शनिवार, 9 नवंबर 2019

गंदगी से कानपुर देहात जिले में डेंगू का कहर

Updated on 26/11/2019 
                                       
 Blogger: अशर्फी लाल मिश्र  
अशर्फी लाल मिश्र








आज भारत में बढ़ रहा प्रदूषण एक राष्ट्रीय  समस्या का संकेत दे  रहा है। अब प्रदूषण महानगरों में ही नहीं बल्कि  प्रदूषण  का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों  पहुँच  गया है।  उसका मुख्य कारण स्थानीय निकाय और ग्राम्य विकास विभाग की उदासीनता होना।
  हम विडम्बना ही कहेंगे कि जब भारत गाँधी जी की 150 जयंती मना रहा हो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  का जोर भी  हो स्वच्छता पर  विशेष हो और इतना ही नहीं स्वयं  नरेंद्र मोदी समुद्रतट पर पोलिथीन एवं बोतलें  उठाते हुए दिखाई दे रहे  हैं तब दिल्ली और कानपुर जैसे महानगर बढ़ते प्रदूषण का झंडा ऊंचा किये।


स्वच्छता बनाये रखने का उत्तरदायित्व ग्राम्य विकास विभाग और स्थानीय निकाय का है लेकिन ये संस्थाए भी स्वच्छता के प्रति गंभीर नहीं। संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित करने वाले भी अधिकारी अपने उत्तरदायित्व के प्रति गंभीर नहीं हैं यदि ये  संस्थाए  गंभीर हों तो मच्छर जनित बीमारियां महामारी का रूप न लें।
संक्रामक बीमारियों से जब लोगो की  मृत्यु की सूचना प्रिंट मीडिया द्वारा मिलती है। तब सम्बंधित विभाग में  हलचल होती है। इसके पहले  अधिकारी सोते रहते हैं। प्रिंट मीडिया भी  कभी कभी सही समाचार देने में शिथिलता बरतती  है यदि प्रिंट मीडिया समय पर बजबजाती नालियों और जगह जगह कूड़े ढेरों की सूचना अपने समाचार पत्रों में दें तो भी कुछ समस्या हल हो  सकती है ।

कानपुर देहात और डेंगू 

महानगरों के बाद यदि देखा जाय तो गंदे जिलों में कानपुर   देहात जिले का नाम भी शुमार किया जा सकता है। जहाँ सफाई की लचर व्यवस्था से मच्छर जनित बीमारियों के कारण आम जनता  भयभीत है। सितम्बर 2019 से नवम्बर 2019 तक डेंगू और मलेरिया से हजारों लोग पीड़ित रहे और दर्जनों लोग इस संसार को छोड़कर चले गए। 
         

 डेंगू से सर्वाधिक  प्रभावित क्षेत्रों में भटौली , रूरा, अकबरपुर, झींझक   रहे।  वैसे डेंगू और  मलेरिया ने पूरे जिले में  पैर पसार  रहा है। कानपुर देहात जिले के मुख्यालय के नजदीक स्थित अकबरपुर,रूरा,और भटौली जैसे स्थानों में मच्छर जनित बीमारियों का होना जिले के  ग्राम्य विकास विभाग की पोल खुलती नजर आती है। सफाई के लिए जिम्मेदार अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग एवं जिले के  अधिकारी  तब सोते से जागते हैं जब प्रिन्ट मीडिया उन्हें डेंगू से होने वाली मौतों की सूचना देता है। [1] [2] 2[a] [3 ]
पार्श्व चित्र में डेंगू की जाँच के लिए खड़े हैं लेकिन जांच की सुविधा नहीं। [4]
गंदगी के कारण कानपुर देहात जिले में मच्छरों का साम्राज्य।  जिले में डेंगू ने महामारी का रूप ले लिया है। मेडिकल कॉलेज से अब तक 75 डेंगू से पीड़ित मरीजों की सूचना। [5]

21/11/2019
रानियाँ में डेंगू से  एक महिला तथा भटौली -रूरा  में एक बच्चे की जीवन लीला समाप्त [6]

   
22/11/2019
डेंगू से  मौत पर 25  लाख़ का मुआवजा. 
 डेंगू  की बीमारी से  सम्बंधित  एक याचिका में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने  डेंगू से मौत होने पर  25 लाख मुआवजा देने का आदेश।6[a]   सभी जिलाधिकारियों को डेंगू से बचाव और  इलाज की समुचित व्यवस्था का निर्देश [7]

24/11/2019
 कानपुर मेडिकल कॉलेज ने 3  और डेंगू के मरीजों की पुष्टि की [8]
25/11/2019
ग्राम जिगनिस डेरापुर में  डेंगू से एक किशोरी मौत (दैनिक जागरण -कानपुर )
26/11/2019
डेंगू के 5 और  मरीज मिले। आंकड़ा 85, मेडिकल कॉलेज कानपुर  के अनुसार [9]


सफाई और बचाव 
आज भी नालियां बजबजा रही है। एंटी लार्वा का छिड़काव  बहुत सीमित अर्थ में। एंटीलार्वा का छिड़काव केवल उन घरों तक  सीमित  जिनकी सूचना मेडिकल कॉलेज कानपुर  से सी एम ओ कानपुर देहात के पास आयी। प्रतिदिन सैकड़ों नए डेंगू के मरीज। डेंगू से बचाव के  लिए प्रिंट मीडिया में केवल प्रचार। सफाई कर्मचारी गायब।



मृदा प्रदूषण 

आज अधिकांश वस्तुएं  चाहे वे ठोस हों या फिर तरल , सभी की सभी  पॉलिथीन / प्लास्टिक के कंटेनर या पाउच   के  रूप में   बाजार में उपलब्ध हैं।
वनस्पति घी ,  दूध ,तेल , पानी आदि सभी कुछ पाउच या बोतलों में उपलब्ध हैं इनके उपभोग के बाद त्याज्य पाउच ,बोतल आदि या तो नाली में या  कूड़े के ढेर में या फिर खेतों की ओर जा कर कृषि भूमि को उनुपजाउ करने में सक्रिय भूमिका अदा  कर रहे  हैं।
पान का मशाला हो या फिर नमकीन , तम्बाकू की  पुड़िया हो या फिर हो फिर चॉकलेट।   हमारा कहने का अर्थ यह  है कि  बाजार में  95 % वस्तुएं प्लास्टिक /पॉलीथिन की पैकिंग में उपलब्ध हैं।  वस्तुओं के स्तेमाल के बाद  पैकिंग पदार्थ दिन पर दिन सीधे सीधे मृदा प्रदूषण को बढ़ा रहे है।  इससे कृषि उपज प्रभावित हो रही है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सरकार हमारे कथन के तथ्य से परिचित न हो।

वायु प्रदूषण 

वायु प्रदूषण का  एक कारण पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से  सरकार कुछ चिंतित जरूर नजर आ  रही है वह भी जब उच्चतम न्यायालय की निगाह टेढ़ी हुयी। इसके अलावा और भी कारण हैं जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है जो निम्न हैं ;
1 - रोड पर धुल और मिटटी
2 - उखड़ते हुए रोड
3 - बिना फिटनेस  के डीजल वाहन (10 वर्ष के बाद ) ,पेट्रोल वाहन (15 वर्ष के बाद ) उगलते जहर।
4 - आज भी होटलों में कोयला / लकड़ी की भट्ठियों का संचालित  होना
5 - लगभग सभी खोये की भट्ठियां कोयला से संचालित
6  - पॉलीथिन  से युक्त कचरा स्थानीय निकायों द्वारा जलाया जाना
7  - आतिशवाजी का प्रयोग

जल प्रदूषण 

प्रदूषित जल के प्रयोग से लोग संक्रामक बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। जल प्रदूषण के निम्न कारण हैं:
1 - गन्दा पानी जहाँ रुकता हो जैसे - सीवर टैंक के पास हैंड पाइप / सब्मर्सिबल पंप
2 - नदियों के  जल को उसमें गिरने वाले  गंदे नाले  प्रदूषित करते हैं।
3 - कारखानों से निकलने वाला दूषित  जल भूमि जल को दूषित कर  रहा है।
4 - दूषित जल न ही पीने योग्य और न ही सिचाई योग्य।

अभिमत 
1 -पॉलिथीन  /  प्लास्टिक निस्तारण के प्लांट लगाए जाँय।
1(a)- खेतों में  पराली , कूड़े के ढेर को जलाने से रोका जाना चाहिए।
2 - अब ग्राम्य विकास विभाग  द्वारा  जल निकासी / सफाई कार्य प्राथमिकता के साथ कराये जाने चाहिए।
3 - ग्राम पंचायत अधिकारी को अनिवार्य रूप से ग्राम पंचायतों में जाने को कहा जाय। वर्तमान में ग्राम   पंचायत अधिकारी ब्लॉक स्तर पर अपना कार्यालय खोले हुए हैं।
4 - गन्दगी से होने वाली  बीमारी की स्थिति में सम्बंधित  अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जाय।
5 - सभी सफाई कर्मचारियों अपने कार्य स्थल पर अनिवार्य रूप से बाध्य किया जाय। डुप्लीकेट सफाई कर्मचारियों पर नियंत्रण हो।
6 - कोयले/ लकड़ी की भट्ठियों को प्रतिबंधित किया जाय।
7 - धुँवा उगलने वाले वाहनों को रोड पर चलने से  रोका जाना चाहिए।
8 - प्रदूषित जल प्रवाह करने वाले  कारखानों  को जल शोधन के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए बाध्य किया जाय।


बुधवार, 9 अक्टूबर 2019

स्वच्छता दीर्घ जीवन की कुंजी है

*अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर*           Updated on 12/10/19
          स्वच्छता एक ऐसा बिंदु है जो सर्वजन हिताय सर्वजन  सुखाय  है।   भारतीय लोकतंत्र में यह मुद्दा आजादी के लगभग सातवें  दशक के   अंत में   सामने तब  आया जब पॉलिथीन ,थर्माकोल आदि से नालियां जाम होने लगी ,  कार्यालय की दीवालें पीक से रंगीन होने लगी , अधिकारीयों की मेज के नीचे पीकदान शोभा देने लगे , गंगा जैसी पवित्र नदियाँ एक गंदे नाले के रूप में परिवर्तित हो गईं ,तब कहीं जाकर सरकार का ध्यान इस ओर गया।

        भारत में प्राचीन काल से ही स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता था. ऋषि  और मुनि और उनके आश्रम ,नदियाँ और जलाशय  स्वच्छता के केंद्र विन्दु थे।  सभी ऋषियों , मुनियों के आश्रम  नदियों के तट या जलाशय के निकट ही होते थे।

         स्वच्छता न कोई राजनीतिक मुद्दा है और न ही वर्ग विशेष को तुष्ट करने वाला । यह मुद्दा सर्वजन हिताय है। इस मुद्दे का सम्बन्ध न किसी जाति  से है और न ही किसी धर्म से।  यह मुदा अमीर और गरीब सभी के लिए बराबर हितकारी है। स्वच्छता का सम्बन्ध किसी राजनीतिक दल का राजनीतिक एजेंडा से  भी नहीं है।  अतः सभी सभी जाति /धर्म , अलप संख्यक /बहु संख्यक , अमीर/गरीब , सत्ताधारी दल /विपक्ष आदि सभी को स्वच्छता अभियान में सक्रिय भाग लेना चाहिए।
व्यक्तिगत स्वच्छता 
        व्यक्तिगत स्वच्छता में ऋषियों ,मुनियों को आदर्श कहा जा सकता है वह  सदैव शौंच के बाद स्नान और लघुशंका (पेशाब ) के बाद मूत्रनली को जल से धोते थे ऐसा करने से यूरिन इन्फेक्शन से यह ऋषि- मुनि सदैव बचे रहते थे। ज्ञातव्य हो की यदि मल के बैक्टीरिया मूत्रमार्ग तक पहुँच जॉय तो यूरिन इन्फेक्शन ( Urine infection) हो जाता है।
 कालांतर  में वैष्णव (दंडी स्वामी ) आदि साधुओं ने भी व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान दिया।
        वर्तमान में  व्यक्तिगत स्वच्छता में कमी आयी है।लोगों में  पान मशाला , मैनपुरी तम्बाकू ,गुटखा का प्रचलन गुणोत्तर गति से बढ़ रहा है। इससे न केवल ऐसे लोग कैंसर को आमंत्रित कर रहे है बल्कि जहां भी खड़े बैठे होते है वहीँ पर मुंह की पिचकारी से गन्दा करते है। यह केवल सामान्य जन  की बात नहीं है बल्कि विशिष्ट जन भी पीछे नहीं है।
          आइये अब हम एक उदहारण देते हैं हम अपने गंतव्य पर जाने के लिए बस का इन्तजार कर रहे थे अचानक एक मार्शल गाड़ी रुकी उसके सामने के सीसे में मजिस्ट्रेट लिखा था। ड्राइवर सीट के बगल जो व्यक्ति बैठा था हम ने उसे मजिस्ट्रेट ही समझा। वह व्यक्ति गाडी से उतरा और पहले  उसने  जमीन पर पिचकारी से डिजाइन बना दी और तब एक दूकान की ओर बढ़ा। इसी बीच हमारी बस आ गई और हम बस से अपनी यात्रा पर चल दिए।
परिसर की स्वच्छता 
           आवास , कार्यालय , गेस्ट हाउस , विद्यालय /कॉलेज / शिक्षण संस्थान या फिर अन्य जैसे रेलवे स्टेशन /हवाईअड्डा ,बंदरगाह आदि  हो; इन सभी जगहों की स्वच्छता दायित्व सम्बंधित प्रमुखों का है।
परिवेश की स्वच्छता 
              परिवेश को स्वच्छ रखना ही सबसे कठिन बिंदु है इसमें नालियाँ , रोड , तालाब ,नदियां आदि आती है। सर्वाधिक गंदगी इन्हीं स्थानों पर मिलती है। परिवेश को स्वच्छ रखने के लिए कठोर निरीक्षण की आवश्यकता है। अभी तक देखने में आया है कि जो भी व्यक्ति / या संस्था परिवेश स्वच्छ रखने के लिए जिम्मेदार है वे अपने उत्तरदायित्व निर्वहन  में असफल हैं।
आम जनता  
             आम जनता अभी अपने परिसर की सफाई तो करना चाहते हैं लेकिन परिवेश की सफाई के प्रति उदासीन हैं।  अभी सभी दूकानदार डस्टबिन रखते भी नहीं और जो डस्टबिन  रखे हुए भी है उनमें ग्राहक अभी प्रयुक्त मिटटी के कुल्हड़ , दोने,कागज आदि डालने के  अभ्यस्त भी  नहीं है। नदियों में आज भी शव प्रवाह , ज्वलित शव के अवशेष , पूजन सामग्री आदि भी प्रवाहित करने का प्रचलन है, इसका विकल्प खोजा जाना चाहिए।
जनप्रतिनिधि  
           जनप्रतिनिधियों में स्वच्छता के प्रति  गंभीर रूचि नहीं दिखाई पड़ती। जनप्रतिनिधि स्वयं   एवं  इसके लिए जिम्मेदार संस्था  को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते रहना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता।  हाँ  इतना अवश्य है कि  कभी कभी कैमरे  में झाड़ू लिए फोटो खिचवाने की ललक अवश्य रहती है और प्रिंट मीडिया में झाड़ू पकड़े हुए फोटो भी छपती है।  लेकिन सफाई प्रदर्शन में विपक्ष के जन प्रतिनिधि या तो शामिल नहीं होते या फिर बहुत ही कम।
समाज सेवक/सामाजिक कार्यकर्ता  
             समाज सेवक में जन प्रतिनिधि भी शामिल हैं। जन प्रतिनिधियों के अलावा भारत में समाज सेवकों की  बहुत बड़ी फ़ौज है लेकिन स्वच्छता के प्रति कोई भी आग्रह नहीं ,कोई अभिरुचि नहीं। आज के समाज सेवक रिपोर्टर के कैमरे के सामने नई झाड़ू लेकर फोटो खिंचा सकते हैं।  अभी तक भारत रत्न के पुरस्कार अधिकतर सोशल एक्टिविस्ट को ही मिले हैं।
स्वच्छता और महात्मा गाँधी 
       गाँधी जी समाज   सेवक थे।  वे ब्रह्म मुहूर्त में विना प्रदर्शन किये चुप चाप मलिन बस्ती में झाड़ू लगाते थे।  समाज सेवा के क्षेत्र में महात्मा गांधी  अतुलनीय  है। 2 अक्टूबर 2019 से गाँधी जी की 150 वीं जयंती मनाई जा रही है।                                                           
                                            150 वीं गाँधी जयंती के अवसर पर रु 150 का सिक्का
स्वच्छता और नरेंद्र मोदी 
        महात्मा गाँधी  के बाद सार्वजानिक सफाई की ओर यदि किसी का   ध्यान गया तो वह नरेंद्र  मोदी हैं।   2 अक्टूबर 2014 को सफाई अभियान को गति देते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के वाल्मीकि  नगर में  झाड़ू लगाई और स्वयं कूड़ा फेंका।[1]  स्वतंत्र भारत के  इतिहास  में मोदी का यह सफाई अभियान स्वर्णाक्षरों लिखा जायेगा।
                                                                         
                                दिल्ली के वाल्मीकि नगर में झाड़ू  लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  
                                                                             
                                              पी एम   नरेंद्र मोदी तट पर कूड़ा उठाते हुए
12 अक्टूबर 2019 को प्रातः भ्रमण के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममल्लापुरम के समुद्र तट की साफ-सफाई  की।[2]                                         
     
लोकसेवक  
       सभी सरकारी  अधिकारी /कर्मचारी लोक सेवक की श्रेणी में आते है लेकिन लोक सेवकों में , लोक सेवा कम अधिकार  भावना अधिक।   यह अधिकारी /कर्मचारी अपने -अपने कार्यालय में गुटका ,पानमसाला या  धूम्र पान केवल निषेध ही करा दें तो बड़ी बात  है। स्वच्छता का उत्तरदायित्व संभाल रहे  अधिकारी जितना सजग होना चाहिए उतना सजग नहीं हैं।
          सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति होने बाद भी अभी गावों में सफाई संतोष जनक नहीं है। सफाई कर्मचारी अपने नियुक्ति स्थल पर कार्य करें इसके लिए कोई भी अभी तक  न ही उचित  निरीक्षण सुनिश्चित  है और न ही उपस्थिति सुनिश्चित होती है। जल भराव की स्थिति में  , गन्दगी से होने वाली बीमारी की स्थिति  में  कौन जिम्मेदार होगा?
      घर में शौचालय  निर्माण हो या नालियों की सफाई/निर्माण  की फर्जी रिपोर्ट प्रेषित की जाती है। इस  पर नियंत्रण लगना चाहिए।
 स्वच्छता से सम्बंधित जनसुनवाई  पोर्टल पर  की गयी शिकायतों की  फर्जी  निस्तारण  सूचना  जिलाधिकारियों को दी रही है।
अभिमत 
1 - व्यक्तिगत स्वछता के लिए शिक्षण संस्थाओं में छात्रों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
2 - सभी शिक्षण संस्थाओं / कार्यालयों के समीप, 10 घरों के मध्य  कूड़ा डालने  के लिए कूड़ादान (डस्टबिन)  की व्यवस्था की जनि चाहिए। यह डस्टबिन भी नियमित खली किये जाने चाहिए।
3 - नालियों की सफाई नियमित हो।  तलहटी में जमी सिल्ट भी समय - समय पर निकली जानी चाहिए।
4 - पॉलिथीन के कारण नालियों में जल प्रवाह रुकता अतः पॉलिथीन का निर्माण ,बिक्री एवं प्रयोग प्रतिबन्ध के बाद कठोर निरीक्षण की आवश्यकता है।
5 - वातावरण को गन्दा करने में पान मशाला , गुटखा और मैनपुरी तम्बाकू की बहुत बड़ी भूमिका है अतः पान मशाला , गुटखा एवं मैनपुरी तम्बाकू का निर्माण एवं विक्री प्रतिबंधित की जाय।
6 - मच्छर जनित बीमारियों को रोकने के लिए समय- समय पर फॉगिंग या डी डी टी का छिड़काव किया जाना चाहिये।
7 - प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में स्वच्छता विषय अनिवार्य होना चाहिए।

मंगलवार, 11 जून 2019

शूद्र शब्द का प्रयोग केवल संगठनात्मक ढांचा बनाने में


Asharfi Lal Mishra










शूद्र कोई जाति नहीं ,शूद्र कोई वर्ण नहीं। आज हम इस लेख में शूद्र शब्द पर विशद विवेचन करेंगे।

हमारी दृष्टि में शूद्र वह व्यक्ति है जो जन्म लेने  के बाद  अपने आप को किसी भी प्रकार की शिक्षा या कौशल कला की शिक्षा  से वंचित रखता है और ऐसा व्यक्ति जीवन यापन के लिए दूसरे व्यक्तियों  की सेवा में अपने को संलग्न  रखता है    
वैदिक शास्त्रों में भी कहा गया है :
" शोचनीयः शोच्यां स्थितिमापन्नो वा सेवायां साधुर अविद्यादिगुणसहितो मनुष्यो वा। "[1]
अर्थात शूद्र वह व्यक्ति है जो अपने अज्ञान के कारण किसी भी प्रकार की उन्नति को प्राप्त नहीं कर पाया और जिसके भरण पोषण की चिंता स्वामी के द्वारा की जाती है। 

   यह भी कहा गया कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से शूद्र है और जब तक व्यक्ति शिक्षा या कौशल कला  का ज्ञान  प्राप्त नहीं  करता तब तक शूद्र ही रहेगा  .इसका अर्थ यह हुआ कि  प्राचीन काल से ही शिक्षा का विशेष महत्व रहा है  और शायद इसी लिए न पढ़ने वाले के लिए शूद्र शब्द का स्तेमाल किया गया होगा। 

वर्तमान समय में देश में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा शायद इसीलिए लागू  की गयी है  कि सभी लोग शिक्षित हों और कौशल कला में निपुण हों ताकि देश में कोई भी व्यक्ति शूद्र न कहलाये। सरकार का इस ओर भागीरथ  प्रयास भी है  आशा है सरकार अपने इस प्रयास में सफल होगी और देश में  न कोई अशिक्षित होगा और न ही किसी व्यक्ति को शूद्र कहा जायेगा। 

शूद्र शब्द की वास्तविकता को जानते हुए भी कुछ लोग जातीय संगठनों में ,  एन जी ओ में , जातीय सम्मेलनों में  धार्मिक ठेकेदार या फिर कभी- कभी राजनेता भी शूद्र शब्द की गलत व्याख्या कर अपना स्वार्थ सीधा करने में नहीं चूकते। 

हमें तब आश्चर्य हुआ जब  एक संगठन से जुड़े व्यक्ति ने यह कहा कि " भीमराव रामजी आम्बेडकर , रविदास और कृष्ण द्वैपायन शूद्र थे " मैंने तत्काल प्रतिवाद किया और कहा  कि " आम्बेडकर विधि वेत्ता  , रविदास ज्ञानी और कला कुशल तथा कृष्ण द्वैपायन (व्यास) कवि एवं उद्भट  विद्वान थे " 

ऊपर हमने जिस व्यक्ति की चर्चा की वह  एक संगठन में उपदेशक हैं और अनुसूचित जाति  से सम्बन्ध रखते हैं। हमने बात बढ़ाते हुए उनसे कहा कि एक समय था जब अपढ़ लोगों को जिन्हें शूद्र की संज्ञा दी जाती थी उन्हें पढ़े लिखे लोगों के बीच बैठने का अवसर नहीं मिलता था। आज इस समय  आप कुर्सी पर बैठे है और मैं   खड़ा हूँ कृपया बताइये हम में और आप में कौन शूद्र है। बस इतना कहते ही वह व्यक्ति हाथ जोड़ते हुए और मुस्कराते हुए  वहां से चला गया । 

अभिमत 
 वर्तमान में देश कोई भी  व्यक्ति शूद्र नहीं। कुछ एन जी ओ और कुछ राजनेता  इस शब्द का बेजा स्तेमाल करते हैं। ऐसे एन जी ओ प्रमुखों , उपदेशकों और राजनेताओं को सद्बुद्धि प्राप्त करने के लिए मैं  ईश्वर से प्रार्थना  करता हूँ अथवा कानून बनाकर शूद्र शब्द जो घृणामूलक है उसे प्रतिबंधित करने के लिए सरकार निवेदन  करूंगा । 




रविवार, 2 जून 2019

प्राथमिक शिक्षा को सुधारने के लिए अब तक किये गए सारे प्रयास असफल

By : Asharfi Lal Mishra

Asharfi Lal Mishra










प्राथमिक शिक्षा को सुधारने के लिए ज्यों-ज्यों प्रयास किये गए त्यों त्यों प्राथमिक शिक्षा की दुर्गति होती  चली गयी।

आजादी के बाद और करीब करीब  1970 के अंत तक प्राथमिक शिक्षा के प्रति जनता में एक अच्छा सन्देश जाता था। 

जब शिक्षा जिला परिषद् के अधीन थी तब प्राथमिक  शिक्षा का स्तर  आज की तुलना में बहुत ही बेहतर था। बेसिक शिक्षा परिषद्  के गठन के बाद जहाँ शिक्षकों की सेवा दशाओं में निरन्तर सुधार हुआ वहीँ दूसरी ओर  शिक्षा की गुणवत्ता में निरन्तर ह्रास होता चला गया और आज स्थिति यह है कि अभिभावकों और बच्चों ने  प्राथमिक से अपना मुख मोड़ लिया है। 

जब से शिक्षा समवर्ती सूची में सम्मिलित हो गई तब से राज्य का आर्थिक भार तो कम हो गया लेकिन राज्य ने कभी भी प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता की ओर ध्यान ही नहीं दिया। राज्य सरकार ने बैक डोर से अयोग्य शिक्षकों की भर्ती के निमित्त शिक्षा मित्रों की भर्ती कर ली। यह शिक्षा मित्र स्थानीय ग्राम सभा द्वारा नियुक्त किये गए। इन शिक्षा मित्रों में बहुत से शिक्षा मित्र दमंग / प्रभावशाली परिवारों से सम्बंधित थे ऐसे लोग सप्ताह में या महीने में जाकर केवल हस्ताक्षर कर मानदेय प्राप्त करने लगे। दमंग / प्रभावशाली / महिला शिक्षा मित्रों को विद्यालय में समय वद्ध करने में प्रधानाध्यापक अपने को असमर्थ पाने लगे। बस यही से प्राथमिक शिक्षा की दुर्गति प्रारम्भ हो गयी। 

जब स्थानीय  शिक्षा मित्र  प्रधानाध्यापकों पर भारी पड़ने लगे तो प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों ने भी  विद्यालय आने की  शिक्षा मित्रों की शैली  अपना ली और विद्यालय आने के  दिन निर्धारित कर लिए। 

कुछ शिक्षकों ने प्रधानाध्यापकों से, कुछ ने खंड शिक्षा अधिकारीयों से सांठ गांठ कर उपस्थित होने के दिन निर्धारित कर लिए। 

समय की गति  और विभागीय अधिकारीयों की सांठ - गाँठ से शिक्षकों ने कार्य स्थल से सैकड़ों किलो मीटर दूर  आवास बना लिए। 

प्राथमिक शिक्षा में मनचाहा ब्लॉक और स्कूल पाने के लिए रेट भी निर्धारित हैं। 

वर्तमान में जो   प्रधानध्यापक स्वयं  अनियमित हैं  और अनियमित प्रधानाध्यापक अपने सहायकों पर कैसे  नियंत्रण पा सकते हैं? यह एक गंभीर प्रश्न है ? 

कई स्कूलों में जब अनियमित शिक्षक छात्रों की पिटाई करते हैं तब उन्हें अभिभावकों के विरोध का सामना करना भी  पड़ता है।  

 शिक्षक संघ भी सचेत है उसने शैक्षिक गुणवत्ता के गिरते स्तर के लिए  संसाधन की कमी को जिम्मेदार ठहराया।

विद्यालयों के शिक्षण कक्षों,शौंचालय तथा परिसर की सफाई  कैसे हो यह भी सरकार को  हर कीमत पर सुनिश्चित करना है। 

वर्तमान में विद्यालयों की भौतिक स्थिति अच्छी है संसाधन भी पर्याप्त है फिर क्या कारण है कि  छात्रों और अभिभावकों का   प्राथमिक विद्यालयों से मोह भांग हो गया है और निरंतर छात्र संख्या गिर रही है। 

इधर कुछ वर्षों से शैक्षिक सुधार और निरीक्षण  के निमित्त प्रत्येक ब्लॉक में 10  एन पी आर सी ,  4 ए  बी आर सी ,1  बी आर सी और एक खंड शिक्षा अधिकारी   नियक्त है लेकिन यह केवल अपनी - अपनी  सर्विस कर रहे है लेकिन बच्चों की किसी को भी परवाह नहीं। 

एक अभिभावक ने बताया कि  प्राथमिक विद्यालय में बच्चे भेजना सुरक्षित नहीं है। बच्चे आपस में लड़ सकते है  शिक्षक समय पर आते नहीं हैं। 

शिक्षक  का पद अन्य कर्मचारियों से भिन्न है  जहाँ अन्य कर्मचारियों के पद आर्थिक भ्रष्टाचार से जुड़े होते हैं।  उन्हें अन्य जिलों में स्थानांतरित भेज कर  भ्रष्टाचार में कुछ कमी की कल्पना की जा सकती है। वहीँ शिक्षक का पद  समय की नियमितता से जुड़ा हुआ है। 

वर्तमान में निरीक्षण प्रणाली इतनी लचर है जिसका कोई अर्थ ही नहीं। 
हमारा कहने का यह आशय नहीं है कि  सभी शिक्षक अनियमित हैं कुछ ऐसे भी शिक्षक है  जो समय पालन के साथ साथ  शिक्षण कार्य में रूचि भी रखते हैं लेकिन ऐसे शिक्षकों की संख्या कम है। 

प्राथमिक शिक्षा से लोगों का  मोह भंग  का एक कारण और भी है और वह है गली -गली में गैर मान्यता प्राप्त  विद्यालयों का खुलना। 

सुझाव 

1 - विद्यालयों का सघन निरीक्षण 
2 - शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए स्थानांतरण करना कोई विकल्प नहीं है। 
3 - शिक्षकों और छात्रों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित हो। 
4  - जहां तक संभव हो महिला शिक्षकों को रोड के किनारे ही विद्यालय आवंटित हों  .जिससे  समय पर आने में किसी प्रकार का बहाना न हो।
5 - विद्यालयों में शिक्षण कक्षों , शौंचालय तथा परिसर की सफाई समय पर अवश्य सुनिश्चित हो। 


रविवार, 7 अप्रैल 2019

जातिवाद राजनीति का एक सशक्त अस्त्र

ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र

Asharfi Lal Mishra










भारतीय संविधान की  निर्माण समिति में  सभी जातियों /श्रेणियों के प्रतिनिधियों को इस लिए सम्मिलित किया गया था क़ि सभी के हितों का ध्यान रखा जाय और शायद इसीलिए अनुसूचित जातियों /अनुसूचित  जनजातियों को अन्य जातियों के  समकक्ष लाने  के उद्देश्य से  उनके आरक्षण की व्यवस्था भी 10 वर्ष  के लिए की गयी थी लेकिन आज तक आरक्षण की व्यवस्था कायम है। बाद में ओ  बी सी जातियों का भी आरक्षण कर दिया गया।  मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के गरीब तबके के लिए भी  आरक्षण कर दिया। ऐसा लगता है कि भारतीय लोकतंत्र की मूल भावना में आरक्षण प्रमुख बिंदु  है।

राजनेताओं की अभिरूचि  जातिवाद में 
 यद्यपि समाज में धीरे धीरे ऊँच -नीच का भेद भाव समाप्त हो रहा है समाज में सामाजिक समरसता बढ़ रही है। यात्रा के समय बस ,  रेलगाड़ी  या फिर  यान में , होटल /रेस्टोरेंट में, सार्जनिक समारोहों में ,देवालयों में ,सिनेमा घरों आदि  कहीं कोई जाति  नहीं पूँछता।  लेकिन  जब एक अनुसूचित जाति का   नेता अपना   नाम  मीडिया में  छपवाने  की गरज से जब झंडा लेकर समूह के साथ  मंदिर पहुँचता है और नारे लगाकर लौट जाता है और कहता है कि मुझे मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। राजनेता का यह कार्य अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए था. 

जातिवादी विचार धारा को बनाये रखने के लिए राजनेता  इसकी जड़ों को कभी दूध और कभी पानी से सिंचित करते रहते हैं। चूँकि अधिकांश राजनेताओं का अभ्युदय  जातियों के गर्भ से होता है इसलिए अपने को  अपनी जाति का  सर्व श्रेष्ठ  नायक बनाये रखने  में अपनी भलाई समझते हैं। 

जातीय आधार पर चुनाव में टिकट का वितरण 
सांसद या विधायक के उम्मीदवार के लिए  न कोई शैक्षिक योग्यता और न ही कोई  अधिकतम उम्र का प्रतिबन्ध।  हाँ वह केवल  अपना हस्ताक्षर कर सकने में समर्थ हों । लोक  सेवकों के लिए अनिवार्य योग्यता , न्यूनतम और अधिकतम की उम्र का प्रतिबन्ध , मेडिकल सर्टिफिकेट की भी  आवश्यकता होती है लेकिन लोक सेवकों  पर निगरानी रखने वाले मंत्रियों के लिए कोई योग्यता  निर्धारित नहीं। झारखण्ड के एक मंत्री तो शपथ पत्र  भी नहीं पढ़ सके.  ये मंत्री जी अपने विभाग के सचिव के विश्वास पर ही चलेंगे। 

अब आप सोच सकते हैं  फिर उनकी योग्यता क्या निर्धारित है आइये अब बताते हैं कि लोक सभा या  विधान सभा चुनाव के  उम्मीदवार को  में निम्न योग्यताएं चाहिए..इन्हीं योग्यताओं को ध्यान में रखकर राजनीतिक दल टिकट वितरण करते हैं -

1- उसकी जाति  
2- उसकी जाति  के मतदाताओं  की संख्या 
3- अपनी जाति के मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की क्षमता 
4- आर्थिक क्षमता 
5-सामाजिक प्रसिद्धि /उच्च घराना 
6- सीट निकलने की क्षमता 

राजनेताओं की मानसिकता 

किसी जाति  विशेष का मत पाने के लिए  सदैव उसके आरक्षण की अनंतकाल  तक  बनाये रखने की बात करते है या उसके संरक्षण से सम्बंधित कानूनों के पोषण की बात करते हैं।  

समाज में जाति  आधारित आरक्षण का लाभ उठाने वाले   लोग अपने हित  में बने कानून के पक्षधर हैं अर्थात जातीय आरक्षण त्यागना नहीं चाहते लेकिन समाज में उनका कहना है  सभी बराबर हैं। जब सभी बराबर हैं  तो किसी को  आरक्षण क्यों। 

प्रश्न यह है कि जब समाज में समरसता कायम हो रही है या हो गयी है तो चुनाव के अवसर पर राजनेता जातीय सम्मलेन क्यों करते हैं. वे अपनी जाति- बहुल क्षेत्र  के लोगों में जातीय  सन्देश क्यों देते हैं। जातीय राजनीति पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं ?[1] 

कुछ जातिवादी  प्रमुख राजनेता 

1- मायावती 
2- मुलायम सिंह यादव 
3 लालू प्रसाद यादव -
 उत्तर प्रदेश की राजनीति  में मायावती और मुलायम सिंह यादव  जातीय राजनीति में महारथ राजनेता  हैं। वहीँ बिहार की राजनीति में  लालू प्रसाद यादव का नाम प्रमुख है। ये राजनेता अपनी जाति का रिमोट अपने पास होने का दावा करते हैं। 

लीक से हटकर राजनेता 
कुछ राजनेता ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी जाति  से हटकर भी राजनीति  की और  प्रांतीय  राजनीति में अपना लोहा मनवाया जैसे जयललिता।  जयललिता तमिलनाडु की लोकप्रिय मुख्यमंत्री और  संसद में भी उनकी  पार्टी की सदैव पूंछ रही। 
     
                                                                       
                                                                    जयललिता 
                                                               

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

अनधिकृत वाहन समस्याओं की जड़

Blogger : Asharfi Lal Mishra
Asharfi Lal Mishra










एक नया पेट्रोल चालित  वाहन  15 वर्ष और डीजल चालित  वाहन 10 वर्ष तक  रोड पर चलने के लिए अधिकृत होते हैं  इससे आगे चलाने के लिए उन वाहनों को  फिटनेस की आवश्यकता होती है।
   रोड पर चलने के लिए  वाहन का अद्यतन बीमा भी होना चाहिए और ड्राइवर का अद्यतन वैध ड्राइविंग लाइसेंस भी। वाहन पर  पढ़ा जा सकने वाला  गाड़ी का   नंबर  भी अर्थात  यथास्थान नंबर प्लेट लगी होनी चाहिए। 

  रोड पर वाहनों बढ़ने कारण 
1- पुराने वाहनों की अवधि समाप्त हो जाने बाद विना  फिटनेस के ही पुनः  परमिट का बन जाना। ऐसे वाहन देहात और कस्बों में  अधिक संख्या में देखे जा सकते है। 
2- बीमा रहित वाहनों की एक लम्बी कतार है  ऐसे वाहनों की   संख्या भी  देहात,कस्बों एवं छोटे नगरों में मिल जाएगी। 
3- देहात ,कस्बों में अनेकों ऐसे वाहन मिलेंगे जिनमें गाड़ी का नंबर ही गायब होगा। 

कबाड़ या पुराने वाहनों से होने वाली  समस्यायें  
1-  विना फिटनेस के पुराने वाहन जो ओवरलोडिंग भी करते हैं प्रायः दुर्घटना के शिकार होते हैं या फिर दुर्घटना करते  हैं। 
2-  पुराने वाहन ही सर्वाधिक प्रदूषण फैलाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी वाहनों द्वारा फैलने  वाले प्रदूषण पर चिंता जाहिर की है। [1][2]
3- पुराने वाहनों से ध्वनि प्रदूषण के साथ साथ वायु प्रदूषण भी होता है। जिससे लोग कान से बहरे और फेफड़ों की टी बी से पीड़ित हो रहे हैं।
4- रोड पर विशेषतः बड़े नगरों  के बाहर  सभी जगह  विना  अद्यतन बीमा के   वाहन दौड़ते नजर आएंगे। ऐसे वाहन रोड पर  केवल भीड़ बढ़ाने वाले होते हैं जो दुर्घटनाओं का कारण होते हैं, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले होते हैं।                                                    
                                                       विना नंबर प्लेट वाहन 
5- रोड पर ऐसे अनेक वाहन मिलेंगे जिन पर नंबर प्लेट पर नंबर ही अंकित नहीं है। ऐसे वाहन चालक अपराधों को बढ़ावा देते हैं। 
गंभीर समस्यें 
1- वायु और ध्वनि प्रदूषण 
2-  रोड पर बढ़ती दुर्घटनायें 
3-  अपराधों को बढ़ावा 

सुझाव 
1-  परमिट का नवीनीकरण विना फिटनेस के न हो। 
2 - विना अद्यतन बीमा के  वाहन रोड पर कठोरता के साथ रोकें जाय। 
3 - विना नंबर प्लेट के वाहन रखना भी कठोरता से रोका जाय। 


  

शनिवार, 12 जनवरी 2019

गठबंधन का अर्थ है डूबते को तिनके का सहारा

  Blogger; Asharfi Lal Mishra
अशर्फी लाल मिश्र








Reviewed on 19/01/2019
                            जब तक किसी राजनीतिक दल का  व्यापक जनाधार होता है उसे गठबंधन की आवश्यकता नहीं होती , निर्विघ्न  शासन  चलता  रहता है और  जब अपनी जनोन्मुख  कार्यप्रणाली को त्याग कर  सत्ता के अहंकार में डूबकर   अपना जनाधार खो देता है  तथा सत्ता हाथ से फिसल जाती है तब उसे गठबंधन राजनीति की ओर कदम बढ़ाना पड़ता है। कभी- कभी नवोदित राजनीतिक दाल भी गठबंधन का मार्ग अपनाते हैं।

गठबंधन से लाभ         

       प्रत्येक मान्यता प्राप्त  दल  या   गैर  मान्यता प्राप्त दल की कामना होती कि सत्ता में येन केन प्रकारेण  भागीदारी मिले। छोटे -छोटे राजनीतिक दलों का तब और अधिक महत्व बढ़  जाता है जब कोई भी राजनीतिक दल   लोक सभा या विधान सभा में  सबसे  बड़ा दल होने के बावजूद सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होता। ऐसी स्थिति में  छोटे दलों का अति महत्व हो जाता  है।
           
            लोक सभा या  विधान सभा  में स्पष्ट  बहुमत  न मिलने पर   सबसे बड़ा राजनीतिक दल  सरकार बनाने के किये  गठबंधन की सरकार बनाने का   प्रयास  करता है। गठबंधन  में कुछ दल सशर्त  सरकार में सम्मिलित होते हैं और कुछ सरकार से बाहर  रहकर समर्थन देते हैं। गठबंधन की सरकार में  हर दल के हाथ में सरकार का रिमोट कण्ट्रोल रहता है।

गठबंधन से हानि 

         गठबंधन की सरकार में कई दलों का समूह होता है या यों कहें कि सापों का गठवा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसी सरकार में  हर राजनीतिक दल अपनी इच्छावों की पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास करता रहता है और यदि सरकार में शामिल या बाहर  से समर्थन देने वाले दलों की इच्छा पूर्ति  नहीं होती तो सरकार से समर्थन वापस लेने  की धमकी भी देते है। दिनांक 31 दिसंबर 2018 को बसपा प्रमुख ने मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकार को धमकी दी कि यदि 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद में सम्मिलित बसपा के लोगों से मुकदमे वापस नहीं लिए गये तो समर्थन वापस लेने पर विचार संभव। [a]
               गठबंधन की सरकारों में स्थायित्व की कमी रहती है। भ्रष्टाचार पर लगाम और राष्ट्र का विकास प्रभावित होता है।

गठबंधन आधारित राजनीति  के दुष्परिणाम 

 1.क्षेत्रीय दलों का अभ्युदय।
2. राजनीति में अपराधियों का प्रवेश।
3.भाषा , धर्म और क्षेत्रवाद का राजनीति में खुलकर प्रवेश।
4. सांसदों और विधायकों के  आपराधिक मुकदमें वर्षों तक पेंडिंग या तो जाँच में या फिर न्यायलय में। हालाँकि वर्तमान में अलग से  देश में 12  एम एल ए /एम पी  कोर्ट स्थापित किये गये हैं।
5.अस्थिर सरकारें।
6. न भ्रष्टाचार पर लगाम लगती है और न विकास होता है।
7. राष्ट्रीय एजेण्डा का अभाव।
8 . मध्यावधि चुनाव की  सदैव आशंका।

बसपा  -सपा के  गठबधन  में  रालोद
                      वर्तमान में  भाजपा   के व्यापक  जनाधार  से भयभीत  देश के अधिकांश राज्यों में  गठबंधन की चर्चा हो रही है। छोटे दलों की बात छोड़िये जो अपने अस्तित्व के लिए  गठबंधन की बात सोच सकते हैं या फिर नवोदित राजनीतिक दल। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी अपने अस्तित्व के लिए व्यापक गठबंधन के लिए उतावली है।
 
                       सत्ता  का प्रलोभन या मोह कहें कि  गठबंधन  करने में पिछले  कड़ुए से कड़ुए या फिर अपमानित हुए अनुभव भी भुलाने पड़ते हैं  इसका जीता जागता  उदाहरण  उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी  और समाजवादी  पार्टी का है जिन्होंने आपस में सीटों का बटवारा कर गठबंधन  के मार्ग  चलने का निश्चय किया। [1]  इस अवसर पर   मायावती  ने अपनी कसक को व्यक्त  करते हुए  लखनऊ गेस्ट हाउस  काण्ड  से ऊपर जनहित को बताया। [2]

                        उत्तर प्रदेश में सपा बसपा के गठबंधन से कांग्रेस को अलग रखा गया लेकिन  रायबरेली और अमेठी सीटों पर चुनाव न लड़ने निश्चय किया गया। इस गठबंधन में  रालोद भी शामिल हो गया है जिसे मात्र ३ सीटों पर ही चुनाव  लड़ने की सहमति बनी। इस गठबंधन से सपा को कुछ रहत मिल सकती है।

                                                                   
                    दिनांक 19 /01 /2019 को कोलकाता में मोदी विरोधी  राजनीतिक दल एवं बीजेपी के असंतुष्ट नेता एक मंच पर पहुंचे। यह रैली पश्चिमी बंगाल की मुख्य मंत्री  ममता बनर्जी ने आयोजित की। यह गठबंधन पूर्व रैली कही जा सकती है। [3] [4]

अनर्गल बयानबाजी से कांग्रेस की प्रतिष्ठा गिरी

 ब्लॉगर : अशर्फी लाल मिश्र अशर्फी लाल मिश्र कहावत है कि हर ऊँचाई के बाद ढलान  होती है । ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में कांग्रेस ने जनता ...