रविवार, 13 अगस्त 2017

अजेय रानी लक्ष्मीबाई


Asharfi Lal Mishra











                                                                 
                                                             झाँसी  की रानी :लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई  उत्तर भारत स्थित मराठा  शासित राज्य    झाँसी  की रानी और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम १८५७ के अग्रणी क्रांतिकारियों में प्रमुख थीं। आज भारत के जन-जन में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम आदर के साथ लिया जाता है।
 नाम :मणिकर्णिका ताम्बे 
उपनाम :मनु 
जन्म :१९ नवम्बर १८३५ , वाराणसी [1]
मृत्यु :१८ जून १८५८ , कोटा की सराय ,ग्वालियर 
पिता  का नाम :मोरोपंत ताम्बे 
माता का नाम :भागीरथी सप्रे 
जाति : हिन्दू , ब्राह्मण (मराठी )
 पति :राजा गंगाधर राव नेवालकर (१८४२ --२१ नवम्बर १८५३ )
विवाह के उपरान्त नाम : रानी लक्ष्मीबाई
पुत्र :दामोदर राव 
संक्षिप्त परिचय :
मणिकर्णिका  का जन्म १९ नवम्बर  १८२८ को वाराणसी जिले के भदैनी नामक  नगर में मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे और माता का नाम भागीरथी सप्रे था। उनके पिता सतारा महाराष्ट्र से आकर वाराणसी में आकर रहने लगे थे। मणिकर्णिका का उपनाम मनु था। माता भागीरथी एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार बिठूर जिला (कानपुर )में ले गये जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे।मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ तलवार आदि शस्त्र एवं घुड़सवारी  की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में १४ वर्ष की आयु में  उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया।उसका नाम दामोदर राव रखा।  परन्तु चार महीने की आयु में ही दामोदर राव की  मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी।गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के पुत्र आनंद राव को गोद  लिया। बाद में दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।  पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने दत्तक पुत्र दामोदर राव को मान्यता नहीं दी। 
१८५७ का विद्रोह :
१८५७ के प्रारम्भ में एक अफवाह उठी कि सेना को दिए गए कारतूसों  में गाय की चर्वी स्तेमाल की जाती है। १० मई १८५७ को मेरठ में विद्रोह की चिनगारी फूट  पड़ी। जब यह खबर झाँसी पहुँची। रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश राजनीतिक अधिकारी Captain Alexander Skene, से अनुमति चाही कि अपनी रक्षा के लिए सेना को सावधान कर दिया जाय। इसके लिए Skene ने अनुमति दे दी। उस समय झाँसी नगर में शांति का माहौल था। रानी लक्ष्मीबाई ने गर्मी के इस अवसर पर हल्दी कुमकुम के उत्सव का आयोजन किया। इस उत्सव में रानी ने सभी महिलाओं से कहा कि अंग्रेज डरपोक है उनसे किसी प्रकार से नहीं डरना चाहिए। इसके बाद लक्ष्मीबाई ने जून १८५७ में  ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध झाँसी में विद्रोह कर दिया। 
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया। यहाँ  हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।              
                                                                                

                                              रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव के साथ 
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रिटिश  सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो सप्ताह  की लड़ाई के बाद ब्रिटिश  सेना ने शहर पर अधिकार  कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर अधिकार कर लिया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थी।
       कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने कविता के माध्यम से रानी
 लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी लिखी है जिसकी कुछ पंक्तियाँ:
                      बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी ,
                      खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।


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