Asharfi Lal Mishra |
माह अक्टूबर वर्ष १९५५ की बात है क़ि एक व्यक्ति जिसकी उम्र करीब -करीब ५० वर्ष , कद लगभग ६ फुट ऊँचा ,इकहरा बदन , सांवला रंग, सिर पर गाँधी टोपी , तन पर कुर्ता धारण किए हुए ,पैरों में नागरा जूते (चमड़े के ) पहने हुए अचानक दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। मैं बाहर दरवाजे की फर्श पर खेल रहा था.
उस व्यक्ति ने हमसे पूंछा : क्या प्रधान जी घर पर हैं ?
हम ने किसी भी प्रकार का उत्तर दिए बिना ही दौड़कर घर के अन्दर गया और पिता जी से कहा : भइया ( पिता जी ) बाहर कोई आपको पूंछ रहा है।
पिता जी बाहर आये तो उस व्यक्ति ने देखते ही कहा : पण्डित जी पाँय लागूं !
पिता जी ने कहा : मुंशी जी कल्याण हो।
दरवाजे पर कोई चारपाई न होने पर पडोसी के दरवाजे पर पड़ी चारपाई पर बैठने का आग्रह किया और दोनों व्यक्ति एक ही चारपाई पर बैठ गए। सिराहने की ओर पिता जी और पैताने की ओर मुंशी जी।
उनके आपस के अभिवादन से ऐसा प्रतीत हुआ कि मुंशी जी और पिता जी एक दूसरे से परिचित थे। हम वहीँ पास में खड़े रहे।
कुछ छड़ों बाद पिता जी ने मुझसे कहा कि : जलपान ले आओ।
मैं दौड़कर एक कटोरी में गुड़ और एक लोटे में जल लेकर आ गया। हमने देखा कि मुंशी जी ने केवल जल ही ग्रहण किया। इस बीच मुंशी जी ने स्पष्ट किया की हमें कफ की शिकायत रहती है इसलिए गुड़ नहीं खाया।
मुंशी जी ने बात को आगे बढाते हुये पिता जी से पूँछा : पण्डित जी आप के कितने बच्चे हैं ?
पिता जी ने उत्तर दिया : तीन बच्चे।
मुंशी जी पूँछा : वे क्या करते हैं ?
पिता जी का उत्तर था :बड़े बेटे ने इसी वर्ष हाई स्कूल किया है ,दूसरा बेटा हमारी ओर संकेत करते हुए कहा : सामने खड़ा हुआ है , इसने पढ़ाई छोड़ दी।और तीसरा बेटा अभी छोटा है।
इतना सुनते ही हमने दृढ़ता के साथ तत्काल बिना किसी हिचक के मुंशी जी से कहा :मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी है हमें स्कूल-फीस नहीं मिली।
मुंशी जी ने कहा : हम तुम्हारी स्कूल की फीस माफ़ कर देंगे तब क्या तुम पढ़ने को तैयार हो।
मैंने हाँ कर दी।
हमने पूँछा कहाँ पढ़ने जाना है।
मुंशी जी ने कहा :बहिरी उमरी (कानपुर ,उत्तर प्रदेश )
हम यहाँ बताना चाहते है कि वर्ष १९५४ में हमारे गाँव इंजुआरामपुर (कानपुर ,उत्तर प्रदेश ) के प्राइमरी स्कूल का दर्जा घटाकर लोअर प्राइमरी स्कूल कर दिया गया था। लोअर प्राइमरी स्कूल में कक्षा ३ तक की ही शिक्षा की व्यवस्था थी।
पढाई छोड़ने के बाद मैं एक आवारा किस्म का लड़का हो गया था मैंने सोचा कि शायद पिता जी के सामने मुंशी जी का फीस माफ़ करने का वादा झूँठा हो ,इसीलिये अगले दिन हाथ में अपने बराबर एक डंडा लेकर पूंछते हुए बहिरी उमरी पहुँच गया। गाँव में पहुँचने पर स्कूल का स्थान पूँछा।
निजी भवन जहाँ प्राइमरी स्कूल की नींव पड़ी। यह भवन आज भी मूल रूप में आवासीय है।
[ मुंशी राम सिंह का कोई भी चित्र उपलब्ध नहीं है। उक्त भवन में ही अपने शिष्य राजकुमार सिंह के सानिध्य में रहकर अन्तिम साँस ली। मुंशी राम सिंह अविवाहित थे। यह उत्तर प्रदेश (भारत ) राज्य में स्थित कानपुर जिले के विसोहा ग्राम के मूल निवासी थे। ]
वहाँ पहुँचने देखा कि मुंशी जी एक अनावासीय मकान के सामने एक ब्लैक बोर्ड में बच्चों को गणित पढ़ा रहे थे। इसी बीच हमने साहस बटोर कर अभिवादन करते हुए मुंशी जी से कहा :मुंशी जी हम पढ़ने आ गए और कक्षा ५ में पढ़ेंगे।
मुंशी जी ने कहा : भाग का सवाल आ गया तो कक्षा ५ में नहीं तो कक्षा ४ में।
मुंशी जी ने एक छात्र से पाटी और खड़िया हमें देने के लिए कहा। मुंशी जी ने हमें भाग का सवाल बोला। हमें वह भाग का सवाल नहीं आया।
अब मुंशी जी ने हमें आदेश दिया जाओ कक्षा चार में बैठो। अब मैं कक्षा चार का विद्यार्थी हो गया।
मुंशी जी की शिक्षा की विधि
मुंशी जी कक्षा में पहले सवाल बोर्ड पर समझाते फिर उसी कायदे का अन्य सवाल हल करने के लिए बोलते। सवाल हल हो जाने पर कापी /पाटी जमा करने के लिए कहते। कापी /पाटी जिस क्रम में जमा होती उसी क्रम में जांची भी जातीं। सबसे पहले जिसका सावल सही निकलता मुंशी जी उसे कक्षा में पुरस्कत भी करते थे। बस यहीं से हमारी पढाई में गति आ गई।
अनुपस्थित छात्रों के प्रति कर्तव्य
कक्षा में यदि कोई छात्र अनुपस्थित हो जाय तो उसी समय मुंशी जी कक्षा के दो छात्र अनुपस्थित छात्र को उसके घर से बुलाने के लिए भेज देते। यदि छात्र बुलाने से नहीं आता तो अगले दिन मुंशी जी स्वयं सूर्योदय होते ही उस छात्र के दरवाजे पर नजर आते। मुंशी जी अभिभावक को बुलाकर पूँछते कि आप का बेटा कल पढ़ने क्यों नहीं गया ? छात्र को बुलाते और उससे कहते बस्ता लेकर स्कूल चलो।
छात्रों के प्रति निष्पक्ष
मुंशी जी का सभी छात्रों के प्रति निष्पक्ष व्यवहार था। भूखे होने पर कुछ खाने की व्यवस्था भी करते थे। मुंशी जी को किसी भी छात्र की अनुपस्थिति असह्य थी।
मुंशी जी पारिवारिक जीवन
मुंशी जी अविवाहित थे। मुंशी जी कक्षा ४ एवं ५ छात्रों को पढ़ते थे। कक्षा ४ व ५ के छात्र ही इनके बच्चे थे। यद्यपि मुंशी जी के भाई भी थे लेकिन वहाँ यदा कदा ही जाते थे वर्ष में एक आध बार और केवल एक या दो दिन के लिए। मुंशी जी कहते थे मेरे छात्र ही मेरे बच्चे हैं और उनके बीच रहना हमें अच्छा लगता है। छुट्टियों में भी आधे दिन की पढाई अनिवार्य थी।
हमें स्मरण आता है कि एक बार गर्मियों के अवकाश में केवल एक दिन पढ़ने में गैरहाजिर होने पर मुंशी जी ने मेरी खूब पिटाई की।
विद्यालय का निजी भवन ( वर्तमान में विभाग द्वारा छोड़ा गया )
स्कूल का अपना भवन
वर्ष १९५६ में विद्यालय बस्ती के दक्षिण में स्थित अपने नवीन भवन में पहुँच गया। मुंशी जी इसी विद्यालय में चौबीस घंटे निवास करते और शिक्षण कार्य में तल्लीन रहते।
जाति , धर्म निरपेक्ष व्यक्तित्व
उस व्यक्ति ने हमसे पूंछा : क्या प्रधान जी घर पर हैं ?
हम ने किसी भी प्रकार का उत्तर दिए बिना ही दौड़कर घर के अन्दर गया और पिता जी से कहा : भइया ( पिता जी ) बाहर कोई आपको पूंछ रहा है।
पिता जी बाहर आये तो उस व्यक्ति ने देखते ही कहा : पण्डित जी पाँय लागूं !
पिता जी ने कहा : मुंशी जी कल्याण हो।
दरवाजे पर कोई चारपाई न होने पर पडोसी के दरवाजे पर पड़ी चारपाई पर बैठने का आग्रह किया और दोनों व्यक्ति एक ही चारपाई पर बैठ गए। सिराहने की ओर पिता जी और पैताने की ओर मुंशी जी।
उनके आपस के अभिवादन से ऐसा प्रतीत हुआ कि मुंशी जी और पिता जी एक दूसरे से परिचित थे। हम वहीँ पास में खड़े रहे।
कुछ छड़ों बाद पिता जी ने मुझसे कहा कि : जलपान ले आओ।
मैं दौड़कर एक कटोरी में गुड़ और एक लोटे में जल लेकर आ गया। हमने देखा कि मुंशी जी ने केवल जल ही ग्रहण किया। इस बीच मुंशी जी ने स्पष्ट किया की हमें कफ की शिकायत रहती है इसलिए गुड़ नहीं खाया।
मुंशी जी ने बात को आगे बढाते हुये पिता जी से पूँछा : पण्डित जी आप के कितने बच्चे हैं ?
पिता जी ने उत्तर दिया : तीन बच्चे।
मुंशी जी पूँछा : वे क्या करते हैं ?
पिता जी का उत्तर था :बड़े बेटे ने इसी वर्ष हाई स्कूल किया है ,दूसरा बेटा हमारी ओर संकेत करते हुए कहा : सामने खड़ा हुआ है , इसने पढ़ाई छोड़ दी।और तीसरा बेटा अभी छोटा है।
इतना सुनते ही हमने दृढ़ता के साथ तत्काल बिना किसी हिचक के मुंशी जी से कहा :मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी है हमें स्कूल-फीस नहीं मिली।
मुंशी जी ने कहा : हम तुम्हारी स्कूल की फीस माफ़ कर देंगे तब क्या तुम पढ़ने को तैयार हो।
मैंने हाँ कर दी।
हमने पूँछा कहाँ पढ़ने जाना है।
मुंशी जी ने कहा :बहिरी उमरी (कानपुर ,उत्तर प्रदेश )
हम यहाँ बताना चाहते है कि वर्ष १९५४ में हमारे गाँव इंजुआरामपुर (कानपुर ,उत्तर प्रदेश ) के प्राइमरी स्कूल का दर्जा घटाकर लोअर प्राइमरी स्कूल कर दिया गया था। लोअर प्राइमरी स्कूल में कक्षा ३ तक की ही शिक्षा की व्यवस्था थी।
पढाई छोड़ने के बाद मैं एक आवारा किस्म का लड़का हो गया था मैंने सोचा कि शायद पिता जी के सामने मुंशी जी का फीस माफ़ करने का वादा झूँठा हो ,इसीलिये अगले दिन हाथ में अपने बराबर एक डंडा लेकर पूंछते हुए बहिरी उमरी पहुँच गया। गाँव में पहुँचने पर स्कूल का स्थान पूँछा।
[ मुंशी राम सिंह का कोई भी चित्र उपलब्ध नहीं है। उक्त भवन में ही अपने शिष्य राजकुमार सिंह के सानिध्य में रहकर अन्तिम साँस ली। मुंशी राम सिंह अविवाहित थे। यह उत्तर प्रदेश (भारत ) राज्य में स्थित कानपुर जिले के विसोहा ग्राम के मूल निवासी थे। ]
वहाँ पहुँचने देखा कि मुंशी जी एक अनावासीय मकान के सामने एक ब्लैक बोर्ड में बच्चों को गणित पढ़ा रहे थे। इसी बीच हमने साहस बटोर कर अभिवादन करते हुए मुंशी जी से कहा :मुंशी जी हम पढ़ने आ गए और कक्षा ५ में पढ़ेंगे।
मुंशी जी ने कहा : भाग का सवाल आ गया तो कक्षा ५ में नहीं तो कक्षा ४ में।
मुंशी जी ने एक छात्र से पाटी और खड़िया हमें देने के लिए कहा। मुंशी जी ने हमें भाग का सवाल बोला। हमें वह भाग का सवाल नहीं आया।
अब मुंशी जी ने हमें आदेश दिया जाओ कक्षा चार में बैठो। अब मैं कक्षा चार का विद्यार्थी हो गया।
मुंशी जी की शिक्षा की विधि
मुंशी जी कक्षा में पहले सवाल बोर्ड पर समझाते फिर उसी कायदे का अन्य सवाल हल करने के लिए बोलते। सवाल हल हो जाने पर कापी /पाटी जमा करने के लिए कहते। कापी /पाटी जिस क्रम में जमा होती उसी क्रम में जांची भी जातीं। सबसे पहले जिसका सावल सही निकलता मुंशी जी उसे कक्षा में पुरस्कत भी करते थे। बस यहीं से हमारी पढाई में गति आ गई।
अनुपस्थित छात्रों के प्रति कर्तव्य
कक्षा में यदि कोई छात्र अनुपस्थित हो जाय तो उसी समय मुंशी जी कक्षा के दो छात्र अनुपस्थित छात्र को उसके घर से बुलाने के लिए भेज देते। यदि छात्र बुलाने से नहीं आता तो अगले दिन मुंशी जी स्वयं सूर्योदय होते ही उस छात्र के दरवाजे पर नजर आते। मुंशी जी अभिभावक को बुलाकर पूँछते कि आप का बेटा कल पढ़ने क्यों नहीं गया ? छात्र को बुलाते और उससे कहते बस्ता लेकर स्कूल चलो।
छात्रों के प्रति निष्पक्ष
मुंशी जी का सभी छात्रों के प्रति निष्पक्ष व्यवहार था। भूखे होने पर कुछ खाने की व्यवस्था भी करते थे। मुंशी जी को किसी भी छात्र की अनुपस्थिति असह्य थी।
मुंशी जी पारिवारिक जीवन
मुंशी जी अविवाहित थे। मुंशी जी कक्षा ४ एवं ५ छात्रों को पढ़ते थे। कक्षा ४ व ५ के छात्र ही इनके बच्चे थे। यद्यपि मुंशी जी के भाई भी थे लेकिन वहाँ यदा कदा ही जाते थे वर्ष में एक आध बार और केवल एक या दो दिन के लिए। मुंशी जी कहते थे मेरे छात्र ही मेरे बच्चे हैं और उनके बीच रहना हमें अच्छा लगता है। छुट्टियों में भी आधे दिन की पढाई अनिवार्य थी।
हमें स्मरण आता है कि एक बार गर्मियों के अवकाश में केवल एक दिन पढ़ने में गैरहाजिर होने पर मुंशी जी ने मेरी खूब पिटाई की।
विद्यालय का निजी भवन ( वर्तमान में विभाग द्वारा छोड़ा गया )
स्कूल का अपना भवन
वर्ष १९५६ में विद्यालय बस्ती के दक्षिण में स्थित अपने नवीन भवन में पहुँच गया। मुंशी जी इसी विद्यालय में चौबीस घंटे निवास करते और शिक्षण कार्य में तल्लीन रहते।
जाति , धर्म निरपेक्ष व्यक्तित्व
मुंशी जी अपने छात्रों में किसी प्रकार का जातिगत या धार्मिक भेद भाव नहीं रखते थे। कक्षा में सबके साथ समान व्यवहार करते थे हालांकि कुछ बालक व बालिकाएं जातिगत छूट चाहते थे लेकिन किसी के साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया।
मुंशी जी का आशीर्वाद
मुंशी जी की कृपा एवं आशीर्वाद से मुझे अपने गाँव में प्रथम परास्नातक उपाधि प्राप्त होने का गौरव प्राप्त हुआ।
मुंशी राम सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मुंशी जी की कर्तव्य भावना का स्मरण करते ही हमारे ह्रदय में उनके प्रति श्रद्धा भाव उमड़ पड़ता है। मुंशी राम सिंह जी को शत-शत नमन।
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा
मुंशी जी की कृपा एवं आशीर्वाद से मुझे अपने गाँव में प्रथम परास्नातक उपाधि प्राप्त होने का गौरव प्राप्त हुआ।
मुंशी राम सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन मुंशी जी की कर्तव्य भावना का स्मरण करते ही हमारे ह्रदय में उनके प्रति श्रद्धा भाव उमड़ पड़ता है। मुंशी राम सिंह जी को शत-शत नमन।
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा
-अशर्फी लाल मिश्र
कितने अच्छे थे उस समय के शिक्षक ! आज तो शिक्षा व्यवसाय बन गई है। इतना अच्छा संस्मरण हमसे बाँटने के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंअत्यंत भावुक करने वाला अविस्मरणीय प्रेरणादायक संस्मरण।मेरा प्रणाम है उन्हें।ऐसे गुरुजनों की सदा जय हो।प्रणाम।🙏🙏
जवाब देंहटाएंसाधुवाद, आभार।
जवाब देंहटाएंअद्भुत अत्यंत प्रेरणा दायक मेरी अपने पिता जी से बात हुई उन्होंने भी आदरणीय मुन्शी जी से शिक्षा ग्रहण की कई अनुभूति⁹ बताई.मेरी भी प्रणाम है ऐसी पुण्यात्मा को.
जवाब देंहटाएंआभार।
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