By: Asharfi Lal Mishra
Asharfi Lal Mishra |
आज भारतीय जान मानस में बाबाओं के प्रति अगाध श्रद्धा और बढ़ते अंध- विश्वास के कारण बाबाओं के मकड़जाल केंद्र अभेद्य किले के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं।
कुछ बाबाओं ने भारतीय संस्कृति की आस्था का ऐसा दोहन किया कि सारे विश्व में बाबाओं ने अपनी थू थू करवा ली। बाबाओं ने अपनी साधिकाओं / शिष्याओं का यौन शौषण कर आज जेल की हवा खा रहे हैं। कुछ महा अपयश प्राप्त बाबा निम्न हैं:
1-आसाराम
2-राम रहीम
3-रामपाल
गुरुमीत रामरहीम,आसाराम,रामपाल |
आश्रमों के नामकरण
बाबाओं ने अपने आश्रमों का नामकरण इस विधि से किया है कि लोग पढ़ते ही आकर्षित हो जायँ। मठाधीश भले ही निरक्षर हों लेकिन पारलौकिक ज्ञान , वैदिक ज्ञान आदि में अपने को निष्णात कहते हैं। कुछ आश्रमों के नाम तो समाज में भ्रम उत्पन्न करने वाले भी हैं
जैसे आध्यात्मिकविश्वविद्यालय [1] ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। क्या ये विश्वविद्यालय यू जी सी अनुमोदित हैं ? क्या मानक के अनुरूप इन विश्वविद्यालयों का शिक्षण ,परीक्षण एवं निरीक्षण होता है ?
जैसे आध्यात्मिकविश्वविद्यालय [1] ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय। क्या ये विश्वविद्यालय यू जी सी अनुमोदित हैं ? क्या मानक के अनुरूप इन विश्वविद्यालयों का शिक्षण ,परीक्षण एवं निरीक्षण होता है ?
आश्रमों का महिमा मण्डन
आश्रम की गति विधियां जितनी अधिक गोपनीय होंगी उतनी अधिक उस आश्रम की ख्याति फैलती है। अनुयायी बढ़ाओं आश्रम में पद पाओ नीति से आश्रम के अनुयायियों द्वारा निरन्तर नये अनुयायी/शिष्य /छात्र /छात्राएं बढ़ाने का प्रयास रहता है। महंतो की महिमा मण्डन करने में राजनेता भी पीछे नहीं रहते। इन महंतों के साथ राजनेताओं की खींची जाने वाली फोटो और वीडिओ को अपने अनुयायियों के मध्य या अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर अपने को स्वयं-भू भगवान् कहने और लिखने में अपने को गौरान्वित समझते हैं।
उपाधियाँ
परंपरा यह है कि जो उपाधियाँ किसी संस्था द्वारा प्रदत्त की जाती हैं वे ही उपाधियाँ व्यक्ति को अपने नाम के पूर्व या पश्चात् लिख सकते हैं लेकिन ये महंत स्वयं अपने नाम के पूर्व पूज्य, संत ,संत शिरोमणि ,भगवन आदि विशेषणों को लिखते हैं।
आश्रमों का साहित्य
कई आश्रम प्रमुखों की शिक्षा नगण्य है लेकिन उन्होंने वैदिक ग्रंथों का अपने अनुसार मनमानी भाष्य लिख दिया। (विना वैदिक ग्रंथों को पढ़े /सुने ही) ऐसे ग्रन्थ स्व-प्रकाशित हैं जिनकी कोई प्रमाणिकता नहीं होती। प्रामाणिक ग्रंथों में अब ISBN /NSBN अंकित होता है। इनके घटिया स्तर के साहित्य से केवल आश्रम का ही महिमा मण्डन होता है आध्यात्मिक ज्ञान का नहीं।
प्रशासन की अनदेखी
ऐसे आश्रमों में क्या अनैतिक शिक्षा/कार्य होते है प्रशासन को तब तक भनक नहीं लगती जब तक पीड़ित व्यक्ति न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाता।
वर्ष 2017 के कलंकित बाबा
- गुरमीत राम रहीम [d]
- फलाहारी बाबा [b]
- सच्चिदानंद[c]
- सुन्दर दास [e]
- शांति सागर [3]
- वीरेंद्र देव दीक्षित [2]
वीरेंद्र देव दीक्षित
आध्यात्मिक विश्वविद्यालय विजय विहार नई दिल्ली
आध्यात्मिक विश्वविद्यालय विजय विहार नई दिल्ली
यह आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पिछले २५ वर्षों से रोहणी इलाके में चल रहा है। इसके प्रमुख वीरेंद्र देव दीक्षित (70 वर्ष )हैं। वीरेंद्र देव दीक्षित अपने को भगवान शिव का अवतार कहते हैं ,जिस प्रकार भगवान् शिव के लिंग की पूजा की जाती है उसी प्रकार अपने लिंग की पूजा करने को कहते हैं।[3] कभी बाबा अपने की श्री कृष्ण जी से तुलना करते और युवतियों से कहते कि हमें 16,000 रानियों की इच्छा है।[4] बाबा के खिलाफ सी बी आई ने तीन केश दर्ज किये। [5]
अभिमत
- समय -समय पर आध्यात्मिक केन्द्रो की गोपनीय तरीके से जांच और विधिवत निरीक्षण होना चाहिए। इससे अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगेगा।
- यदि आश्रम के नाम में विश्वविद्यालय जुड़ा हो तो उसका निरीक्षण /पर्यवेक्षण यू जी सी द्वारा भी किया जाय।
- अनैतिक गतिविधियों वाले आश्रमों को तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
- ऐसे धार्मिक ग्रन्थ जिनके द्वारा केवल आश्रम का महिमा मंडान होता हो उन्हें जब्त कर लिया जाना चाहिए।
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