शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

राजनीतिक शुचिता के अभाव में बढ़ रहा भ्रष्टाचार

  Blogger: Asharfi Lal MIishra

Asharfi Lal Mishra










           आज भारत की गणना विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में की जाती है। लोकतंत्र की सफलता देश  के राजनेताओं  की आर्थिक ,सामाजिक आदि की शुचिता पर निर्भर करती है।
             
             लोकतंत्र में शासन की बागडोर  जनता द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों के हाथों  होती है। अतः यह भी आवश्यक है कि ये जन प्रतिनिधि उत्तम चरित्र के हों और  जिन पर  जनता किसी प्रकार के आपराधिक चरित्र की ओर  अंगुली उठा न सके। जनता अपने राजनेताओं का अनुकरण भी करती है। इसीलिए कहा भी गया है कि  " जैसे राजा वैसी प्रजा " 
                 क्या भ्रष्ट राजनेता नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर कर सकता है ?  
                                                                       

                                             
       आज हर राजनीतिक दल में  आपराधिक  रिकॉर्ड वाले  व्यक्ति  या तो जन प्रतिनिधि हैं  या फिर  दल में पदाधिकारी।  कोर्ट से ऐसे जन प्रतिनिधियों के विरुद्ध  निर्णय आने में इतना विलम्ब हो जाता है कि  निर्णय का प्रभाव भी  इन्हें चुनाव से वंचित नहीं करता।  सुप्रीम  कोर्ट ने   भी  जन प्रतिनिधियों के लम्बित मुक़दमों  की   शीघ्र  सुनवाई के लिए  विशेष अदालतें गठित  करने  के केंद्र सरकार को निर्देशित किया। परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार ने  जन  प्रतिनिधयों से  सम्बंधित  वादों   को  निपटाने के लिए १२ अदालतों का गठन किया है  जो वादों को देखते हुए अदालतों की संख्या कम है।[1] आज भी सांसदों और विधायकों के विरुद्ध 1097 आपराधिक मुक़दमे विभिन्न अदालतों में लम्बित हैं जो चिंताजनक हैं 1(a)

     
             राजनीतिक शुचिता बनाये रखने के उद्देश्य से सांसदों ,विधायकों एवं विधान परिषद् सदस्यों  के उम्मीदवारों के लिए अपनी ,पत्नी और बच्चो की आय का विवरण देने का विधान है लेकिन आय के स्रोत का उल्लेख  करने का नियम नहीं था। दिनांक  १६ फरवरी  २०१८  को भारत के सुप्रीम कोर्ट  ने  चुनाव   में खड़े होने वाले सभी उम्मीदवारों को अपनी एवं अपने परिवार के सदस्यों की आय का स्रोत बताना अनिवार्य कर दिया। [2]
            महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक  राजनेताओं में  शुचिता  का भाव उत्पन्न नहीं होगा तब तक विभिन्न संस्थाओं और  नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करना असंभव है। राजनीतिक भ्रष्टाचार तो   टिकट  वितरण से  ही  प्रारम्भ  हो  जाता है। उम्मीदवार की आर्थिक सम्पन्नता  प्रथम श्रेणी की योग्यता आंकी जाती है और इसी योग्यता को प्राप्त करने के लिए उम्मीदवार धनार्जन के अवांछित रास्ते अपनाता है।

                  आज राजनीति धन बल के आधीन है। धन बल का सहारा लेकर कोई भी व्यक्ति  विना  सामाजिक कार्य के अनुभव के  संसद या विधान सभा में पहुँच  सकता है।

सांसदों और विधयकों के विरुद्ध  लम्बित मुकदमे 

* सांसदों और विधायकों की संख्या : 1765, कुल मुक़दमे - 3045 [2a]

राज्यवार मुकदमों की स्थिति 
      (वरीयता क्रम में )

  1. उत्तर प्रदेश  :  सांसद + विधायक =248 , लंबित मुकदमे =539 [2b]
  2. तमिलनाडु 
  3. बिहार 
  4. पश्चिम बंगाल 
  5. आंध्र प्रदेश  
  6. अन्य 



भ्रष्टाचार में जेल में निरुद्ध  किये गए राजनेता 

  1. ओम प्रकाश चौटाला 
  2. शशिकला 
  3. लालू प्रसाद यादव [2c]

विश्व  में भ्रष्टाचार की सूची में भारत 
                  ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार  भारत में  60 %  क्षेत्र भ्रष्टाचार  से ग्रसित है। मीडिया की स्थित सबसे अधिक दयनीय। [3]

सांसदों और विधायकों के विरुद्ध लंबित मुकदमे 


     अभिमत 
* राजनीतिक शुचिता के अभाव में  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना  कठिन।           

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