ट भी लिखते हैं और अपने नाम के आगे शर्मा उपनाम लिखते हैं।  समाज में यह लोग ब्राह्मणों के समकक्ष सम्मानित हैं। आज यह जाति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत है। इस जाति को भी O B C आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।  

जाट :

आज जाट भी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत  हैं।आज इस वर्ग के लोग सेना ,पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका  ,अखिल भारतीय सेवाओं एवं राजनीति में उच्च स्थान बनाने में सफल हैं।  इस जाति  को भी O B C आरक्षण से बंचित किया जाना चाहिए। 

लोधी :

लोधी भी आज अपने को राजपूत लिखते हैं  समाज में सम्मानित हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी समुन्नत है। आज इस वर्ग के लोग सेना ,पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका  ,अखिल भारतीय सेवाओं एवं राजनीति में उच्च स्थान बनाने में सफल हैं। इस जाति को भी O B C आरक्षण बाहर   किया जाना चाहिए। । 

इसी प्रकार  अन्य बहुत सी  जातियां भी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत  हो चुकी है उन्हें भी आरक्षण से बाहर किया जा सकता है। 
आरक्षण की समीक्षा के लिए एक आयोग बने जो यह देखे कि वर्तमान में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से  कौन कौन जातियां समुन्नत हैं। राजनीतिक दल वर्तमान स्थिति की ओर ध्यान न देकर 70 वर्ष पहले की बात करके नौकरियों में बैक लॉग की बात करते हैं जो निश्चित ही वोट बैंक की ओर इशारा है। 

अभिमत :
1 -समय समय पर आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए।
2 - सामाजिक एवं  शैक्षिक दृष्टि से सम्मुन्नत जातियों  का आरक्षण समाप्त  किया जाना  चाहिए।
3 -समीक्षा वर्तमान सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि में रखकर होनी चाहिए।
4 - बैक लॉग वर्तमान समानता की ओर संकेत न करके 70 वर्ष पहले की असमानता का ओर  संकेत देता है। समीक्षा वर्तमान परिपेक्ष्य में हो।
5 -  एस सी /एस टी वर्ग में जो  नव धनाढ्य  वर्ग है और  सामाजिक एवं  शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत हो गया है उसे आरक्षण की सुविधा से  बंचित किया जा सकता है शेष SC/ST जातियों में   क्रीमीलेयर का तत्काल प्राविधान किया जाना चाहिए । 
5 - आरक्षण व्यवस्था राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक है इसलिए कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण की समीक्षा की पहल नहीं करना चाहता है। आरक्षण की समीक्षा न होना खेद जनक है।   
6-आरक्षण कितनी पीढ़ियों तक चलेगा यह चिन्ता का विषय है अतः आरक्षण की शीघ्र समीक्षा होनी चाहिए।
         

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास सांस्कृतिक कार्यक्रम द्वारा

लेखक :अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 


आजादी के पूर्व देश में शिक्षण संस्थाओं की कमी थी लेकिन आजादी के पश्चात्  शिक्षा  वीरों / समाज सेवकों द्वारा शिक्षण संस्थाओं की एक  लम्बी श्रंखला खड़ा कर दी विशेषकर घनी आवादी वाले उत्तर प्रदेश में। इन समाज सेवकों /शिक्षा वीरों का  मुख्य उद्देश्य था नई पीढ़ी को शिक्षित करना। 

उस समय के शिक्षा वीरों एवं शिक्षकों में एक जोश था/ उत्साह था अतः उस समय शिक्षण संस्थाओं में अभिव्यक्ति के विकास के लिए शिक्षण संस्थाओं में सांस्कृतिक कार्य क्रमों पर भी बल दिया जाता था।  


उत्तर प्रदेश में गत तीन दशकों  में परिषदीय ,मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों ,महा विद्यालयों का जाल बिछ गया। परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों ,अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य वेतन प्राप्त करना हो गया वहीँ मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय शिक्षा के कारखाने बन गए। 

सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों / महाविद्यालयों  में   कुछ सीमा तक खेलकूद एवं नाम मात्र को सांस्कृतिक कार्यक्रम जीवित बने रहे। जहाँ  परिषदीय विद्यालओं की बात  है वहां भी बहुत कम ही विद्यालयों में खेल कूद एवं सांस्कृतिक कार्य क्रम होते देखे गए या यों कहिये की लीक पिटती रही।

 कुछ ही ऐसी गिनी चुनी शिक्षण  संस्थाएं होंगी जहां संस्था के छात्रों और शिक्षकों का हॉउसों में विभाजन कर शिक्षणेत्तर  क्रिया कलाप एवं तदनुसार  संस्था का   वार्षिक समारोह होता हो. 
इसका परिणाम यह हुआ कि छात्र किताबी कीड़े बन गए। 

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास कैसे हो :
(1) सम्पूर्ण छात्रों एवं शिक्षकों को विभागों (Houses) में विभक्त कर शिक्षणेत्तर क्रिया कलाप कराये जाय। इससे छात्रों में प्रतियोगिता की भावना पैदा होगी। 
(2 ) गेम्स  एवं स्पोर्ट्स के लिए समय सारिणी में स्थान के साथ साथ मैदान में भी छात्रों को अवसर दिया जाय। 
(3) प्रत्येक संस्था में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराये जाय जिससे छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास होगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम में निम्न कार्य क्रमों पर बल दिया जाय :
1  -कविता  (राष्ट्रीय गीत )
2 -लोक गीत
 3  -काव्य पाठ (माध्यमिक एवं उच्च स्तर पर )
4  - भाषण
 5  -वाद विवाद प्रतियोगिता 
6  -एकांकी
 7  - प्रहसन 
अन्य प्रतियोगितायें :
1 -निबन्ध लेेखन 
2-कला प्रतियोगिता
3-वैज्ञानिक मॉडल 
जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम हों सरस्वती वन्दना  से  प्रारम्भ हों ,इसके लिए प्रत्येक विद्यालय में एक सरस्वती का चित्र भी हो।  बाद में राष्ट्रीय गीत ,उसके बाद अन्य ,सबसे अंत में राष्ट्र गान हो। 

अभिमत 
1 - छात्रों में अभिव्यक्ति के विकास के लिए सप्ताह  के अंत में  या प्रत्येक शनिवार को   सांस्कृतिक कार्यक्रम अवश्य   आयोजित किया जाना चाहिए।  
2- जहां छात्र संख्या और शिक्षकों की  संख्या पर्याप्त हो वहां  शिक्षण संस्था को  4  विभागों (Houses ) में विभक्त कर वार्षिक समारोह कराये जाने चाहिए । 
3 - जहां छात्रों की  संख्या एवं शिक्षकों की संख्या कम हो वहां विद्यालय/संस्था  को 2 विभागों (Houses) में विभक्त कर वार्षिक समारोह आयोजित किया जा सकता। है। 
4 -जहां तक संभव हो प्रत्येक छात्र को किसी न किसी कार्यक्रम में भाग लेने के  लिए प्रोत्साहित किया जाय। 
5 - कई विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ नहीं होते, वहां सम्बंधित निर्देश होना चाहिए। 






शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

Notable teachers of Kanpur Dehat district

 By-Asharfi Lal Mishra






A brief description of selected notable teachers of Kanpur Dehat is given bellow:-

1-Prakash Chandra Mishra [1]

He was the founder principal at Galuapur Inter College Galuapur . He was the awarded teacher by state government of Utter Pradesh . He was devoted to the school.


2-Asharfi Lal Mishra [1] 1(a)

Asharfi Lal Mishra







He was an eminent  teacher of mathematics at Galuapur Inter College Galuapur . He was counted among the best mathematics teachers in undivided Kanpur district. [3] [4] The book of Geometry written by him was very popular. He was awarded Teacher Award in the year 1998. [5]  He was devoted to school.He is an educationist ,author [7] ,poet [6] [6a] and a good blogger [8]  [9]  too.His literary services are available digitally.[10] .He is also Youtuber. [11]


3-Ganga Charan Agnihotri [2] 

He was founder principal at RPS Inter College Rura . He was devoted to the school.


4-Ram Khilawan Shukla [2]

He was an eminent teacher at RPS Inter College Rura  and a good artist too.


5-Radhey Shyam Chaturvedi [1]

He was an eminent English teacher at Galuapur Inter College Galuapur.


6- Rameshwar Prasad Dwivedi 

He was founder principal at R S G U Post Graduate Degree College Pukhrayan . He was member of Uttar Pradesh Secondary Education Commission. He was devoted to the college.


7- Chandrika Prasad Pandey 

He was founder principal of Akbarpur Inter College Akbarpur .He was devoted to the school.


8- Radhey Shyam Katiyaar 

He was founder principal at Gram Vikas Inter College Budhauli . He was devoted to the school.


9- Prabhu Dayal Katiyar

He was founder principal at Patel Vidyapeeth Inter College Baraur .He was devoted to the school.


सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

कानपुर देहात जिले के उल्लेखनीय शिक्षक (रिपोर्ताज)

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






कानपुर देहात के चुनिंदा उल्लेखनीय शिक्षकों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है :


1-प्रकाश चंद्र मिश्र (Prakash Chandra Mishra)[a]

Galuapur  Inter  College Galuapur   के संस्थापक प्रधानाचार्य  थे। राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत शिक्षक थे।अनुशासन प्रिय, विद्यालय के लिए समर्पित थे।


2-अशर्फी लाल मिश्र (Ashrafi Lal Mishra)[a] 1[ a]


अशर्फी लाल मिश्र 

Galuapur Inter College Galuapur में गणित शिक्षक थे।[1] [2] अविभाजित कानपुर जिले में गणित के श्रेष्ठ शिक्षकों में गिनती थी। इनके द्वारा लिखी गई रेखागणित की पुस्तक काफी लोक प्रिय थी।[3] 1998 में शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित।[4] अनुशासन प्रिय एवं विद्यालय के लिए समर्पित थे। आप एक शिक्षाविद ,कवि[5] 5(a) ,लेखक[6] एवं ब्लॉगर [7] [8] हैं। आप की साहित्यिक सेवाएं डिजिटल हैं।[9] । अनुशासन प्रिय एवं विद्यालय के लिए समर्पित शिक्षक थे। 


3-गंगा चरण अग्निहोत्री (Ganga Charan Agnihotri)[b]

R P S Inter College  Rura  में संस्थापक प्रधानाचार्य थे।इनके कार्य काल में विद्यालय को कला, विज्ञान,कृषि एवं वाणिज्य वर्ग में इण्टर की  एक साथ मान्यता मिली। अनुशासन प्रिय एवं विद्यालय के लिए समर्पित थे। 


4- राम खिलावन शुक्ल (Ram Khilawan Shukla )[b]

R P S Inter College Rura में हिंदी विषय के प्रतिष्ठित शिक्षक थे। नाटक में अभिनय भी करते थे। अनुशासन प्रिय एवं समर्पित शिक्षक थे। 


5 - राधेश्याम चतुर्वेदी (Radhey Shyam Chaturvedi)[a]

 Galuapur Inter College Galuapur में अंग्रेजी के शिक्षक थे। अनुशासन प्रिय एवं समर्पित शिक्षक थे। 


6 -रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी (Rameshwar Prasad Dwivedi)

R S G U Post Graduate College Pukhrayan के संस्थापक प्राचार्य  थे।  उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा आयोग  के सदस्य थे। अनुशासन प्रिय और संस्था के लिए समर्पित थे। 


7- चन्द्रिका प्रसाद पाण्डेय (Chandrika Prasad Pandey)

Akbarpur Inter College Akbarpur के संस्थापक प्रधानाचार्य थे। अनुशासन प्रिय एवं संस्था के लिए समर्पित थे।

 

8 -राधे श्याम कटियार (Radhey Shyam Katiyar) 

Gram Vikas Inter College Budhauli के संस्थापक प्रधानाचार्य थे। अनुशासन प्रिय और विद्यालय के लिए समर्पित थे। 


9 -प्रभु दयाल कटियार (Prabhu Dayal Katiyaar ) 

Patel Vidyapeeth Inter College Baraur के संस्थापक प्रधानाचार्य थे। अनुशासन प्रिय और संस्था के लिए समर्पित थे। 


शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

जनतांत्रिक मूल्यों में ह्रास

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 



जैसे जैसे भारतीय लोकतंत्र की आयु बढ़ती जाती है वैसे वैसे लोकतांत्रिक मूल्यों में ह्रास होता जाता है। 2021 में  भारत  स्वतंत्रता की हीरक जयंती का उत्सव मनाने जा कहा है फिर भी कुछ  दिशाओं में सरकार आगे बढ़ने का साहस  नहीं कर पा रही है। 

सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की हो लेकिन  आज तक जनप्रतिनिधियों की योग्यता निर्धारित करने पर सभी दल शांत  रहते हैं। 

आज चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा तक की सेवा में जाने के लिए योग्यताएं निर्धरित है लेकिन जिनके हाथ में सत्ता की बागडोर है उनके लिए आज तक कोई भी योग्यता निर्धारित नहीं है।  

जनतंत्र के उद्भव काल में  लोक सभा , विधान सभाओं आदि के निर्वाचन में समाज सेवा के  लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति ही चुनाव मैदान में उतरते थे लेकिन आज स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है। आज स्थिति यह है कि न ही शिक्षा की जरूरत है ,न ही  समाज सेवा की। 

आज चुनाव मैदान में उतरने के लिए जरूरत है :

1 -धनबल 

2 -क्षेत्र में दबदबा 

3 - कानून से बचने की क्षमता 

4 -आपराधिक छवि 

5  -दल के मुखिया की जनता में छवि


चूंकि उम्मीदवार की समाज में कोई पृष्ठ भूमि नहीं होती अतः धनबल से ही समाज में पहचान बनाई जा सकती है। 

यदि क्षेत्र में दबदबा है तो भी जनता से वोट मिलने की उम्मीद की जा सकती है। 

भारत निर्वाचन आयोग या राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा सभी चुनावों में प्रत्येक पद के उम्मीदवार के लिए चुनाव में चुनाव व्यय निर्धारित है फिर भी इस सीमा का उल्लंघन करना बहुत ही आसान है। 

किसी भी चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले उम्मीदवार कितना भी धन प्रचार में खर्च  कर सकता है। अधिसूचना पूर्व प्रत्याशी द्वारा किया गया खर्च कानून की दृष्टि में कोई अपराध ही नहीं है। यह है क़ानून से बचने की प्रत्याशी क्षमता। 

अधिसूचना पूर्व प्रत्याशी लाखों/करोड़ों रुपये  अपने क्षेत्र में कट आउट ,होर्डिंग,पोस्टर ,बैनर ,वॉलपेंटिंग आदि पर खर्च कर देते हैं। 

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की अधिसूचना के पूर्व प्रत्याशी का  प्रचार 


चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद प्रशासन उक्त प्रचार सामग्री को हटाने पर लाखों/करोड़ों रुपये व्यय करता  है। 

रहा न प्रत्याशी का दिमाग ब्यूरोक्रेसी के आगे आगे  चलता है।  जब पोस्टर ,बैनर लगाए जाते है या वाल पेंटिंग होती है  तब प्रशासन सोता है जब प्रत्याशी का जनता में प्रचार हो चुका होता है तब कहीं प्रशासन की नींद खुलती है। हमारा  कहने का आशय यह है जब अधिसूचना जारी नहीं होती उसके पहले ही प्रत्याशी क्षेत्र में  प्रचार सामग्री के माध्यम से अपने को सशक्त उम्मीदवार के रूप में जनता के बीच प्रस्तुत करने में सफल रहते हैं। पर्यावरण को कितनी हानि होती है यह न तो प्रत्याशी समझता है और न ही  प्रशासन। 

इस अप्रत्याशित प्रचार और खर्च पर प्रिंट मीडिया के  रिपोर्टर्स  की आँखें सदैव बंद रहती है.हर खम्भे पर लगे पोस्टर ,जगह जगह होर्डिंग ,बैनर हर किसी को आकर्षित करते हैं लेकिन लोकतंत्र के प्रहरी एवं  चतुर्थ  स्तम्भ की निगाह में ऐसा कुछ दिखाई ही नहीं देता। 

ओपिनियन 

1 - प्रत्येक स्तर पर  उम्मीदवार की अनिवार्य योग्यता निर्धारित हो। 

2 -अनिवार्य योग्यता में दो बच्चे वालों की प्रत्याशिता को जोड़ा  जा सकता है। जिससे देश में बढ़ रही जनसँख्या पर अंकुश लगेगा। 

3 - चूँकि पदों में आरक्षण है इसलिए आरक्षण में भी दो बच्चों की शर्त जोड़ी जा सकती है। इससे भी जनसँख्या में नियमन होगा। 

4 -अधिसूचना पूर्व चुनाव प्रचार  अवैध ठहराया जाय।

5 - यदि प्रत्येक पद की अनिवार्य शैक्षिक एवं समाज सेवा की अर्हता निर्धारित कर दी जाय तो चुनाव पूर्व प्रचार नहीं होगा एवं अधिसूचना के बाद प्रचार सामग्री हटाने की जरूरत नहीं होगी। 

6 - जनतंत्र को सुदृढ़ करने के लिए जनप्रतिनिधियों के लिए समाज सेवा अनिवार्य की जाय। इसके लिए समाज सेवा में सर्टीफिकेट  कोर्स ,डिप्लोमा कोर्स  एवं डिग्री (B. Tech.) पाठ्य क्रम प्रारम्भ किये जाय। 

   

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

Galuapur Inter College overview

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र               
अशर्फी लाल मिश्र 








गलुवापुर इण्टर कॉलेज गलुवापुर ,कानपुर देहात -गणतंत्र दिवस 2021 समारोह का एक दृश्य 


23 जनवरी 2021 को अचानक व्हाट्सएप्प के माध्यम से  गलुवापुर  इण्टर कॉलेज गलुवापुर ,कानपुर देहात के प्रधानाचार्य ओम प्रकाश सिंह का एक आमंत्रण पत्र मिला जिसमे विद्यालय में हो रहे  72 वें गणतंत्र दिवस में सम्मिलित होने का अनुरोध किया गया था। 

अगले दिन 24 जनवरी 2021 को इसी विद्यालय के  छात्र और हमारे प्रिय शिष्य राम कुमार गुप्त (सेवा निवृत्त जनरल मैनेजर -NTPC ,वर्तमान सलाहकार -उत्तर प्रदेश विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड ) व्हाट्सएप्प पर  सन्देश आया कि 
  "  मैं 72 वें गणतंत्र दिवस समारोह के  अवसर पर गलुवापुर इण्टर कॉलेज गलुवापुर ,कानपुर देहात  में मुख्य  अतिथि  के रूप में आमंत्रित हूँ "

 25 जनवरी 2021 को Ram Kumar Gupta का   फोन आया कि  
" आप समारोह में आइये हमें आप को समारोह में सम्मानित करना है "


अब हमने गणतंत्र दिवस समारोह में सम्मिलित होने की प्रधानाचार्य को फोन द्वारा सहमति प्रदान कर दी। 

72 वें गणतंत्र दिवस समारोह पर गलुवापुर इण्टर कॉलेज गलुवापुर ,कानपुर देहात  के छात्रों का एक दृश्य 


वाहन की असुविधा के कारण  हम समारोह में   लगभग 20 मिनट  विलम्ब से पहुँचे। कार्यक्रम में पहुँचने पर कार्यक्रम संचालक  एवं विद्यालय के वरिष्ठतम शिक्षक अजय कुमार पाल  द्वारा   माइक से  आने की  सूचना दी गई।  

विद्यालय के सभी छात्रों , शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों ,आगंतुक अतिथियों सहित मुख्य अतिथि ने खड़े होकर करतल ध्वनि से  स्वागत किया। प्रधानाचार्य ओम प्रकाश सिंह पटेल ने मुख्य अतिथि के बगल में बैठने के लिए स्थान दिया। हमारे द्वारा उन्हें धन्यवाद दिया गया। बाद  में प्रधानाचार्य द्वारा  माल्यार्पण कर एवं  बैज लगाकर हमें  सम्मानित किया। हमने उनका ह्रदय से आभार प्रकट किया. 

मंच पर बैठे अतिथिगण बाएं से दाएं --> सुरेश चंद्र द्विवेदी (पूर्व शिक्षक) ,जय नारायण मिश्र (पूर्व शिक्षक ),राम कुमार गुप्त (पूर्व छात्र ,निवर्तमान जनरल मैनेजर NTPC, Advisor-UPRVUNL), अशर्फी लाल मिश्र A(पूर्व शिक्षक ,शिक्षाविद ,कवि,लेखक एवं  [1] ,ब्लॉगर [2]), ओम प्रकाश सिंह पटेल (प्रधानाचार्य )

इस अवसर पर मुख्य अतिथि ने विद्यालय के मेधावी छात्रों एवं सांस्कृतिक कार्य क्रमों में भाग लेने वाले छात्रों को पुरस्कार वितरित किये। सम्पूर्ण सेवा निवृत्त शिक्षकों,शिक्षणेत्तर कर्मचारियों एवं कार्यरत शिक्षकों ें एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को भी मुख्य अतिथि ने पुरस्कार  देकर सम्मानित किया।  



समारोह में उपस्थित गणमान्य अतिथिगण 

इस विद्यालय के पूर्व छात्र एवं मुख्य अतिथि राम कुमार गुप्त ने अपनी माध्यमिक शिक्षा को जीवन में स्मरणीय एवं जीवन में मील का पत्थर कहा। उनहोंने कहा कि 
" मैंने इसी विद्यालय से हाई  स्कूल (विज्ञानं वर्ग) एवं इण्टर (विज्ञान वर्ग ) से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। हाई स्कूल में गणित में विशेष योग्यता प्राप्त हुयी थी। हमारे बायीं ओर बैठे  अशर्फी लाल मिश्र हमारे गणित शिक्षक  थे। "
कार्यक्रम के अंत में प्रधानाचार्य ने सभी का आभार व्यक्त किया। 

संस्था ऊँचाई के बाद ढलान पर: 
यह विद्यालय हमारा कार्य क्षेत्र रहा है। 18 वर्ष पश्चात् इस विद्यालय में किसी कार्यक्रम में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। विद्यालय के छात्रों , शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की संख्या देखकर लगा कि विद्यालय किसी प्रकार सिर झुकाकर चल रहा है जो विद्यालय का जिले में गौरव था वह अब इतिहास बन कर रह गया है। 


किसी समय विद्यालय में 50  से अधिक शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को मिला दें तो यह संख्या 70 से अधिक थी। विद्यालय में छात्र भी 3500 के लगभग थे। उस  समय हमारे लिए समय  सारिणी बनाने में छात्रों की संख्या के अनुसार कक्ष आबंटन  एवं फर्नीचर व्यवस्था करना एक काम था।   
आज विद्यालय में प्रधानाचार्य द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार विद्यालय में कुल 8 (1 +7 ) शिक्षक नियमित  एवं   1080 छात्र  हैं। 5  प्राइवेट शिक्षकों के साथ शिक्षण कार्य हो रहा है। 

छात्रों की संख्या के अनुसार विद्यालय में शिक्षकों की कमी है इससे शिक्षण कार्य प्रभावित होता है यद्यपि  प्रधानाचार्य कर्मठ हैं तथा  सहयोगी भी साथ दे रहे हैं लेकिन पर्याप्त शिक्षक न होने के कारण  शिक्षण कार्य तो प्रभावित होता ही है इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है। उत्तर प्रदेश शासन को  चाहिए कि विद्यालय में वांछित  शिक्षकों  की शीघ्र पूर्ति करे।  

ओपिनियन 
1- संस्था में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की कमी है।चूँकि संस्था सहायता प्राप्त शिक्षण संस्था है इसलिए  उत्तर प्रदेश सरकार  को चाहिए कि यथा संभव शिक्षकों की पूर्ति की  व्यवस्था करे।  
2-भवन भी जीर्ण शीर्ण है इसके लिए  रख रखाव के लिए भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 
3-डिजिटल शिक्षा में छात्र एवं शिक्षक दोनों ही अभी प्रारंभिक चरण में ही हैं.


 

  

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

शैक्षिक संस्थाओं में डिजिटल शिक्षा का प्रवेश

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 

 




जैसे जैसे मानव जाति  में सांस्कृतिक  विकास हुआ वैसे वैसे शिक्षा पद्धति में भी  विकास हुआ। शिक्षा ही वह अभूतपूर्व विधा है जो मानव को पशुओं से  अलग करती है अन्यथा पशु एवं  मनुष्य में कोई अंतर ही नहीं होता।  

मानव सभ्यता को क्रमशः आगे बढ़ाने  में  शिक्षा को ही श्रेय दिया जा सकता है। 

प्रारम्भ में शिक्षा मौखिक थी।  ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में शिक्षा मौखिक ही दी जाती थी। कालांतर में ज्ञान भोजपत्रों एवं शिलालेखों के रूप में सामने आया। जब कागज का आविष्कार हुआ तो मौखिक ज्ञान  पांडुलिपियों के रूप में आया। जब छपाई का विकास हुआ तो  पहले छपाई ब्लाक से और बाद में प्रिंटिंग प्रेस और अब छपाई  कंप्यूटर से होने लगी। 

ज्ञान प्राप्त करने की विधियां 

1 - श्रव्य 

2 -कण्ठ्य 

3 -मौखिक 

4  -दृश्य 

5  -पाठ्य 

6  - लेख्य 

7  -डिजिटल 

श्रव्य , कण्ठ्य ,मौखिक :

इन  विधाओं  का एक साथ विकास हुआ। इन विधाओं का प्रयोग सबसे पहले माता और उसके बाद अन्य लोग करते हैं। ऋषियों मुनियों के आश्रमों भी श्रव्य और कण्ठ्य विधियों से ही ज्ञान दिया जाता था। 

दृश्य , पाठ्य,मौखिक  :

जब लेखन विधि का आविष्कार हुआ और ज्ञान पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध हुआ तो ज्ञान देने में दृश्य और पाठ्य विधियों का समावेश हुआ। लगभग एक दशक पूर्व तक   संस्कृत पाठशालाओं,  मकतबों ,मदरसों  में ज्ञान की विधाओं जैसे श्रव्य ,कण्ठ्य ,दृश्य एवं पाठ्य आदि का ही सहारा लिया गया। 

लेख्य :

ज्ञान प्राप्त करने की सभी विधाओं में  लेख्य सर्वोत्तम विधा  है। वर्तमान में सभी शिक्षण संस्थाओं में उक्त ज्ञान की सभी विधाओं जैसे श्रव्य,कण्ठ्य ,पाठ्य ,दृश्य एवं लेख्य एवं मौखिक विधाओं का स्तेमाल होता है।   

                                                      A scene of  Digital class

डिजिटल :

अभी तक शिक्षा प्रणाली में  परम्परागत विधाओं जैसे श्रव्य ,कण्ठ्य ,दृश्य ,पाठ्य , मौखिक और  लेख्य विधा का स्तेमाल होता रहा , लेकिन वर्ष 2020 में जब केवल भारत ही नहीं अपितु  सम्पूर्ण विश्व कोरोना महामारी से भयाक्रांत हो गया।  उस आपदा काल की स्थिति में भी भारत सरकार ने एक  उज्जवल अवसर देख कर  नई  शिक्षा नीति के साथ साथ  डिजिटल शिक्षा देने पर बल दिया गया। 

आज चाहे प्राथमिक शिक्षा हो या माध्यमिक या फिर उच्च शिक्षा हो हर कहीं डिजिटल शिक्षा का का तेजी से प्रचलन हो गया है यही नहीं देश में जितने भी कोचिंग संस्थान हैं वहां भी डिजिटल कोचिंग हो रही है। कहने का आशय यह है कि कोरोना काल  में  भारत  को एक सुअवसर प्राप्त हुआ जब   डिजिटल शिक्षा के  युग का प्रारम्भ  हुआ।  

डिजिटल शिक्षा देने में कुछ कठिनाइयाँ :

1 - 35  वर्ष  से अधिक आयु के शिक्षक साधारणतः फीचर फोन का स्तेमाल करते आ रहे है ,उन्हें स्मार्टफोन एवं इंटरनेट का स्तेमाल करना कम ही आता है यद्यपि  सभी शिक्षक डिजिटल ज्ञान देने की अनिवार्यता के  फलस्वरूप स्मार्ट फोन खरीदकर डिजिटल ज्ञान की ओर अग्रसर हैं। 

2 - ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत कम छात्रों के पास स्मार्ट फोन की उपलब्धता है। नगरीय क्षेत्रों  में गरीब अभिभावक भी स्मार्ट फोन उपलब्ध करने में असमर्थ नजर आ रहे हैं यद्यपि सभी छात्र डिजिटल ज्ञान के लिए उत्सुक नजर आ रहे हैं। 

3 - विना पाठ्य ,कण्ठ्य और लेख्य ज्ञान के डिजिटल ज्ञान कमजोर रहने की सम्भावना है अतः शिक्षा की  परम्परागत शैली को प्राथमिकता दी जाय तभी डिजिटल ज्ञान प्रभावी होगा. 

डिजिटल शिक्षा और निरीक्षण :

देखने में आया है कि अधिकाँश निरीक्षक डिजिटल ज्ञान में शून्य है और वे स्वयं अपने कंप्यूटर ऑपरेटर निर्भर रहते हैं निरीक्षकों को चाहिए वे शिक्षकों को नेट की नवीन विधा को  सीखने का अवसर दें। 

ओपिनियन 

1 - डिजिटल शिक्षा का भविष्य उज्जवल है। 

2 _डिजिटल ज्ञान से छात्रों को  पाठ्यक्रम के साथ साथ ढेर सारी  सहायक  उपलब्ध होगी। 

3 - छात्रों को  विविध विद्वानों और ब्लागरों  के लेख पढ़ने को मिलेंगे। 

4 - छात्रों को ब्लॉग के रूप में अपनी अभिव्यक्ति का अवसर मिलेगा। 

5 - छात्रों के बस्ते(bag) का बोझ घटेगा। 

  

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