Asharfi Lal Mishra |
दलित शब्द से हमारा तात्पर्य है कि जो व्यक्ति समाज में शोषित हो , दबा हो ,कुचला हो , जिसको समाज में बराबरी के जीने का अधिकार न हो और जिसे अपनी योग्यता के अनुसार स्थान पाने का अधिकार न हो , वही दलित है।
दलित शब्द एक राजनीतिक विचारधारा है जाति नहीं।
देश में जब राजतन्त्र /मुस्लिम शासन /ब्रिटिश शासन था तब व्यवसाय के वर्गीकरण के आधार पर जातियाँ थीं लेकिन दलित शब्द किसी के लिए स्तेमाल नहीं होता था। कुछ लोग अस्वच्छ पेशे में थे और स्वच्छता का अभाव था इसलिए उन्हें अस्पृश्य कहा जाने लगा।
योग्यता का समाज में सदैव आदर हुआ है जाति का नहीं। संत रविदास (रैदास) पेशे से चर्मकार थे लेकिन अपनी योग्यता (कर्म निष्ठा और ज्ञान )के बल पर सम्पूर्ण भारत में आदरणीय थे और आज भी आदरणीय हैं।
संत कबीर पेशे से वस्त्र बुनकर थे लेकिन अपनी योग्यता (साक्ष्य ,आध्यात्मिक ज्ञान ) के बल पर सम्पूर्ण समाज में आदरणीय थे और आज भी हैं और कबीर के न चाहते हुए भी असंख्य प्रशंसक और अनुगामी बने।
भीमराव राम जी आम्बेकर के पिता सेना में अधिकारी थे और स्वयं बी आर आम्बेडकर ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय ,संयुक्त राज्य अमेरिका से पी एच डी की उपाधि प्राप्त की थी। ये स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री और भारतीय संविधान निर्माण की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। इन्होंने अपनी योग्यता के बल पर स्वतंत्र भारत में सम्मान पाया।
क्या आप कबीर , रविदास और बी आर आम्बेकर को दलित कहेंगे? हमारे विचार से ये तीनों ही व्यक्ति संत कबीर , संत रविदास और डॉ आम्बेकर दलित नहीं थे। कबीर ने लैकिक और आध्यात्मिक ज्ञान को अपनी काव्य शैली से लोगों को मन्त्र मुग्ध कर दिया जिससे वे समाज में आदरणीय थे और आज भी हैं। संत रविदास ने अपने ज्ञान रुपी अमृत वर्षा से सम्पूर्ण भारत में आदर पाया वहीँ डॉ आम्बेडकर ने सामाजिक,शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों को भारतीय संविधान में सूचिबद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इन्हीं जातियों को ही अनुसूचित जाति कहा गया।
आज राजनीति में दलित शब्द एक राजनीतिक मिसाइल के तौर स्तेमाल किया जाता है इसे हर कीमत पर बन्द किया जाना चाहिए।
अगर पेशे से जाति का सम्बन्ध है और जाति का दलित से , तो क्या सम्पूर्ण सफाई कर्मचारी पेशे के अनुसार अनुसूचित जाति में गिने जायेंगे।
आज उत्तर प्रदेश में प्रत्येक गांव में प्रत्येक जाति के सफाई कर्मचारी है। हम उन राजनेताओं से पूँछना चाहते हैं जो अपनी राजनीति चमकाने के लिए या वर्ग विशेष के मसीहा बनाने का झंडा ऊँचा करते है तो क्या इन सम्पूर्ण सफाई कर्मचारियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाएंगे?
आज भारत लोकतान्त्रिक गणतंत्र राष्ट्र है। यहाँ सभी को सामान अधिकार प्राप्त हैं किसी के साथ कोई भेद भाव नहीं। समाज में न कोई शासक है न कोई शोषित और न कोई दलित। प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता के बल पर पद को प्राप्त करने में स्वतंत्र है।
स्वतंत्र भारत में अपनी योग्यता के बल पर मायावती उत्तर प्रदेश की तीन बार मुख्य मंत्री , के आर नारायणन और रामनाथ कोविंद भारत के राष्ट्रपति तथा मीरा कुमार लोकसभा की स्पीकर बनीं। क्या ये सभी दलित हैं ? नहीं ये सभी अपनी योग्यता एवं क्षमता के आधार पर पदासीन हुए।
हमारा अभिमत है की राजनेताओं को अपने भाषण में /लेखनी से वर्ग विशेष की भावनाओं को उद्वेलित करने के लिए दलित शब्द का स्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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