**अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर**
Asharfi Lal Mishra |
Stadium of IISER Mohali
आज शिक्षा जगत में संयुक्त राज्य अमेरिका का दबदबा कायम है। विश्व के शीर्षस्थ 500 विश्वविद्यालयों में हारवर्ड विश्वविद्यालय का प्रथम स्थान होने के साथ साथ प्रथम चार स्थानों पर यू एस ए का ही कब्ज़ा है। शीर्षस्थ 100 विश्वविद्यालयों में 50 संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं। विश्व में प्रथम 500 की सूची में 150 केवल यू एस ए में स्थित है।
एशिया में विश्व के प्रथम 100 विश्वविद्यालयों में चीन और जापान ने दो -दो और हांगकांग ने एक विश्वविद्यालय ने अपना स्थान बनाया।
विश्व में प्रथम 300 की सूची में एशिया की स्थिति ;[1]
*चीन -10
*जापान -10
*हांगकांग -5
* साउथ कोरिया-4
*इजराइल -4
*ताइवान -2
*टर्की -2
* सिंगापुर -1
विश्व के प्रथम ५०० विश्वविद्यालयों में एशिया की स्थिति :[2]
*चीन -27
*जापान -15
* साउथ कोरिया -9
*टर्की -6
*हांगकांग -5
*इजराइल -5
*ताइवान -५
*भारत -4
*ईरान -3
*सिंगापुर -1 (रैंक-125 )
*मलेशिया -1 (रैंक -423 )
*थाईलैंड -1 (रैंक -453 )
*सऊदी अरब -1 (रैंक -473 )
*पाकिस्तान -1 (रैंक -496 )
विश्व के प्रथम 500 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत :[3]
Main building of IISc Bangalore
*इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISc)(रैंक -323)
*आई आई टी बम्बई (रैंक -405 )
*आई आई टी खड़गपुर (रैंक -484)
उक्त सूची को देखने से पता लगता है कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें दोनों ही जिम्मेदार हैं क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है। शिक्षा की यह दुर्गति एक दो साल में नहीं हुयी इसके लिए विगत सरकारें अपने उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकती।
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् देश में विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। ये संस्थाएं सरकारी,प्राइवेट ,सहायता प्राप्त एवं वित्त विहीन , स्ववित्त पोषित क्षेत्र में खोली गईं। छात्रों का नामांकन बढ़ा। यही नहीं गैरमान्यता प्राप्त संस्थाओं की एक लम्बी श्रंखला मौजूद है।
उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले माध्यमिक विद्यालय हैं और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्राथमिक विद्यालय हैं।
प्राथमिक शिक्षा में जहाँ विद्यालय शासकीय /परिषदीय/सहायता प्राप्त विद्यालय संचालित हैं वहीं पब्लिक स्कूल भी संचालित हैं इनके अतिरिक्त मान्यता प्राप्त /गैरमान्यता प्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं।
इन सभी विद्यालयों में निरीक्षण व्यवस्था बहुत लचर है। पब्लिक स्कूलों ,मान्यता प्राप्त विद्यालयों में योग्य शिक्षकों का अभाव है। शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों में पर्याप्त भ्रष्टाचार है। शैक्षिक गुणवत्ता के निरीक्षण में विभागीय अधिकारी अनदेखी करते है और यदि कहीं निरीक्षण किया भी तो उसका शमन का रास्ता भी उपलब्ध रहता है। हमारा कहने आशय यह है कि जब तक निरीक्षण प्रणाली दुरुस्त नहीं होगी तब तक प्राथमिक शिक्षा लंगड़ी ही रहेगी।
माध्यमिक शिक्षा में शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक स्कूल /मान्यता प्राप्त विद्यालय के अतिरिक्त गैर मान्याप्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं। शासकीय (केंद्र /राज्य )/परिषदीय। सहायता प्राप्त विद्यालय जहाँ शिक्षकों की कमी का सामना कर रहे हैं वहीं मान्यता प्राप्त विद्यालयों में अधिकांश विद्यालय केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं,इन विद्यालयों में न छात्र हैं और न ही शिक्षक। इन विद्यालयों का न कभी भौतिक सत्यापन होता है और न ही किसी प्रकार निरीक्षण। जिला शिक्षा अधिकारी भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते। शासकीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक विद्यालयों का निरीक्षण नगण्य रहता है इसलिए इन विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित रहती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आवादी वाले राज्य में माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्याप्राप्त विद्यालयों का बाहुल्य है और इनके बाद सहायता प्राप्त विद्यालयों का स्थान है। इनमें से अधिकांश मान्यता प्राप्त विद्यालय बोर्ड की परीक्षाओं में नकल का बंदोवस्त करते हैं। माध्यमिक शिक्षा में जब तक योग्य शिक्षक नहीं होंगे और नक़ल पर अंकुश नहीं होगा एवं भौतिक सत्यापन के साथ निरीक्षण नहीं होगा तब तक माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना कठिन है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शासकीय /सहायता प्राप्त /स्व-वित्त पोषित महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें स्व -वित्त पोषित महाविद्यालयों की हालत विशेष चिंता जनक है। इनमें अधिकांश छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं। । यदि कहीं कक्षायें भी लगती हैं तो वहां अयोग्य शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य कराया जाता है। इन महाविद्यालयों में पहले योग्य शिक्षकों का अनुमोदन लिया जाता है और उनके स्थान पर कम पैसों पर अयोग्य शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराया जाता है। [4] इन वित्त विहीन कॉलेजों में भी विश्व विद्यालय की परीक्षाओं में नकल का बोलबाला रहता है। महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन किये विना शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना दिवा स्वप्न ही रहेगा। शिक्षा में गुणवत्ता के लिए स्वकेंद्र की व्यवस्था समाप्त की जानी चाहिए।
शैक्षिक संस्थान राजनीति के केंद्र बिंदु नहीं होने चाहिए। छात्रों को अपनी समस्याओं के निमित्त धरना -प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य तरीके अपनाना चाहिए। [5]
शिक्षा की दुगति के लिए राज नेता भी जिम्मेदार रहे है। उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह ने नकल रोकने के लिए नकल अध्यादेश लागू किया तो मुलायम सिंह ने इस अध्यादेश को राजनीतिक हथियार के रूप में स्तेमाल करने में नहीं चूके। कल्याण सिंह की सरकार के पतन के पश्चात् हुए चुनाव में मुलायम सिंह ने छात्रों को स्वकेंद्र करने और नकल अध्यादेश हटाने का आश्वासन देकर सत्ता हासिल करने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि छात्रों का रुझान पुस्तकों ,कक्षाओं से हट कर नकल पर केंद्रित हो गया। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो गई।
शैक्षिक गुणवत्ता को स्थापित करना एक जोखिम पूर्ण कार्य
* राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता
*शैक्षिक गुणवत्ता के लिए विद्यालयों ,महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन आवश्यक
* नकल रोकने के प्रयासों की राजनीतिक विरोध होने की संभावना
अभिमत
* देश के सभी प्राथमिक ,माध्यमिक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सामान पाठ्यक्रम लागू किया जाय।
*सभी जगह योग्य शिक्षक हों और छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन भी किया जाय।
* मान्यता रहित विद्यालयों और फर्जी विश्वविद्यालयों पर लगाम लगाई जाय।
* निरीक्षण प्रणाली चुस्त दुरुस्त की जाय।
विद्यालयों ,महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों एवं छात्रों की संख्या को दृष्टिगत रख कर यदि शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार हो जाय तो निश्चित ही भारत शिक्षा का हब बन सकता है।
नौ मंजिला हॉस्टल -IISER-Pune
शिक्षा में सुधार के लिए किये गए प्रयास
* शिक्षा में उच्च स्थान पाने वाले 20 विश्वविद्यालयों को पहली बार प्रोत्साहन हेतु प्रधान मंत्री मोदी ने 10 हजार करोड़ रुपयों का प्राविधान किया। [6]
* अप्रैल 01,2018 से उत्तर प्रदेश की शिक्षा में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में एकरूपता के निमित्त सभी प्रकार की संस्थाओं में CBSE के पाठ्यक्रम को लागू करना।
* उच्च शिक्षा में पलायन रोकने हेतु देश के उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे IIT`S ,IISER ,NIT`S आदि में 70,000 -80,000 रुपये मासिक छत्रिवृत्ति एवं रुपये 2,00,000 वार्षिक रिसर्च ग्रांट का प्राविधान [7]
*उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से यूं पी बोर्ड की परीक्षा वर्ष 2018 में नकल रोकने का सफल प्रयास
उक्त सूची को देखने से पता लगता है कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इसके लिए केंद्र और राज्य की सरकारें दोनों ही जिम्मेदार हैं क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची में है। शिक्षा की यह दुर्गति एक दो साल में नहीं हुयी इसके लिए विगत सरकारें अपने उत्तरदायित्व से मुकर नहीं सकती।
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् देश में विद्यालयों ,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। ये संस्थाएं सरकारी,प्राइवेट ,सहायता प्राप्त एवं वित्त विहीन , स्ववित्त पोषित क्षेत्र में खोली गईं। छात्रों का नामांकन बढ़ा। यही नहीं गैरमान्यता प्राप्त संस्थाओं की एक लम्बी श्रंखला मौजूद है।
उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले माध्यमिक विद्यालय हैं और माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्राथमिक विद्यालय हैं।
प्राथमिक शिक्षा में जहाँ विद्यालय शासकीय /परिषदीय/सहायता प्राप्त विद्यालय संचालित हैं वहीं पब्लिक स्कूल भी संचालित हैं इनके अतिरिक्त मान्यता प्राप्त /गैरमान्यता प्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं।
इन सभी विद्यालयों में निरीक्षण व्यवस्था बहुत लचर है। पब्लिक स्कूलों ,मान्यता प्राप्त विद्यालयों में योग्य शिक्षकों का अभाव है। शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्तियों में पर्याप्त भ्रष्टाचार है। शैक्षिक गुणवत्ता के निरीक्षण में विभागीय अधिकारी अनदेखी करते है और यदि कहीं निरीक्षण किया भी तो उसका शमन का रास्ता भी उपलब्ध रहता है। हमारा कहने आशय यह है कि जब तक निरीक्षण प्रणाली दुरुस्त नहीं होगी तब तक प्राथमिक शिक्षा लंगड़ी ही रहेगी।
माध्यमिक शिक्षा में शासकीय /परिषदीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक स्कूल /मान्यता प्राप्त विद्यालय के अतिरिक्त गैर मान्याप्राप्त विद्यालय भी संचालित हैं। शासकीय (केंद्र /राज्य )/परिषदीय। सहायता प्राप्त विद्यालय जहाँ शिक्षकों की कमी का सामना कर रहे हैं वहीं मान्यता प्राप्त विद्यालयों में अधिकांश विद्यालय केवल छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं,इन विद्यालयों में न छात्र हैं और न ही शिक्षक। इन विद्यालयों का न कभी भौतिक सत्यापन होता है और न ही किसी प्रकार निरीक्षण। जिला शिक्षा अधिकारी भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देते। शासकीय /सहायता प्राप्त /पब्लिक विद्यालयों का निरीक्षण नगण्य रहता है इसलिए इन विद्यालयों में शैक्षिक गुणवत्ता प्रभावित रहती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आवादी वाले राज्य में माध्यमिक शिक्षा परिषद से मान्याप्राप्त विद्यालयों का बाहुल्य है और इनके बाद सहायता प्राप्त विद्यालयों का स्थान है। इनमें से अधिकांश मान्यता प्राप्त विद्यालय बोर्ड की परीक्षाओं में नकल का बंदोवस्त करते हैं। माध्यमिक शिक्षा में जब तक योग्य शिक्षक नहीं होंगे और नक़ल पर अंकुश नहीं होगा एवं भौतिक सत्यापन के साथ निरीक्षण नहीं होगा तब तक माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना कठिन है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शासकीय /सहायता प्राप्त /स्व-वित्त पोषित महाविद्यालय संचालित हैं। इनमें स्व -वित्त पोषित महाविद्यालयों की हालत विशेष चिंता जनक है। इनमें अधिकांश छात्र पंजीकरण के केंद्र हैं। । यदि कहीं कक्षायें भी लगती हैं तो वहां अयोग्य शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य कराया जाता है। इन महाविद्यालयों में पहले योग्य शिक्षकों का अनुमोदन लिया जाता है और उनके स्थान पर कम पैसों पर अयोग्य शिक्षकों से शिक्षण कार्य कराया जाता है। [4] इन वित्त विहीन कॉलेजों में भी विश्व विद्यालय की परीक्षाओं में नकल का बोलबाला रहता है। महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन किये विना शिक्षा में गुणवत्ता की कल्पना करना दिवा स्वप्न ही रहेगा। शिक्षा में गुणवत्ता के लिए स्वकेंद्र की व्यवस्था समाप्त की जानी चाहिए।
शैक्षिक संस्थान राजनीति के केंद्र बिंदु नहीं होने चाहिए। छात्रों को अपनी समस्याओं के निमित्त धरना -प्रदर्शन के अतिरिक्त अन्य तरीके अपनाना चाहिए। [5]
शिक्षा की दुगति के लिए राज नेता भी जिम्मेदार रहे है। उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह ने नकल रोकने के लिए नकल अध्यादेश लागू किया तो मुलायम सिंह ने इस अध्यादेश को राजनीतिक हथियार के रूप में स्तेमाल करने में नहीं चूके। कल्याण सिंह की सरकार के पतन के पश्चात् हुए चुनाव में मुलायम सिंह ने छात्रों को स्वकेंद्र करने और नकल अध्यादेश हटाने का आश्वासन देकर सत्ता हासिल करने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि छात्रों का रुझान पुस्तकों ,कक्षाओं से हट कर नकल पर केंद्रित हो गया। इस प्रकार उत्तर प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो गई।
शैक्षिक गुणवत्ता को स्थापित करना एक जोखिम पूर्ण कार्य
* राजनीतिक दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता
*शैक्षिक गुणवत्ता के लिए विद्यालयों ,महाविद्यालयों का भौतिक सत्यापन आवश्यक
* नकल रोकने के प्रयासों की राजनीतिक विरोध होने की संभावना
अभिमत
* देश के सभी प्राथमिक ,माध्यमिक विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सामान पाठ्यक्रम लागू किया जाय।
*सभी जगह योग्य शिक्षक हों और छात्रों और शिक्षकों का भौतिक सत्यापन भी किया जाय।
* मान्यता रहित विद्यालयों और फर्जी विश्वविद्यालयों पर लगाम लगाई जाय।
* निरीक्षण प्रणाली चुस्त दुरुस्त की जाय।
विद्यालयों ,महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों एवं छात्रों की संख्या को दृष्टिगत रख कर यदि शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार हो जाय तो निश्चित ही भारत शिक्षा का हब बन सकता है।
नौ मंजिला हॉस्टल -IISER-Pune
शिक्षा में सुधार के लिए किये गए प्रयास
* शिक्षा में उच्च स्थान पाने वाले 20 विश्वविद्यालयों को पहली बार प्रोत्साहन हेतु प्रधान मंत्री मोदी ने 10 हजार करोड़ रुपयों का प्राविधान किया। [6]
* अप्रैल 01,2018 से उत्तर प्रदेश की शिक्षा में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में एकरूपता के निमित्त सभी प्रकार की संस्थाओं में CBSE के पाठ्यक्रम को लागू करना।
* उच्च शिक्षा में पलायन रोकने हेतु देश के उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे IIT`S ,IISER ,NIT`S आदि में 70,000 -80,000 रुपये मासिक छत्रिवृत्ति एवं रुपये 2,00,000 वार्षिक रिसर्च ग्रांट का प्राविधान [7]
*उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से यूं पी बोर्ड की परीक्षा वर्ष 2018 में नकल रोकने का सफल प्रयास
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