बुधवार, 5 अप्रैल 2017

द्विजदेव (कवि )

By : Asharfi Lal Mishra

Asharfi Lal Mishra










द्विजदेव   (१८३० -१८७१ ):रीति कालीन स्वच्छन्द  मुक्तक काव्य परम्परा के अंतिम कवि  अयोध्या  के महाराज मान सिंह माने जाते हैं जो द्विजदेव के नाम से कविता करते थे। ये जाति ब्राह्मण थे। वर्ष १८५७  की  गदर में अंग्रेजों का साथ दिया था और जागीर प्राप्त की थी लेकिन अंत समय में सब कुछ त्याग कर वृन्दावन  चले गए।
साहित्य सृजन : इन्होंने प्रणय भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज स्वाभाविक रूप से की है। निम्न पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :
तू जो  कही ,सखि ! लोनो सरूप ,सो मो अँखियान कों लोनी गई लगि। 
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एहो ब्रजराज ! मेरो प्रेमधन लूटिबे को , बीरा खाय आये कितै आप के अनोखे नैन !
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हाय इन  कुंजन तें  पलटि पधारे श्याम ,देखन न पाई वह  मूरति सुधामई। 
आवन समै में दुखदाइनि भई  री लाज ,चलन समै में चल पवन ने दगा दई । । 
ऋतु -वर्णन :
ऋतू -वर्णन के क्षेत्र में  इन्होंने मुक्तक काव्य परम्परा के अन्य कवियों  की अपेक्षा अधिक उची दिखाई है। इसकी सार्थकता निम्नांकित उद्धरणों में देखि जा सकती है :
मिलि माधवी आदिक फूल के व्याज विनोद -लवा बरसायो करै।
रवि नाच लता गन तान वितान सबै विधि चित्त चुरायो करै। 
द्विजदेव जु  देखि  अनोखी प्रभा अलि -चारन कीरति गया करै। 
चिरजीवो ,बसन्त  ! सदा द्विजदेव प्रसूनन की झरि लायो करै।।
घहरि घहरि घन सघन चहूँधा घेरि , छहरि छहरि विष -बूँद बरसावै ना। 
द्विजदेव की सौं अब चूकै मत दाँव ,ए रे पातकी पपीहा !तू पिया की धुनि गावै ना।

*                           +                                    +                                         +
हौं तौ बिन प्रान ,प्रान चाहत तजोई  अब ,कत नभ चंद तू अकास चढ़ि धावै ना।
   द्विजदेव को स्वच्छन्द मुक्तक काव्य परम्परा का अंतिम कवि माना  जाता है।
प्रकाशित ग्रन्थ :
(१) श्रृंगार -बत्तीसी
(२) श्रृंगार -लतिका

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

विधि वेत्ता : भीमराव रामजी आंबेडकर


Asharfi Lal Mishra











भीमराव रामजी आंबेडकर ;भारत में एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसे कोई भी राजनीतिक दल उपेक्षित करने का साहस नहीं कर सकता। आज प्रत्येक राजनीतिक दल के लिए  आंबेडकर  प्रासंगिक हो गए हैं।  आंबेडकर बाबा साहेब के नाम से लोकप्रिय , भारतीय विधिवेत्ता ,अर्थशास्त्री ,राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे। 


व्यक्तिगत जीवन :
इनका जन्म १४ अप्रैल १८९१ को   मध्य प्रदेश राज्य के महू नगर के  छावनी क्षेत्र में हुआ।  इनके पिता  का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। यह अपने १४ भाई बहनों में सबसे छोटे थे और पिता सेना में सूबेदार।[1]
 इनका सम्बन्ध   ग्राम अम्बावाड़े, जिला रत्नागिरी ,महाराष्ट्र से था। आंबेडकर का जन्म निर्धन दलित (महार) जाति में हुआ। महार जाति की  गणना अछूत जातियों में थी। आंबेडकर के पूर्वज ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एवं   ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा करते थे। इनके पिता ने  सेवा करते हुए सेना में सूबेदार का पद प्राप्त कर लिया था। ६ दिसंबर १९५६ को दिल्ली में इस चमत्कारी दलित नेता का  देहावसान हो गया।  

 प्रारंभिक शिक्षा 
रामजी सकपाल ने स्कूल में अपने बेटे भीमराव का उपनाम ‘सकपाल' के स्थान पर अम्बावड़ेकर  लिखवाया, क्योंकि  कोकण प्रांत में लोग अपना उपनाम गांव के नाम से लगा देते थे। कालांतर में आंबेडकर से स्नेह  रखने वाले इनके  शिक्षक महादेव आंबेडकर ने  भीमराव  के आगे  अम्बावड़ेकर के स्थान पर आंबेडकर लिख दिया। रामजी सकपाल  वर्ष १८९४ में सेना की सेवा से सेवा निवृत्त हुए और २ वर्ष पश्चात् यह परिवार सहित सतारा आ गए। यहां आये कुछ समय पश्चात् ही  आंबेडकर की माता का निधन हो गया। आगे  परिवार की देखभाल इनकी बुआ  द्वारा की गई। अपने परिवार में केवल यही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर सके।
माध्यमिक शिक्षा :
१८९७  में अम्बेडकर का परिवार बंबई चला गया , जहां अंबेडकर एलफिन्स्टन हाई स्कूल में सर्व प्रथम नामांकित अस्पृश्य छात्र थे। १९०६ में १५ वर्ष की आयु में ९ वर्ष की रमाबाई से इनका विवाह हो गया।
१९०७ में मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की।
च्च शिक्षा :
*१९१२:  अर्थशास्त्र और नागरिक शास्त्र में  बम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की।
*१९१५ : अर्थशास्त्र में में परास्नातक उपाधि कोलंबिया विश्वविद्यालय ,न्यूयार्क ,संयुक्त राज्य अमेरिका। 
*१९१६: लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में नामांकन। 
*१९२१ :अर्थशास्त्र में परास्नातक उपाधि लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स ,यू के। 
*१९२७ : अर्थशास्त्र में पी एच डी उपाधि  कोलंबिया विश्वविद्यालय ,न्यूयार्क ,संयुक्त राज्य अमेरिका। 
*१९२३ : कानून में उपाधि एवं अर्थशास्त्र में   डी एस-सी  उपाधि, लन्दन विश्वविद्यालय।

 राजनीतिक जीवन :
*१५ अगस्त १९४७ को भारत के स्वतंत्र होने  पर प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में  कानून मंत्री नियुक्त किया।
*२९  अगस्त १९४७ को  स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए बनी प्रारूप  समिति  के यह अध्यक्ष नियुक्त किये गए।

सम्मान :
*१९९० : भारत रत्न 

विचार  धारा :
*सामाजिक समता मूलक सिद्धांत के पोषक।
*छुआछूत के विरुद्ध लोगों में चेतना के पक्षधर।
*संविधान  के अनुच्छेद ३७० के यह विरुद्ध ।
*सबके लिए समान  कानून के समर्थक ।
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