शनिवार, 23 दिसंबर 2017

बाबाओं के मकड़जाल में वर्ष 2017


Asharfi Lal Mishra










आज  भारतीय जान मानस में बाबाओं के प्रति अगाध श्रद्धा और बढ़ते  अंध- विश्वास के कारण बाबाओं के  मकड़जाल  केंद्र   अभेद्य  किले के रूप में परिवर्तित  हो रहे हैं।
आश्रमों में होते हैं घिनौने काम [a] [f]
कुछ बाबाओं ने भारतीय संस्कृति की आस्था का ऐसा दोहन किया कि सारे विश्व में बाबाओं ने अपनी थू थू करवा ली। बाबाओं ने अपनी साधिकाओं / शिष्याओं का यौन शौषण कर आज जेल की हवा खा रहे हैं। कुछ महा अपयश प्राप्त बाबा निम्न हैं: 
1-आसाराम 
2-राम रहीम
3-रामपाल 
गुरुमीत रामरहीम,आसाराम,रामपाल









आश्रमों  के नामकरण 
बाबाओं ने अपने  आश्रमों  का नामकरण इस  विधि से किया है  कि  लोग  पढ़ते ही  आकर्षित हो जायँ। मठाधीश भले ही निरक्षर हों लेकिन पारलौकिक ज्ञान , वैदिक ज्ञान  आदि में अपने को निष्णात कहते हैं। कुछ आश्रमों के  नाम तो समाज में भ्रम उत्पन्न करने वाले भी हैं
जैसे आध्यात्मिकविश्वविद्यालय  [1] ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। क्या ये विश्वविद्यालय  यू जी सी  अनुमोदित हैं  ? क्या मानक के   अनुरूप इन विश्वविद्यालयों का शिक्षण ,परीक्षण एवं निरीक्षण  होता है ? 

आश्रमों का महिमा मण्डन 
आश्रम की गति विधियां जितनी अधिक  गोपनीय होंगी उतनी अधिक उस आश्रम की ख्याति  फैलती  है। अनुयायी बढ़ाओं आश्रम में पद पाओ  नीति से आश्रम के अनुयायियों द्वारा निरन्तर नये अनुयायी/शिष्य  /छात्र /छात्राएं बढ़ाने का प्रयास  रहता है। महंतो की महिमा मण्डन करने में राजनेता भी पीछे नहीं रहते। इन महंतों के साथ राजनेताओं की  खींची जाने वाली फोटो और वीडिओ  को अपने अनुयायियों के मध्य या अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर अपने को स्वयं-भू भगवान् कहने और लिखने में अपने को गौरान्वित समझते हैं। 

उपाधियाँ 
परंपरा यह है कि जो  उपाधियाँ  किसी संस्था द्वारा प्रदत्त की जाती हैं वे ही उपाधियाँ व्यक्ति को अपने नाम के पूर्व या पश्चात् लिख सकते हैं लेकिन ये महंत स्वयं  अपने नाम के  पूर्व  पूज्य, संत ,संत शिरोमणि ,भगवन आदि  विशेषणों को लिखते  हैं। 

आश्रमों का  साहित्य 
कई आश्रम  प्रमुखों  की शिक्षा नगण्य है लेकिन उन्होंने वैदिक ग्रंथों का अपने अनुसार  मनमानी  भाष्य लिख दिया। (विना वैदिक ग्रंथों को पढ़े /सुने ही)  ऐसे  ग्रन्थ स्व-प्रकाशित   हैं जिनकी कोई प्रमाणिकता नहीं  होती। प्रामाणिक ग्रंथों में अब ISBN /NSBN  अंकित  होता है। इनके घटिया स्तर के साहित्य से  केवल  आश्रम का ही   महिमा मण्डन  होता है आध्यात्मिक ज्ञान का नहीं। 

प्रशासन की  अनदेखी
ऐसे आश्रमों में   क्या अनैतिक  शिक्षा/कार्य  होते है  प्रशासन  को तब तक  भनक नहीं   लगती जब तक पीड़ित व्यक्ति  न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाता। 

वर्ष 2017  के  कलंकित  बाबा 
  1. गुरमीत राम रहीम [d] 
  2. फलाहारी बाबा [b]
  3. सच्चिदानंद[c] 
  4. सुन्दर दास [e]
  5.  शांति सागर [3]
  6. वीरेंद्र देव दीक्षित [2]
                                                                         
                                                          वीरेंद्र देव दीक्षित 

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय  विजय विहार नई दिल्ली 
यह आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पिछले २५ वर्षों से रोहणी इलाके में चल रहा है। इसके प्रमुख वीरेंद्र देव दीक्षित  (70 वर्ष )हैं। वीरेंद्र देव  दीक्षित अपने को भगवान शिव का अवतार कहते हैं ,जिस प्रकार भगवान् शिव के लिंग की पूजा की जाती है उसी प्रकार  अपने लिंग की पूजा करने को कहते हैं।[3]  कभी बाबा अपने की श्री  कृष्ण जी से तुलना करते और  युवतियों से  कहते कि  हमें 16,000  रानियों की इच्छा है।[4]  बाबा के खिलाफ सी बी आई ने तीन केश दर्ज किये। [5]

अभिमत 

  1. समय -समय पर आध्यात्मिक केन्द्रो की गोपनीय तरीके से जांच और विधिवत  निरीक्षण होना चाहिए। इससे  अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। 
  2. यदि  आश्रम के नाम में विश्वविद्यालय जुड़ा हो तो उसका निरीक्षण /पर्यवेक्षण  यू  जी सी  द्वारा भी किया जाय। 
  3. अनैतिक गतिविधियों वाले आश्रमों को तत्काल बंद किया जाना चाहिए। 
  4. ऐसे धार्मिक ग्रन्थ जिनके द्वारा केवल  आश्रम का महिमा मंडान होता हो उन्हें जब्त कर लिया जाना चाहिए। 

रविवार, 17 दिसंबर 2017

अगड़े और पिछड़ों के बीच पिसते गरीब

Asharfi Lal Mishra










                     आज देश में गर्रीबों के हित में  खुलकर कोई भी राजनीतिक दल खड़ा होने को तैयार नहीं है। इसका मुख्य कारण है कि  देश में अगड़ों और पिछड़ों वर्गों के बीच एक सीमा रेखा खींच दी गई है। सभी राजनीतिक दल संविधान /मंडल कमीशन का आश्रय लेकर इस मुद्दे को जीवित रखना चाहते  हैं।  पूर्व प्रधान मंत्री  विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर अगड़े  और   पिछड़ों  के बीच जो  खाई  पैदा कर समाज का बंटवारा  कर  दिया है। शायद ही  कभी यह   सामाजिक खाई पाटी जा सके।

एस सी /एस टी वर्ग की स्थिति 
                       संविधान में अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्राविधान किया गया था। यह आरक्षण सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े होने की   दृष्टि से किया  गया था। आज  इन जातियों में  अनेक लोग ऐसे हैं जो सामाजिक ,आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से  उन्नत कहे जा सकते हैं  लेकिन  आरक्षण का लाभ छोड़ने को तैयार नहीं। आज एस सी /एस टी  के छत्रपों के लिए आरक्षण  सशक्त राजनीतिक हथियार है। आज एस सी /एस टी  के आरक्षण  का सम्पूर्ण लाभ इस वर्ग के साधन  संपन्न लोगों तक ही सीमित है और केवल इतना ही नहीं इस आरक्षण  लाभ लोग  पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त कर रहे हैं। इस वर्ग के उन्नत लोग कभी  गरीबों के हित में आरक्षण छोड़ने के लिए तैयार नहीं। कभी भी इस वर्ग के छत्रप नेताओं ने एस सी /एस टी  के गरीबों के आरक्षण की बात नहीं की। कभी किसी नेता ने क्रीमी लेयर की भी आवाज नहीं उठाई। आखिर क्यों ?

ओ बी सी वर्ग की स्थिति 
                       पूर्व प्रधान मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर  जो अगड़े और पिछड़ों के बीच  समाज का बंटवारा कर दिया हैं  उसकी किसी भी  तरह से प्रशंसा नहीं की जा सकती   है।  मंडल कमीशन  की रिपोर्ट लागू होने से पिछड़े वर्गों को २७% आरक्षण का लाभ दिया गया। वर्तमान में क्रीमी लेयर का प्राविधान है लेकिन समय -समय पर क्रीमी लेयर की सीमा में वढोत्तरी भी होती रहती है। इस आरक्षण के लाभार्थी भी पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ उठा रहे है। इस वर्ग में कई ऐसी जातियां हैं जो समुन्नत होकर अगड़ी जातियों से बहुत आगे निकल चुके हैं लेकिन आरक्षण का लाभ किसी रूप में छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इस वर्ग से सम्बंधित राजनेता कभी भी गरीबों (आर्थिक आधार पर आरक्षण ) के आरक्षण  की बात   नहीं करते।

मंडल कमीशन के दुष्परिणाम 
               आज देश में जो  जातीय छत्रप नेताओं और जातीय आन्दोलनों की  बाढ़  दिखाई दे रही है वह  मात्र मंडल कमीशन का एक मात्र   प्रतिफल है।  गुर्जर आंदोलन हो या फिर पाटीदार आंदोलन  ये सभी आंदोलन मंडल कमीशन से प्रेरणा लेने के  साथ -साथ उससे  ऊर्जा भी  प्राप्त करते हैं। ऐसे जातीय आन्दोलनों से  कितनी राष्ट्रीय आर्थिक क्षति होती है इसका मूल्याङ्कन केवल सरकार ही कर सकती है। ऐसे आंदोलनों में  कहीं भी  कहीं भी गरीबों की बात नहीं होती केवल जाति  ही बात शीर्ष पर रहती  है।

वी पी सिंह , चरण सिंह ,जयललिता अदि ऐसे राजनेता थे जो पिछड़े वर्ग  से  न होकर भी पिछड़ों की राजनीति की और उच्च पद पर पहुंचे। इन नेताओं ने भी गरीबों के आरक्षण की बात नहीं की । ओ बी सी वर्ग के जातीय छत्रपों ने भी कभी अपने वर्ग के गरीबों के आरक्षण का मुद्दा नहीं उठाया।

मद्रास हाई कोर्ट का दिशा निर्देश 

मद्रास हाई  कोर्ट अगड़ी जाति के  गरीबों को रोजगार और शिक्षा में आरक्षण  देने  पर  विचार  करने के लिए राज्य सरकार  से  कहा।[1] आखिरकार न्यायालय को  ऐसा आदेश देने की  आवश्यकता क्यों पड़ी। ऐसा आदेश न्यायालय तभी देता है जब किसी के साथ सरकार न्याय संगत निर्णय लेने में उदासीन हो।

गरीबों (आर्थिक रूप से पिछड़े ) के प्रति संवेदन शीलता 

गरीबों के प्रति संवेदनशीलता अर्थात  गरीबों को रोजगार और शिक्षा में आरक्षण देना एक गंभीर राष्ट्रीय मुद्दा है. इस विन्दु पर कोई भी खुलकर बोलने का साहस  भी नहीं जुटा  पा रहा है। यदि  कोई दल /नेता आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण देने का मुद्दा उठाने का  साहस भी करे तो एस सी /एस टी / ओ बी सी  वर्ग के जातीय छत्रप नेता उसके  विरुद्ध लामबद्ध  होकर विरोध करते   हैं।  हमारा कहने का आशय यह है कि  सभी जातीय छत्रप आर्थिक आधार पर आरक्षण के देने के   विरुद्ध हैं।
                                                                         
अमीर -गरीब के बीच बढ़ती खाई की ओर  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद  ने भी चिन्ता जाहिर की है। [2]

अभिमत 

  1. आरक्षण एक सुविधा है न कि इसे पाना एक अधिकार। 
  2. जो लोग शैक्षिक और आर्थिक आधार पर समुन्नत हो चुके हैं उन्हें आरक्षण के लाभ से बंचित किया जाना चाहिए। 
  3. मद्रास हाई कोर्ट के दिशा निर्देश गरीबों को आरक्षण  देने से  सम्बंधित हैं 
  4. गरीब सभी वर्गों/जातियों/धर्मों में हैं अतः आर्थिक आधार  पर आरक्षण करने से राष्ट्रीय आर्थिक असमानता दूर होगी। 

  
  

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निर्विरोध अध्यक्ष : राहुल गाँधी

 Updated on 20/12/2017
Asharfi Lal Mishra









इंडियन नेशनल कांग्रेस को कांग्रेस भी कहते हैं। इसकी स्थापना  अवकाश प्राप्त सिविल सर्विस इंजीनियर  A O Hume द्वारा २८ - ३१ दिसंबर १८८५  तक बम्बई में  चलने वाले प्रथम सत्र में हुई थी। स्वतंत्रता  के बाद वर्ष १९५१ में भारत में प्रथम जनरल इलेक्शन हुआ जिसमें कांग्रेस सबसे अधिक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में उभरा। कांग्रेस ने इस चुनाव में लोकसभा की ४८९ सीटों में ३६४ सीटें  प्राप्त कर  देश की सत्ता  पर कब्ज़ा कर लिया।   कांग्रेस को इस चुनाव में 49.99 % मत प्राप्त हुए।

           पहली लोक सभा से लेकर १६ वीं लोक सभा तक कांग्रेस द्वारा प्राप्त सीटों  एवं प्राप्त मतों का विवरण:
  1.  प्रथम लोक सभा : 364 सीटें  , 44.99 %  मत 
  2. दूसरी लोक सभा : 371    "      ,47.78%     "
  3. तीसरी लोक सभा : 361   "     , 44.72%     "
  4. चौथी लोक सभा : 283     "     ,40.78%      "
  5. 5 वीं लोक सभा : 352      "     , 43.68%      "
  6. 6 वीं लोक सभा : 153       "     ,34.52%       "
  7. 7 वीं लोक सभा : 351       "     ,42.69%       "
  8. 8 वीं लोक सभा : 415       "     ,49.01%       "
  9. 9 वीं लोक सभा :  197       "    ,39.53%        "
  10. 10 वीं  लोक सभा :244       "  ,  35.66%        "
  11. 11 वीं लोक सभा  140        "     ,28.80%       "
  12. 12 वीं लोक सभा  141       "     ,25.82%        "
  13. 13 वीं लोक सभा  114        "     ,28.3%         "
  14. 14 वीं  लोक सभा  145       "     ,26.70%       "
  15. 15 वीं लोक सभा  206        "     ,28.55%       "
  16. 16 वीं लोक सभा   44         "     ,19.30%       "
                  १९९८ में सोनिया गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी। १२ वीं लोक सभा से लेकर १६ वीं लोक सभा का गठन सोनिया गाँधी के अध्यक्ष रहते हुआ लेकिन इस बीच कांग्रेस का जनाधार कम होता चला गया। १६ वीं लोक सभा के चुनाव  में कांग्रेस को मात्र १९. ३ ०% ही मत मिल सके और  मात्र लोक सभा की ४४ सीटों पर संतोष करना पड़ा। अब अगला  लोक सभा का चुनाव २०१९ में होना है। कांग्रेस पार्टी से अब तक ६ प्रधान मंत्रियों  ने सत्ता संभाली है  और कांग्रेस के पूर्व सदस्यों में से ७ प्रधान  मंत्री बने।                                                  
 
                राहुल गाँधी २०१३ में कांग्रेस के उपाध्यक्ष बने। तब से आज तक करीब २७ चुनाओं में  कांग्रेस को पराजय का मुँह  देखना पड़ा।[a]   राहुल गाँधी नेहरू-गाँधी परिवार से  छठवें   कांग्रेस के अध्यक्ष होंगे।

                 वर्तमान में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं। द्वापर युग में जिस प्रकार से धृतराष्ट्र ने   पुत्र मोह में पड़ कर  राष्ट्र की चिंता किये विना दुर्योधन को युवराज घोषित कर सत्ता का उत्तराधिकारी  बना दिया था। ठीक उसी प्रकार सोनिया गाँधी पुत्र मोह में पड़  कर  अपने पुत्र  राहुल गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने का संकल्प ले लिया है। हालाँकि  कांग्रेस पार्टी में कई दिग्गज अनुभवी राजनेता हैं फिर भी राहुल गाँधी के सामने उनका कोई मूल्य नहीं। ४  दिसम्बर २०१७ को  राहुल गाँधी ने   कांग्रेस -अध्यक्ष पद  के लिए नामांकन पत्र जमा   किया। [b] राहुल गाँधी के पक्ष में ८९ नामांकन पत्र  दाखिल किये गए और सभी वैध पाए गए। [c]  ११ दिसंबर २०१७ को कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए। [d] 16 /12/2017 को  राहुल गाँधी ने  कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार  संभाल लिया। [e]
                                                                         

                              राहुल गाँधी ने कांग्रेस अध्यक्ष   का पदभार संभाला      
 राहुल गाँधी  पिछले कई वर्षों से राजनीति  में  सक्रिय हैं  लेकिन अभी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस  में  हिचकिचा जाते हैं या फिर गोल मोल उत्तर दे देते हैं। वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी परिपक्व राजनेता हैं उनकी तुलना में राहुल गाँधी कहीं नहीं ठहरते अर्थात राजनीति  में  मोदी से टक्कर  लेना फिरहाल  दुष्कर दिखाई पड़ता है।

अभिमत 
राहुल गाँधी  अभी  मोदी की तुलना  में कम आत्मविश्वास  वाले राजनेता हैं।
इंडियन नेशनल कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है इसमें ऊर्जा  भरना  और संगठित रखना स्वयं में एक बड़ा कार्य है।






अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...