शनिवार, 20 मार्च 2021

समय समय पर आरक्षण की समीक्षा हो

द्वारा : अशर्फी लाल मिश्र 

Asharfi Lal Mishra














Updated on 21/03/21
सविधान सभा की बहस में आंबडेकर ने गोपाल कृष्ण गोखले के कथन का उल्लेख किया था कि " ब्रिटिश राज्य के कार्यकाल में शासन में सवर्णों को उचित प्रतिनिधित्व न मिलने के कारण वे अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन नहीं कर सके, ऐसी स्थिति में  भारतीय दलित समाज की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है । "

आम्बेडकर ने सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़े दलित लोगों के निमित्त आरक्षण की मांग उठाई।
 गाँधी जी ने अपनी किताब  " मेरे सपनों का भारत " में लिखा कि " प्रशासन योग्य व्यक्तियों के हाथों में होना चाहिए। प्रशासन न सांप्रदायिक हाथों में हो और न ही अयोग्य  हाथों में। "[1]

एस सी /एस टी का आरक्षण 

अन्ततोगत्वा  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े दलितों (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ) को 
22. 5 %  का आरक्षण सुनिश्चित हुआ। इस आरक्षण का उद्देश्य था कि  समाज में  जो असमानता है वह दूर हो जाय। 
        आज समाज में इस वर्ग में बहुत से लोग शैक्षिक, सामाजिक एवं आर्थिक   दृष्टि से समुन्नत हो चुके हैं।  
 प्रारम्भ में यह आरक्षण 10 वर्षों के लिए हुआ था लेकिन धीरे धीरे यह आरक्षण गत 70 वर्षों से चला आ रहा है। इस आरक्षित वर्ग में आज एक वर्ग ऐसा है जो सामाजिक ,शैक्षिक एवं आर्थिक हैसियत में उच्चतम स्तर पर है। इस वर्ग के अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी भी आरक्षण की सुविधा को छोड़ना नहीं चाहते। इससे इस वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता  है। 
        अगर इस वर्ग के आरक्षण की समीक्षा  हो  और क्रीमीलेयर  का विधान लागू कर दिया जाय तो एस सी /एस टी वर्ग के गरीबों को लाभ मिल सकता है लेकिन आज आरक्षण वोट बैंक भी है इसलिए इस वर्ग के राजनेता क्रीमीलेयर लागू  नहीं होने देते। इस वर्ग के राज नेता अपने ही वर्ग के गरीबों  के हितैषी न होकर अपने  वोट बैंक की ओर दृष्टि रहती है। 
    इस आरक्षण को लागू हुए सात दशक बीत गए और बिना समीक्षा के ही आरक्षण बढ़ता रहा। 
आज समाज में घर के  बाहर कहीं भी भेद भाव नहीं है। जैसे रेल,बस ,वायुयान ,टैक्सी आदि यात्रा में ; सार्वजानिक सभाओं,समारोहों ,होटल आदि जगहों पर। शायद ही किसी मंदिर में प्रवेश के समय जाति पूँछी जाती हो। 
          आज देश में कोई ऐसी शिक्षण संस्था नहीं है  जहां जाति के अनुसार प्रवेश वर्जित हो। 
आज  इस वर्ग के लोग प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अच्छे अंक ला रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि इस वर्ग के लोग सामाजिक ,शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत हो गए हैं। अतः एस सी /एस टी वर्ग के आरक्षण की समीक्षा हो और समय समय पर समीक्षा होती रहनी चाहिए।  समीक्षा में कुछ सम्मुनत जातियों को आरक्षण से बाहर और  शेष जातियों में क्रीमीलेयर का नियम लागू किया जा सकता है। 

ओ बी सी का आरक्षण 

20 दिसम्बर 1978 को मोरार जी देसाई ने संसद में O B C आरक्षण के लिए  बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में आयोग की घोषणा की। 12  दिसंबर 1980 को मंडल आयोग ने रिपोर्ट दी। मंडल आयोग ने सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों के लिए 27 %   आरक्षण देने की संस्तुति की। 13 अगस्त 1980 को  वी पी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने मंडल आयोग की सिपारिश को लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी। [2]
  
      आज ओ बी सी वर्ग में  आरक्षण के बाद देश में कई ऐसी जातियां हैं जो सामान्य जाति से भी  आगे   सामाजिक ,शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से स्थान बनाने में सफल हैं। O B C  वर्ग में जिन जातियों ने सामाजिक ,शैक्षिक और आर्थिक दृष्टि आशातीत समुन्नत हुए हैं  उनमें कुछ  जातियों का विवरण नीचे दिया जा रहा है। 

1 - अहीर :

आज सम्पूर्ण अहीर समाज यदुवंशी क्षत्रिय के रूप में समाज में विख्यात है;  और सभी लोग अपने नाम के आगे यादव लिखते हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी बहुत आगे हैं। इस जाति  के लोग सेना ,पुलिस , चिकित्सा ,शिक्षा ,न्यायपालिका , अखिल भारतीय सेवाओं ,राजनीति  आदि में सामान्य जाति  से भी आगे हैं। वर्तमान में शिक्षा के प्रसार में भी शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने में भी आगे हैं। अतः अहीर (यादव ) को O B C   आरक्षण से बाहर   किया जा सकता है । 

कुर्मी :

कुर्मी अपने को समाज में कुर्म क्षत्रिय लिखते हैं। इस वर्ग के लोग अपने नाम के आगे कटियार , सचान ,गंगवार ,पटेल आदि उपनाम लिखते हैं। समाज में सामान्य जातियों की भांति इन्हें सम्मान प्राप्त है। शैक्षिक दृष्टि से भी उच्च शिक्षित हैं। इस जाति के लोग सेना , पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका ,अखिल भारतीय सेवाओं ,राजनीति आदि में सामान्य जाति से भी आगे हैं। शिक्षा के प्रसार में भी इस जाति द्वारा शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने में भी विशेष योगदान है। अतः कुर्मी जाति को  O B C आरक्षण से  बाहर किया जा सकता है। 

भट्ट :
इस जाति  के लोग  अपने को ब्रह्मभट्ट भी लिखते हैं और अपने नाम के आगे शर्मा उपनाम लिखते हैं।  समाज में यह लोग ब्राह्मणों के समकक्ष सम्मानित हैं। आज यह जाति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत है। इस जाति को भी O B C आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।  

जाट :

आज जाट भी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत  हैं।आज इस वर्ग के लोग सेना ,पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका  ,अखिल भारतीय सेवाओं एवं राजनीति में उच्च स्थान बनाने में सफल हैं।  इस जाति  को भी O B C आरक्षण से बंचित किया जाना चाहिए। 

लोधी :

लोधी भी आज अपने को राजपूत लिखते हैं  समाज में सम्मानित हैं। शैक्षिक दृष्टि से भी समुन्नत है। आज इस वर्ग के लोग सेना ,पुलिस ,चिकित्सा ,शिक्षा,न्यायपालिका  ,अखिल भारतीय सेवाओं एवं राजनीति में उच्च स्थान बनाने में सफल हैं। इस जाति को भी O B C आरक्षण बाहर   किया जाना चाहिए। । 

इसी प्रकार  अन्य बहुत सी  जातियां भी सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत  हो चुकी है उन्हें भी आरक्षण से बाहर किया जा सकता है। 
आरक्षण की समीक्षा के लिए एक आयोग बने जो यह देखे कि वर्तमान में सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से  कौन कौन जातियां समुन्नत हैं। राजनीतिक दल वर्तमान स्थिति की ओर ध्यान न देकर 70 वर्ष पहले की बात करके नौकरियों में बैक लॉग की बात करते हैं जो निश्चित ही वोट बैंक की ओर इशारा है। 

अभिमत :
1 -समय समय पर आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए।
2 - सामाजिक एवं  शैक्षिक दृष्टि से सम्मुन्नत जातियों  का आरक्षण समाप्त  किया जाना  चाहिए।
3 -समीक्षा वर्तमान सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि में रखकर होनी चाहिए।
4 - बैक लॉग वर्तमान समानता की ओर संकेत न करके 70 वर्ष पहले की असमानता का ओर  संकेत देता है। समीक्षा वर्तमान परिपेक्ष्य में हो।
5 -  एस सी /एस टी वर्ग में जो  नव धनाढ्य  वर्ग है और  सामाजिक एवं  शैक्षिक दृष्टि से समुन्नत हो गया है उसे आरक्षण की सुविधा से  बंचित किया जा सकता है शेष SC/ST जातियों में   क्रीमीलेयर का तत्काल प्राविधान किया जाना चाहिए । 
5 - आरक्षण व्यवस्था राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक है इसलिए कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण की समीक्षा की पहल नहीं करना चाहता है। आरक्षण की समीक्षा न होना खेद जनक है।   
6-आरक्षण कितनी पीढ़ियों तक चलेगा यह चिन्ता का विषय है अतः आरक्षण की शीघ्र समीक्षा होनी चाहिए।
         

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास सांस्कृतिक कार्यक्रम द्वारा

लेखक :अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र 


आजादी के पूर्व देश में शिक्षण संस्थाओं की कमी थी लेकिन आजादी के पश्चात्  शिक्षा  वीरों / समाज सेवकों द्वारा शिक्षण संस्थाओं की एक  लम्बी श्रंखला खड़ा कर दी विशेषकर घनी आवादी वाले उत्तर प्रदेश में। इन समाज सेवकों /शिक्षा वीरों का  मुख्य उद्देश्य था नई पीढ़ी को शिक्षित करना। 

उस समय के शिक्षा वीरों एवं शिक्षकों में एक जोश था/ उत्साह था अतः उस समय शिक्षण संस्थाओं में अभिव्यक्ति के विकास के लिए शिक्षण संस्थाओं में सांस्कृतिक कार्य क्रमों पर भी बल दिया जाता था।  


उत्तर प्रदेश में गत तीन दशकों  में परिषदीय ,मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालयों ,महा विद्यालयों का जाल बिछ गया। परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों ,अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य वेतन प्राप्त करना हो गया वहीँ मान्यता प्राप्त एवं गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय शिक्षा के कारखाने बन गए। 

सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों / महाविद्यालयों  में   कुछ सीमा तक खेलकूद एवं नाम मात्र को सांस्कृतिक कार्यक्रम जीवित बने रहे। जहाँ  परिषदीय विद्यालओं की बात  है वहां भी बहुत कम ही विद्यालयों में खेल कूद एवं सांस्कृतिक कार्य क्रम होते देखे गए या यों कहिये की लीक पिटती रही।

 कुछ ही ऐसी गिनी चुनी शिक्षण  संस्थाएं होंगी जहां संस्था के छात्रों और शिक्षकों का हॉउसों में विभाजन कर शिक्षणेत्तर  क्रिया कलाप एवं तदनुसार  संस्था का   वार्षिक समारोह होता हो. 
इसका परिणाम यह हुआ कि छात्र किताबी कीड़े बन गए। 

छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास कैसे हो :
(1) सम्पूर्ण छात्रों एवं शिक्षकों को विभागों (Houses) में विभक्त कर शिक्षणेत्तर क्रिया कलाप कराये जाय। इससे छात्रों में प्रतियोगिता की भावना पैदा होगी। 
(2 ) गेम्स  एवं स्पोर्ट्स के लिए समय सारिणी में स्थान के साथ साथ मैदान में भी छात्रों को अवसर दिया जाय। 
(3) प्रत्येक संस्था में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराये जाय जिससे छात्रों में अभिव्यक्ति का विकास होगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम में निम्न कार्य क्रमों पर बल दिया जाय :
1  -कविता  (राष्ट्रीय गीत )
2 -लोक गीत
 3  -काव्य पाठ (माध्यमिक एवं उच्च स्तर पर )
4  - भाषण
 5  -वाद विवाद प्रतियोगिता 
6  -एकांकी
 7  - प्रहसन 
अन्य प्रतियोगितायें :
1 -निबन्ध लेेखन 
2-कला प्रतियोगिता
3-वैज्ञानिक मॉडल 
जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम हों सरस्वती वन्दना  से  प्रारम्भ हों ,इसके लिए प्रत्येक विद्यालय में एक सरस्वती का चित्र भी हो।  बाद में राष्ट्रीय गीत ,उसके बाद अन्य ,सबसे अंत में राष्ट्र गान हो। 

अभिमत 
1 - छात्रों में अभिव्यक्ति के विकास के लिए सप्ताह  के अंत में  या प्रत्येक शनिवार को   सांस्कृतिक कार्यक्रम अवश्य   आयोजित किया जाना चाहिए।  
2- जहां छात्र संख्या और शिक्षकों की  संख्या पर्याप्त हो वहां  शिक्षण संस्था को  4  विभागों (Houses ) में विभक्त कर वार्षिक समारोह कराये जाने चाहिए । 
3 - जहां छात्रों की  संख्या एवं शिक्षकों की संख्या कम हो वहां विद्यालय/संस्था  को 2 विभागों (Houses) में विभक्त कर वार्षिक समारोह आयोजित किया जा सकता। है। 
4 -जहां तक संभव हो प्रत्येक छात्र को किसी न किसी कार्यक्रम में भाग लेने के  लिए प्रोत्साहित किया जाय। 
5 - कई विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम सरस्वती वन्दना से प्रारम्भ नहीं होते, वहां सम्बंधित निर्देश होना चाहिए। 






अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...